Ratlam news: रतलाम जिले के कुछ गांवो के किसान पिछले कुछ समय से मुनाफे की खेती कर रहे हैं. पिछले पांच सालों से जिले के आसपास के गांव के लगभग 200 से अधिक किसान थाई अमरूद की खेती में हाथ आजमा रहे हैं, जो आज इन गांवों को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिला रही है. अमरूदों को अमेरिका, नेपाल आदि देशों में एक्सपोर्ट किया जा रहा है. इस खेती से किसानों को बंपर कमाई भी हो रही है.
आपको बता दे कि रतलाम जिले के कुछ गांव तितरी, मथुरी, कलमोडा, महू, अंबोदिया अपनी अंगूर, स्ट्राबेरी, एपल बेर व टमाटर के लिए खासे पहचाने जाते थे. लेकिन अब पिछले पांच सालों से ये गांव थाई अमरूद की खेती के लिए पहचान बनाये हुए है. किसानों को इससे अच्छा फायदा हो रहा है. जिले में लगभग 6 हजार बीघा में इसकी खेती हो रही है, पिंक अमरुद की डिमांड बिदेशों तक में बनी हुई है.
मालवा में जामफल के नाम से जाने जाने वाले अमरूद को अन्य प्रदेशों में पेरू, गुआवा के नाम से भी जाना जाता है. थाई अमरूद में तीन वैरायटियां मौजूद है. यह तीनों वेरायटी के बगीचे रतलाम जिले मे हैं। जिसमें पिंक ताईवान, रेड डायमंड व वीएनआर सफेदा आती है. वीएनआर सबसे ज्यादा बिकने वाला अमरूद है, जो शुगर फ्री होता है. वहीं पिंक ताइवान और रेड डायमंड अंदर से लाल रंग का होकर स्वाद में बहुत मीठा होता है. वीएनआर जल्दी खराब नहीं होता है. इसे 15 दिनों तक रखा जा सकता है. इसके अलावा रेड डायमंड और पिंक ताइवान 5- 6 दिनों तक खराब नहीं होते हैं. जिले में में लगभग 6 हजार बीघा में इसकी खेती हो रही है और किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
रतलाम के पिंक अमरुद की डिमांड बिदेशों तक
रतलांम जिले के कुछ गांव विशेषकर तितरी, मथुरी मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में उन्नत कृषि के लिए जाने जाते है. इन गांवो के किसानों का यही प्रयास रहता है कि प्रोडक्ट बेस्ट क्वालिटी का रखे. जिससे वह अन्य प्रदेशों व विदेशों तक पहुंचे. इन गांवो में कुछ समय पहले फ्रूट एक्सपोर्टर की एक टीम आई, तब वह यहां से सेम्पल लेकर गयी. जिसमें यहां के अमरूद की गुणवत्ता जांची गयी. जिनमें 3 से 4 किसानों का अमरूद उनके सभी मानकों पर खरा उतरा. उसके बाद अब तक तीन बार यहां से थाई अमरूद विदेशों में एक्सपोर्ट किए जा चुके हैं. जिसमें अमेरिका व नेपाल जैसे देश शामिल है.
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मंडी ले जाने का झंझट खत्म
किसानों को पहले खेती के साथ ही मंडी जाने और वहां पर विभिन्न प्रकार के खर्चो का डर लगा रहता था. लेकिन अब व्यापारी सीधे गांव से ही माल ले जाते हैं. उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात,आसाम आदि राज्यों से व्यापारी सीधे गांव आकर माल खरीद रहे हैं. यहां के किसानों को माल लेकर अन्य प्रदेशों में नहीं जाना पड़ रहा है. वर्तमान में थाई अमरूद 30 रुपये से 55 रुपये प्रति किलोग्राम तक में एक्सपोर्ट किया जा रहा है. 5000 किलो से लेकर 3 टन तक थाई अमरूद को इन गांवो से एक्सपोर्ट किया जा रहा है.
लागत कम मुनाफा ज्यादा
थाई अमरूद की खेती के लिए शुरुआत में 1 बीघा जमीन में 4 लाख की लागत आती है. इसके बाद हर साल प्रति बीघा 40 से 50 हजार का खर्चा होता है. 1 बीघा में 200 पौधे लगाए जाते है. यह पौधे छत्तीसगढ़ के रायपुर की नर्सरी से मंगाये गए हैं. उद्यानिकी की फसलों में भी मार्केट अप डाउन होता रहता है. शुरुआत में 10 साल तक इन थाई अमरूद का मार्केट मानकर चलते हैं, जो सलाना 2 से 4 लाख तक का भी मुनाफा दे सकते हैं. अगर खेती में नई वैरायटियां आती हैं, तो फिर नई वैरायटियों की खेती यहां के किसान शुरू कर देते है. किसान को फायदा हो ऐसी ही फसलों की ओर ज्यादा ध्यान रहता है.प्रति बीघा के हिसाब से किसान एक से डेढ़ लाख तक मुनाफा कमा रहे है.
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पौधों का रखा जाता है विशेष ध्यान
इन अमरूद के पौधों की जून माह में कटाई कर दी जाती है. जब सितंबर माह में इनमे फल लग आता है तो इनको पेपर से पैक कर दिया जाता है. क्योंकि डायरेक्ट सन लाइट से इनकी ऊपरी सतह काली पड़ जाती है. जिससे फसल खराब होने डर रहता है. जब यह नवंबर दिसंबर में पूरे फल आकार में आ जाते हैं तो इनको निकाल कर इनकी स्पेशल पैकिंग की जाती है. जिसक बाद ही इन्हें एक्सपोर्ट किया जाता है.
सिंचाई के लिए किया इस तकनीक का उपयोग
किसानों ने इन बगीचों में पानी की 12 माह की व्यवस्था करने के लिए खुद के बड़े बड़े तिरपाल तालाब बनाकर पानी का संग्रहण भी कर रखा है ताकि बारिश के बाद बगीचे में लगे अमरूद के पौधों को पानी की कमी के कारण नुकसान न हो.
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