MP POLITICAL NEWS: मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी मतदाता ने हमेंशा ही प्रदेश की सियासी तकदीर लिखी है. इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी आदिवासी वोटर्स ही तय करेंगे कि मध्यप्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?. साल 2018 के विधानसभा चुनाव से ये साबित भी हो चुका है. मध्यप्रदेश, आदिवासियों की आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है. यही वजह है कि बीजेपी, कांग्रेस दोनों ही पार्टी, आदिवासियों को लुभाने के लिए पुरजोर कोशिश में लगी हुई हैं. एमपी में राहुल गांधी की यात्रा का रूट आदिवासी इलाकों से होकर गुजरना रहा हो या शिवराज सरकार द्वारा आदिवासी वर्ग को लुभाने के लिए पेसा कानून लागू करना रहा हो या फिर जय आदिवासी युवा शक्ति द्वारा आदिवासी अधिकार यात्रा निकालना हो. ये बताता है कि एमपी का अगला चुनाव आदिवासी मतदाता के इर्द-गिर्द रहने वाला है.
दरअसल, 230 विधानसभा सीटों में 20 फीसदी सीटें अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित हैं. जानकारों के मुताबिक आदिवासी मतदाताओं का करीब 70 से 80 विधानसभा सीटों पर खासा प्रभाव है. बीजेपी को 2018 विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासी आरक्षित सीटों से ही हुआ था.. वहीं 2003 में राज्य में बीजेपी की वापसी में अहम योगदान भी आदिवासी वर्ग का ही रहा था. उस वक्त 41 सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित थीं. जिनमें बीजेपी 37 सीटें जीतीं. जबकि कांग्रेस को महज दो ही सीटों में सतुष्ट होना पड़ा था.
2018 से पहले पिछले 2 चुनाव में आदिवासी वर्ग बीजेपी के साथ रहा और वह सत्ता में बनी रही. 2008 में एसटी सीट की संख्या 47 हो गई. जिसमें 2008 में बीजेपी ने 29 सीटें जीतीं, वहीं 2013 में 31 सीटें जीती थीं. लेकिन 2018 में पासे पलटे और बीजेपी 16 सीटों यानी आधी सीटों पर ही सिमटकर रह गई. जबकि कांग्रेस की सीटें बढ़कर दोगुनी हो गई और कांग्रेस ने सरकार बना ली. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कुल 109 और कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं थी. हार जीत का अंतर बहुत मामूली था.उस वक्त अगर आदिवासी मतदाता बीजेपी से नाराज नहीं होता तो बीजेपी की सरकार बनना तय थी. हांलाकि कांग्रेस की 15 महीने की सरकार चलने के बाद बीजेपी ने सरकार गिरा दी और फिर सत्ता में काबिज हो गई.
डेढ़ साल से बीजेपी की पूरी सियासत आदिवासी मतदाताओं के इर्द-गिर्द घूम रही
बात पहले बीजेपी की करें तो अब 2018 विधानसभा चुनाव कि गलती को बीजेपी दोहराना नहीं चाहती. वो अब आदिवासी मतदाताओं की अहमियत समझ रही है. यही वजह है कि मध्यप्रदेश में बीते डेढ़ साल से बीजेपी की राजनाति आदिवासियों पर केंद्रित हो गई है.
आदिवासियों को रिझाने के लिए बीजेपी पुरजोर कोशिश में लगी है. इसकी पहली शुरुआत बीजेपी ने 18 सिंतबर 2021 को की .जहां जबलपुर में राज्य सरकार द्वारा आजादी की लड़ाई में शहीद हुए आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर एक समारोह आयोजित किया गया. जिसमें खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे. इसके बाद 15 नवंबर 2021 यानि बिरसा मुंडा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रुप में मनाने और भव्य आयोजन का ऐलान किया था. इस आयोजन में खुद पीएम नरेंद्र मोदी शामिल हुए थे.
श्योपुर के जिस कूनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नामीबिया से लाए चीतों को छोड़ा गया था. वह इलाका भी आदिवासी बाहुल्य है. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने स्व-सहायता समूह की महिलाओं से भी संवाद किया था. जिन महिलाओं को उनसे मुलाकात के लिए चुना गया था, वे सहरिया आदिवासी समाज से आती थीं. वहीं 4 दिसंबर को टंट्या भील के शहादत दिवस पर भव्य सरकारी आयोजन होने लगे और उन्हें टंट्या मामा के तौर पर स्थापित करते हुए पाताल पानी रेलवे स्टेशन का नाम उनके नाम पर रख दिया गया.
भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम भी आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली रानी कमलापति के नाम पर रखा गया. इसी कड़ी में छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकरशाह के नाम पर रखा गया. वहीं अब सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बड़ा ऐलान करते हुए भगोरिया को राजकीय पर्व और सांस्कृतिक धरोहर घोषित कर दिया है.
कमलनाथ भी लगातार कर रहे आदिवासी इलाको के दौरे
कमलनाथ ने सबसे पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर से बीजेपी के आदिवासी नेताओं को भोपाल पीसीसी ऑफिस बुलाया और उनको कांग्रेस ज्वॉइन कराया. हालांकि एक दिन बाद ही वे वापस बीजेपी में लौट गए. कमलनाथ ने अपने ज्यादातर दौरे झाबुआ, अलीाराजपुर, चंबल अंचल जैसे इलाकों में किए. भगोरिया हाट में वे सीएम शिवराज सिंह चौहान से एक दिन पहले ही पहुंच गए. अपनी होली को आदिवासी समाज को समर्पित किया. बीजेपी सरकार द्वारा लागू किए गए पेसा ऐक्ट को अधिकार विहीन बताकर कांग्रेस की सरकार में पेसा ऐक्ट के जरिए आदिवासी समाज को फुल पावर देने के वादे वे लगातार कर रहे हैं. आदिवासी समाज के विधायकों और नेताओं से लगतार बैठकें कर रणनीति कमलनाथ तैयार कर रहे हैं. कांग्रेस के आकाश भूरिया, कांतिलाल भूरिया, दिग्विजय सिंह सहित तमाम दिग्गज आदिवासी वर्ग को प्रभावित करने उनके बीच पहुंच रहे हैं और कांग्रेस सरकार आने पर मिलने वाले फायदें गिनवा रहे हैं.
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