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कड़कती धूप में दहकते अंगारों के बीच तपस्या कर रहे ये साधु-संत, धूनी तप के बारे जानिए

उमेश रेवलिया

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koth khappar dhuni tapasya in badwah, MP News, Madhya Pradesh
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Khargone News: खरगोन पिछले कई दिनों से भीषण गर्मी और दुनिया से सबसे ज्यादा तापमान वाले स्थानों में शामिल होने की वजह से सुर्खियों में रहा है. लेकिन ऐसी कड़कड़ाती धूप और गर्मी में यहां साधू-संत दहकते अंगारों के बीच, सिर पर जलती आग का खप्पर रखकर तपस्या कर रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि ये तपस्या एक-दो दिनों के लिए नहीं, बल्कि पिछले चार महीनों से की जा रही है. बसंत पंचमी से शुरू हुई इस कठोर तपस्या का अब समापन होने जा रहा है.

साधू-संतों द्वारा ये कठिन तपस्या खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर बड़वाह के नर्मदा किनारे प्रसिद्ध नावघाटखेड़ी स्थित सुंदर धाम आश्रम में की जा रही है. आश्रम में ये परम्परा ब्रह्मलीन संत श्री सुन्दर दास जी महाराज के समय से 43 साल चली आ रही है. बसंत पंचमी से शुरू हुई इस तपस्या का समापन गंगा दशहरा के दिन होने जा रहा है.

क्या है कोठ खप्पर धुनी तपस्या?
बड़वाह के सुंदरधाम आश्रम में कई सालों से इस तरह की तपस्या करने की परंपरा चली आ रही है. इस अनोखी तपस्या को कोठ खप्पर धुनी तपस्या कहा जाता है. जिसमें चारों तरफ जलते हुए अंगारों के बीच संत बैठते हैं, फिर सिर पर जलता हुआ खप्पर रखकर तपस्या करते हैं. आश्रम में ये परम्परा ब्रह्मलीन संत श्री सुन्दर दास जी महाराज के समय में आज से 43 साल पहले शुरू हुई थी, जो आज भी जीवित है. परंपरा का पालन करने और ईश्वर की आराधना करने के लिए साधू-संत 45 से 46 डिग्री सेल्सियस में दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक तपस्या कर रहे हैं.

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ऐसे होगा समापन
संत बालकदासजी महाराज के सानिध्य में कई संत अलग-अलग जलते कंडो का घेरा बनाकर अपने सिर पर जलता हुआ खप्पर रखकर भगवान की आराधना कर रहे हैं. इस बार इसका शुभारंभ फरवरी महीने में बसंत पंचमी के दिन किया गया था. इस अवसर पर पंडितों ने श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर महंत बालकदासजी महाराज और अन्य संतों ने विधि-विधान से पूजा-अर्चन कर इसका शुभारंभ किया था. आश्रम के गादी पति श्रीश्री 1008 महंत बालकदासजी महाराज इस तप को पिछले कई वर्षो से कर रहे हैं. इस तप के तहत पंच धूनी, सप्त धूनी, द्वादश धुनी के रूप में तपस्या की जाती है. 30 मई मंगलवार को सात दिवसीय 75वें अमृत महोत्सव पर श्री विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति के साथ इस कठोर तपस्या का समापन होगा.

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