चंबल के इस इलाके में मिश्रित खेती के प्रयोग से बदल रही किसानों की तस्वीर, यहां लगा था कुपोषण का दाग
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Sheopur News: चंबल का श्योपुर जिला सबसे पिछड़ा और कुपोषण के लिए कुख्यात रहा है. मध्यप्रदेश की सबसे कुपोषित और सबसे पिछड़ी जनजाति सहरिया का गढ़ श्योपुर जिला ही है. मध्यप्रदेश में सबसे अधिक सहरिया आदिवासी श्योपुर जिले में ही रहते हैं और इनके उत्थान के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन कुपोषण की समस्या जस की तस है. लेकिन यहां गांधी सेवा आश्रम की मदद से मिश्रित खेती के कुछ ऐसे प्रयोग किए गए हैं, जिनकी मदद से न सिर्फ किसानों को लाभ मिल सकता है बल्कि कुपोषण का शिकार रही सहरिया जनजाति के उत्थान में बहुत बड़ा रोल अदा किया जा सकता है.
श्योपुर जिले के कराहल ब्लॉक में एक सैकड़ा गांवों में गांधी सेवा आश्रम की मदद से यह प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है, जिसमें गांवों के किसानों को उनके खेतों में मिश्रित खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके साथ ही कुपोषण को मिटाने में मदद करने वाली औषधियों को अन्य फसलों के साथ उगाने की ट्रेनिग भी दी जा रही है, जिसके काफी अच्छे परिणाम अब सामने आने लगे हैं.
कराहल ब्लॉक के भैंरोपुरा और सोनीपुरा गांव में इस प्रोजेक्ट के तहत किसान मिश्रित खेती करके अच्छी फसल हासिल कर पा रहे हैं. मिश्रित खेती कर चुके किसान सुखलाल आदिवासी बताते हैं कि यहां की जमीन पथरीली है. यहां एक फसल उगा पाने में ही कई सारी दिक्कतें आती थीं लेकिन अपनी मेहनत और गांधी सेवा आश्रम के कार्यकर्ताओं की मदद से मिश्रित खेती को लेकर जो गाइडेंस मिली, उसके बाद हम एक ही खेत में चना, मसूर, गेहूं, सरसों, मटर के साथ-साथ कुपाेषण मिटाने वाली औषधियों को भी उगा रहे हैं. जिससे हम एक सीजन में एक से अधिक फसल मिल पा रही है, जो आय बढ़ाने में मदद कर रहा है.
कीटनाशक से लेकर बीज तक सब देशी
स्थानीय किसान भंवर सिंह बताते हैं कि मिश्रित फसल पैदा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली खाद, कीटनाशक से लेकर फसलों के बीजों तक सब देशी पद्धति से तैयार किए गए इस्तेमाल करते हैं.गौमूत्र की मदद से यहां देशी कीटनाशक तैयार किए गए हैं, जिनका इस्तेमाल मिश्रित खेती में किया जा रहा है. गांधी सेवा आश्रम के कार्यकर्ता संदीव भार्गव बताते हैं कि श्योपुर एक आदिवासी बाहुल्य इलाका है और गरीब व कुपोषण की वजह से लोग यहां से पलायन करते थे.
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लेकिन मिश्रित खेती और औषधियों को एक साथ उगाने के प्रयोग की मदद से न सिर्फ किसानों को मदद मिल रही है बल्कि पलायन को रोकने में भी यह प्रयोग मददगार साबित हो रहा है. कुपोषण के निदान के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी कर रहे हैं.
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