कूनो में एक साल में 9 चीतों की हो गई मौत, जानें चीता प्रोजेक्ट में अब तक क्या क्या हुआ?
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Kuno National Park: दुनिया में बिग कैट की पांच प्रजातियों में से चार प्रजातियां भारत में पाई जाती है, लेकिन बीते सात दशक पहले यहां से विलुप्त हो चुकी थी. चीता प्रजाति को फिर से बसाने की योजना पिछले साल आज ही के दिन शुरू की गई. जो लगभग सफल ही रही है. पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन 17 सितम्बर को श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट की शुरूआत करते हुए 8 नामीबियाई चीतो को भारत को समर्पित किया था. कूनो के जंगल में चीतों के आने के बाद से यह देश और दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ. इसके बाद 12 साउथ अफ्रीकी चीतों को भी कूनो में लाकर बसाया गया.
भारत की धरा पर फिर से बसाए गए चीते कूनो नेशनल पार्क में स्वयं को सर्वाइव करने के लिए यहां की आबोहवा में ढल रहे हैं, हालांकि बीते एक साल में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 20 चीतों में से 30 फीसदी (6 वयस्क चीते) दम तोड़ चुके हैं, लेकिन 70 फीसदी (14 वयस्क चीते) को यहां की आवोहवा रास आती नजर आ रही है. हालांकि 4 माह में 6 वयस्क चीतों की मौत के बाद प्रोजेक्ट पर सवाल भी उठे, लेकिन एक साल में 70 फीसदी चीतों के जीवित रहने से विशेषज्ञ इस प्रोजेक्ट को सफल मान रहे हैं. क्योंकि प्रोजेक्ट के एक्शन प्लान में पहले से ही यह लिखा गया है, कि यदि एक साल में 50 फीसदी चीते भी बच जाते हैं तो प्रोजेक्ट सफल है.
कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट को शुरू हुए एक वर्ष आज रविवार को पूर्ण हो गया. इस एक वर्ष में चीतों प्रोजेक्ट में थोडे उतार चढ़ाव भी सामने आए, लेकिन कूनो पार्क के बेहतर प्रबंधन एवं चीता टास्क फोर्स, स्टेयरिंग कमेटी सहित एनटीसीए के विशेषज्ञों की निगरानी में इस प्रोेजेक्ट सफलता पूर्वक ड्राइव किया गया.
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नामीबिया के 6 तो साउथ अफ्रीका के 8 बचे
कूनेा नेशलन पार्क में 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से 8 चीते लाए गए थे, जिसमें से 2 की मौत हो गई, जबकि 6 चीते अब शेष बचे हैं. वहीं दक्षिण अफ्रीका से 18 फरवरी 2023 को 12 चीते लाए गए थे, जिनमें 4 की मौत हो गई और अभी 8 चीते बचे हैं. इस प्रकार कुल 20 में से 14 चीते हैं, बचे हैं, जिनमें 7 मादा और 7 नर हैं. वहीं मादा ज्वाला के 4 शावकों में से एक मादा शावक जीवित है.
बीते एक साल में प्रोजेक्ट चीता का ऐसा रहा सफर
पिछले साल आज ही के दिन यानि कि 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से लाए गए 8 चीते लाए गए थे. इन 8 चीतों को 2 से ढाई महीने तक क्वॉरंटीन किया गया. चीतों की सुरक्षा के लिए 07 अक्टूबर 2022 को चीता टास्क फोर्स का गठन किया गया. इसके बाद 05 से 28 नवंबर के बीच बारी-बारी से सभी 8 चीतों को बड़े बाड़ों में छोड़ा गया. 04 दिसंबर को पहली बार कूनो में चीता दिवस मनाया गया था.
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इसके बाद 18 फरवरी 2023 को दक्षिण अफ्रीका से लाए 12 चीते भारत लाए गए. इन सभी 12 चीतों को पहले छोटे बाड़े में क्वॉरंटीन किया गया. 11 मार्च से बड़े बाड़ों से खुले जंगल में छोडऩे का सिलसिला शुरू हुआ. पूरे प्रदेश के साथ ही देश के लिए खुशी का दिन 24 मार्च जब मादा चीता ज्वाला ने 4 शावकों को जन्म दिया.
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कूनों की खुशियां बदली मातम में
जब कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता ज्वाला ने शावकों को जन्म दिया था, तब पूरे देश ने मध्यप्रदेश को बधाई दी थी. यहां तक की पीएम मोदी ने भी कूनो नेशनल पार्क को बधाई दी थी. लेकिन खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई. शावकों के पैदा होने के मात्र 72 घंटो बाद ही शावकों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया, 27 मार्च को कूनो में मादा चीता साशा की मौत ने सबको चौंका दिया. इसके बाद मानों चीतों की कूनो में चीतों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया. एक के बाद एक 6 चीतों की मौत ने चीता प्रोजेक्ट पर कई सवाल खड़े किए.
मध्यप्रदेश को दिलाई अलग पहचान
चीता प्रोजेक्ट के शुरू होने से मध्यप्रदेश को एक अलग पहचान मिली है. कूनो नेशनल पार्क मे चीतों के आने से आसपास के कई जिलों में वीआइपी मूवमेंट बढ़ गई है. जिससे व्यापार को भी फायदा हुआ है. चीतों के आने के बाद से ही ठंडे बस्ते पड़ा रेलवे ब्रॉडगेेज प्रोजेक्ट को गति मिली है. इसके साथ ही श्योपुर जिले को देश के पर्यटन नक्शे में भी स्थान मिला है.
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