MP NEWS: मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा में माता बगलामुखी का मंदिर न सिर्फ देशभर में मां के प्रति आस्था का केंद्र है बल्कि देशभर के राजनेताओं के लिए तो यह मंदिर सत्ता प्राप्ति का मार्ग भी है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि इस मंदिर पर शत्रु नाश के लिए बड़े-बड़े राजनेता तांत्रिक अनुष्ठान कराने पहुंचते हैं. खासतौर पर जब चुनाव नजदीक हों. जैसे-जैसे मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आएगी, वैसे-वैसे इस सिद्धपीठ पर राजनेताओं की मौजूदगी और उनके द्वारा तांत्रिक अनुष्ठानों की संख्या काफी बढ़ जाएगी. तो आज हम आपको न सिर्फ मंदिर की ऐतिहासिकता के बारे में बताएंगे बल्कि आखिर क्यों ये मंदिर देशभर के राजनेताओं की पहली पसंद है? उसे भी विस्तार से समझाएंगे. पढ़िए MP Tak की ये स्पेशल रिपोर्ट.
मध्य प्रदेश के आगर-मालवा के नलखेड़ा में पीतांबरा सिद्धपीठ मां बगलामुखी मंदिर लखुंदर नदी किनारे स्थित है. यहां त्रिशक्ति मां विराजित हैं. बीच में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी और बाएं मां सरस्वती हैं. यहां हमेशा माता के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है.
लेकिन नवरात्रों में यहां का नजारा बेहद खास होता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष हवन यज्ञ करते हैं. यहां पर तंत्र साधना के साथ मिर्ची यज्ञ और ऐसे अनुष्ठान होते हैं, जो आम मंदिरों में नहीं होते हैं. आम भक्त के साथ-साथ यहां देश के दिग्गज नेता और वीवीआईपी भी पूजन करने आते हैं.
जानिए क्या कारण है कि मां के दरबार में आने के लिए सियासी नेता होते है मजबूर?
देश सहित मध्यप्रदेश के मंत्री से लेकर विधायक तक मां के दरबार में विजय प्राप्ति के लिए लिए चुनाव से पहले पहुंचते है औऱ तांत्रिक पूजा कर मां को खुश करते है. बताया जाता है कि इस पूजा को गोपनीय रखा जाता है, तभी इसका फल जल्दी प्राप्त होता है. इस तांत्रिक शत्रुनाशनी पूजा में पूजा करवाने वाले को अपने शत्रुओं का नाम मन में ही लेना होता है. तांत्रिक कहते हैं कि अपने मन में सोची गई इच्छा को माँ बगलामुखी तत्काल पूरा करती है. बशर्ते ये पूजा गुप्त हो. बता दें कि साल 1977 में पूर्व प्रधाममंत्री इंदिरा गांधी चुनाव में हार के बाद तांत्रिक अनुष्ठान कराने हिमाचल के कांगड़ा स्थित मां बगलामुखी मंदिर पहुंची थी ताकि वह सत्ता में दोबारा वापसी कर सके. उन्होंने वहां मां को खुश करने के लिए तांत्रिक अनुष्ठान कराया था. जिसके बाद 1980 में वह देश की प्रधानमंत्री दोबारा बनीं थीं.

मां बगलामुखी मंदिर का इतिहास
मां बगलामुखी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. प्राचीन ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है. उनमें से एक मां बगलामुखी हैं. देवी बगलामुखी को तंत्रों की देवी कहा जाता है. मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट भी माना जाता है. मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं. इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात में माना जाता है. हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है. इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं. शास्त्रों के मुताबिक इस देवी की साधना आराधना से शत्रुओं का खात्मा हो जाता है. तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है. ये साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती हैं. कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के 12 वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार की थी. धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है.
देश में सिर्फ तीन स्थानों पर हैं मां बगलामुखी के मंदिर
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं, जो दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा में हैं. इन तीनों ही मंदिरों का अपना अलग-अलग महत्व है. नेपाल में भी माता का मंदिर होना बताया जाता है. यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध हैं. माँ बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और माँ हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति हो जाती है. सोने जैसे पीले रंग वाली, चाँदी के जैसे सफेद फूलो की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का देवीय स्वरुप बरबस अपनी और आकर्षित करता है.

कैसा है मंदिर और कैसे पहुंचे?
इंदौर-जयपुर हाईवे पर आगर-मालवा स्थित यह मंदिर जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूरी पर है. जहां जाने के लिए आप को सड़क मार्ग से जाना होगा. मंदिर पहुंचने के साथ ही मंदिर के प्रवेश द्वार पर शेर के मुख की आकृति वाला द्वार बना हुआ है. शेर के मुख की आकृति वाले द्वार से पहले मंदिर परिसर के बाहर माता को चढ़ाई जाने वाली चुनरी प्रशाद नारियल अगरबत्ती आदि सामग्री की सजी सारी दुकानें लगी है. मंदिर में जब प्रवेश करते हैं तब दीपों को जलाने के लिए तो विशाल गुंबज बना हुआ है. जिस पर दिए जलाए जाते हैं. माता के शिखर पर भगवा ध्वजा लहराती रहती है तो मंदिर के पीछे लखुंदर नदी बहती है जिसके आसपास श्मशान भी स्थित है. मंदिर के अंदर माताजी की विशाल मूर्ति त्रिशूल और ऐसी कई सौंदर्य वाली अभिभूत कर देने वाली आश्चर्यचकित धर्म के ओतप्रोत आने वाली कृतियां लगी हैं.

यहां हवन का अपना ही महत्व है
यहां जो हवन होते हैं, उनमें हर जगह होने वाले हवन से भिन्नता पाई जाती है. क्योंकि हवन सामग्री भी यहां भिन्न होती है. पीली सरसों, फूलों, खारक, इलायची, घी,तेल, काली मिर्च, लाल खड़ी मिर्च तथा अनेक तरह की जडी बूटियों से ओत प्रोत हवन सामग्री होती है. यहां तक कि हवन करने का तरीका भी भिन्न होता है. यहां के पंडितो द्वारा विशेष प्रकार की आहुतियां लगवाई जाती हैं. बताया जाता है कि इस मंदिर में पांडवों ने आकर अपने महाभारत युद्ध के पहले कौरवों के रूप में शत्रुओं से विजय पाने के लिए यहां शत्रु विजय यज्ञ किया था. ऐसी कहानियां यहां पर श्रद्धलुओं को सुनाई जाती हैं.
3 सीएम और कई केंद्रीय व राज्य के कैबिनेट मंत्री करा चुके हैं यहां पर तांत्रिक अनुष्ठान
सीएम शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने यहां पर तांत्रिक अनुष्ठान कराए हैं. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादत्य सिंधिया भी यहां पर तांत्रिक अनुष्ठान करा चुके हैं. मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी भी यहां पर पूजा करा चुके हैं. इनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई भी यहां पूजा के लिए आ चुके हैं. समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता रहे स्व. अमर सिंह और फिल्म अभिनेत्री व समाजवादी पार्टी की नेता रहीं जया प्रदा भी यहां तंत्र अनुष्ठानों के आ चुकी हैं. इनके अलावा यूपी, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र के कई मंत्री, नेता और अफसर तक यहां पर तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए आते रहे हैं.