mptak
Search Icon

Navratri 2024: चमत्कारी है बाड़ी के हिंगलाज शक्तिपीठ की कहानी, पाकिस्तान से ऐसे भारत आईं थीं मां, जानें

राजेश रजक

ADVERTISEMENT

हिंगलाज माता मंदिर, रायसेन
हिंगलाज माता मंदिर, रायसेन
social share
google news

Navratri 2024: मां शक्ति के 52 शक्तिपीठों में से एक हैं मां हिंगलाज शक्तिपीठ, जो पाकिस्तान के ब्लूस्तान में नानी की दरगाह के नाम से जाना जाता है और दूसरा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बाड़ी में, जहां मां के भक्त मां को ज्योति स्वरुप में लाये थे और मां स्वयं प्रकट हो गयी थीं. यह 500 वर्ष से प्राचीन स्थान है. मां ने भोपाल रियासत की बेगम साहिबा का अभिमान चूर चूर किया था. आज प्रदेश ही नहीं, विदेशों से भी भक्त नवरात्रि में मां के दर्शन करने आते हैं. 

पाकिस्तान से ऐसे भारत आईं हिंगलाज मां

रायसेन जिले के बाड़ी में 500 वर्ष पहले महात्मा भगवानदास को मां हिंगलाज में स्वप्न दिया था कि वह उसे भारत ले जाए. तब महात्मा भगवानदास ने प्रण किया और पाकिस्तान के बलूचिस्तान से मां को ज्योति के रूप में बाड़ी ले आये.  उस  समय जंगली और दुर्गम स्थान, जो खाकी राम जानकी अखाड़े के नाम से जाना जाता था, वहां पर सिर्फ तपस्वी साधू संत ही पहुंच सकते थे. वहां पर ज्योति स्वरुप में मां को मूर्ती के सामने स्थापित किया, जहां पर ज्योति मूर्ति में समाहित हो गयी और आज वह स्थान हिंगलाज कहलाता हैं.

ऐसे पड़ा हिंगलाज नाम?

हिंगलाज का अर्थ है सबको तत्काल फल देने बाली मां. हिंग का अर्थ है रौद्र रूप और लाज का अर्थ लज्जा है. कथा के अनुसार हैं भगवान शिव के सीने पर पैर रखकर मां शक्ति लज्जित हुयी हैं, इसलिए रौद्र और लज्जा से मां का नाम हिंगलाज पड़ा. 

ADVERTISEMENT

यह भी पढ़ें...

मां ने किया चमत्कार

यह स्थान विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी में बसा है. मां को एक बार बाड़ी के नबाव की बेगम ने प्रसादी स्वरुप मांस भेजा था. ये मांस मां की कृपा से मिठाई में बदल गया. इस चमत्कार के बाद बेगम ने मां के मंदिर में भक्ति कर 70  एकड़ जमीन मां के मंदिर को दान कर दी. 

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

विश्व में मां हिंगलाज के दो शक्ति पीठ हैं. एक पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हैं जो नानी मां और नानी की दरगाह  नाम से प्रसिद्ध है और दूसरा म.प्र. के बाड़ी में हैं, जो हिंगलाज के नाम से जाना जाता है. यह मां का वह स्थान है, जो भारत वर्ष में दो धर्मो की परंपरा को जोड़े हुए है. आज भी वह अमर ज्योति अनवरत जल रहीं है. यहां पर सभी भक्त आतें हैं, मंदिर प्रांगण में महात्मा भगवानदास की और पीरबाबा की समाधी एकसाथ बनी हुयी हैं, जो हिन्दू और मुस्लिम एकता की मिशाल है. यहाँ पर संस्कृत पाठशाला है और यज्ञ शाला है. यहां पर 100 से अधिक विद्यार्थी विद्या पातें हैं.
 

ADVERTISEMENT

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT