स्वर्ण रेखा नदी प्रोजेक्ट में देरी और धांधली पर तमतमाया हाईकोर्ट, पढ़ें कोर्ट रूम में क्या हुआ?
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Gwalior High Court: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में शहर की स्वर्णरेखा नदी के पुनरोद्धार के मामले पर नगर निगम के अधिकारियों पर की गई तल्ख टिप्पणी चर्चा में आ गई है. इस मामले में मंगलवार को हुई सुनवाई में नगरीय प्रशासन विभाग के कार्यपालन यंत्री अपने हलफनामे के साथ भोपाल से जब कोर्ट में पेश हुए तो हलफनामे को पढ़ते हुए जस्टिस रोहित आर्या की युगल पीठ ने अधिकारी को खूब खरी-खोटी सुनाई. अब इस मामले की सुनवाई 5 मार्च को होगी.
कोर्ट ने कहा- ‘जब ट्रंक लाइन के मामले में पेश की गई डीपीआर और 40 दिन की मोहलत की बात सुनवाई में चली तो जस्टिस आर्या ने डांट लगाते हुए कहा, ‘तुम्हारे पास कोई दस्तावेज है जो यह साबित कर दें कि यह डीपीआर केपीएमजी के एक्सपर्ट को सौंप दी गई है. अगर डीपीआर ही अभी तैयार नहीं है, फिर यहां से भाेपाल क्या गया है? इसके बाद अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी ने कहा कि एक प्राथमिक तौर का एस्टीमेट गया है.
जस्टिस ने कहा- 40 दिन का समय क्यों चाहिए?
जस्टिस आर्या ने पूछा कि कहां है वह एस्टीमेट? मतलब वो भी खानापूर्ति ही हुई है. मिस्टर काउंसिल, आप मुझे कहानी मत सुनाओ, जो काम हुआ है वह बताओ. कोई काम ही नहीं किया है तुमने अब तक. जस्टिस ने अंकुर मोदी से कहा कि आप शपथ पत्र देकर बताइए कि अब तक क्या हुआ है? और अगर कुछ नहीं भी हुआ है तो उसकी भी जानकारी दो. पूरे कागज लगाकर दिखाइए साथ ही यह भी बताइए कि 40 दिन का समय क्यों चाहिए?
कोर्ट ने कहा- सारा होमवर्क कोर्ट में ही करना होता है…
एक और तल्ख टिप्पणी की कहा कि 2017 में किया है ना टेंडर, कब दिया है किसको दिया है, कब बना है, पैसा दिया है इसकी डेटवाइज जानकारी कहां है? आपने 2024 का कागज क्यों लगाया है? 73 करोड़ रुपए जो आपने खर्च किए हैं, उनको कहां खर्च किया है वह बताइए. जब तक पूरे शहर में लाइन नहीं बिछा दी जाएगी तब तक काम सार्थक होगा ही नहीं. सरकारी काम है तो क्या ऐसे ही चलेगा? इसका कोई होमवर्क नहीं होता? सारा होमवर्क कोर्ट में ही करना होता है?
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कोर्ट रुम में हुई बातचीत का आंखों देखी
जस्टिस आर्या: तुम भोपाल से आए हो, यह दस्तावेज तुमने दिया है, पता है यह दस्तावेज क्या है?
(धीरे से अधिकारी ने जवाब दिया)
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जस्टिस आर्या: अब तुम भी वही बात कर रहे हो जो पिछली सुनवाई पर अपर आयुक्त विजय राज कर रहे थे, उनकी ही लाइन पर चल रहे हो.
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जस्टिस आर्या: आए हो भोपाल से टीए-डीए लेकर जो दस्तावेज थमा दिया उसके आधार पर हलफनामा दे दिया.
जस्टिस आर्या: इंजीनियर हो, पढे़-लिखे हो या अनपढ़ हो? किस बात की तनख्वाह लेते हो? बाबूगीरी का पैसा लेते हो? तुम लोगाें का काम करने की आदत है ही नहीं? बाबूगीरी की तरह काम करते हो फिर डांट खाते हो.
जस्टिस आर्या: वो विजयराज चला गया, हटा दिया उसे प्रभारी से. अब तुम आए हो नए आदमी, किसी लायक समझा था तुम्हें बनाने के लिए. या तुम भी उतने ही नालायक हो? समझा पा नहीं रहे हो तुम. आपने कमिश्नर और काउंसिल को उलझा दिया है. खड़े हैं लकीर के फकीर की तरह.
जस्टिस आर्या, अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी से
जस्टिस आर्या: इन अफसरों को समझाओ, अंग्रेजी समझ न आती हो तो एप आता है. उसमें डाल कर अनुवाद करवा दो. यह सभी नाम के इंजीनियर है, भूलभाल गए सब इंजीनियरी भोपाल में बैठकर.
अंकुर मोदी: मुझे कल तक का समय दो मैं सभी सवालों के जवाब देता हूं.
जस्टिस आर्या: क्या समय दूं, रोजाना यही मुकदमा लग रहा है.
जस्टिस आर्या: प्रशासन से कहो ऐसे मूर्खाें को न भेजा करें, इनसे अच्छे तो हर्ष सिंह हैं. यहां पर नान टेक्निकल होने पर भी चीजों को समझाने की कोशिश करते हैं. और यह भोपाल से आए हैं यह बोल भी नहीं पा रहे.
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