दोनों हाथ खोकर भी नहीं खोई हिम्मत, ‘पैरों’ से लिखी अपनी किस्मत; पढ़िए संतोष की प्रेरक कहानी

पंकज शर्मा

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International Women’s Day: हमारा देश प्रतिभाओं से भरा पड़ा है. देश के कोने-कोने से हर रोज किसी न किसी प्रतिभावान शख्स की कहानी सामने आती रहती है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर MP Tak आपके के लिए ऐसी ही प्रेरक कहानी लेकर आया है, जिसने दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद जिंदगी में हिम्मत नहीं खोई. जी हां, हम बात कर रहे हैं राजगढ़ जिले खिलचीपुर महिला बाल विकास कार्यालय में पदस्थ सुपरवाइजर संतोष चौहान की, जो आज महिलाओं के लिए एक प्रेरक और मिसाल बन गई हैं. उन्होंने सबकुछ खोने के बावजूद अपने आपको एक ऐसे स्थान पर खड़ा किया, जो अपने आप में एक मिसाल है.

दोनों हाथ कटे होने के बावजूद वे आंगनबाड़ियों के 2 सेक्टर व 128 केंद्रों में जागरण कागजी काम स्वयं करती है, मोबाइल खुद लगाकर कर बात करती हैं और जरूरत पड़ने पर गांवों का दौरा कर समस्याओं का निराकरण भी करती हैं.

संतोष ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया, ‘1988 में कक्षा-5 में आठ साल की थी, तब मेरे गांव डालूपुरा में करंट लग जाने से दोनों हाथ खो दिए. मेरे परिवार वालों ने काफी इलाज करवाया, लेकिन मेरे हाथ नहीं बच पाए. इस हादसे के बाद जिंदगी में कुछ भी करने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन स्कूल में एक टीचर की मदद से सब कुछ आसान हो गया. आज जहां भी हूं बीएल पोटर सर की वजह से ही हूं.

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हाइटेंशन लाइन ने छीन लिए थे दोनों हाथ
संतोष ने बताया कि जब वो 1988 में कक्षा 5 में थी. उनकी उम्र उस समय महज आठ साल की थी, तब गांव डालूपुरा में करंट की चपेट में आ गई थी. मेरे परिवार वालों ने काफी इलाज करवाया, लेकिन मेरे हाथ नहीं बच पाए,और दोनों हाथ खो दिए. इतनी कम उम्र में हाथ गंवाने के बावजूद संतोष ने कभी हिम्मत नहीं हारी. सामने आने वाली चुनोतियों का डटकर सामना किया.

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फोटो- पंकज शर्मा

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दिव्यांगता को नहीं बनने दिया बेबसी
आम तौर पर ऐसे हालात में कोई भी आम इंसान अपना जीवन समाप्त समझ लेता है. लेकिन संतोष ने अपनी दिव्यांगता को कभी बेबसी नहीं बनने दिया. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जीवन में कुछ कर दिखाने की ठान ली है. संतोष के इस हौसले को हमारा भी सलाम.

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स्कूल के टीचर ने की मदद
मैं गांव के स्कूल में पढ़ने गई, तो अध्यापक ने कहा तुम कैसी पढ़ोगी, तुम्हारे तो हाथ ही नहीं हैं, कैसे लिखोगी? तुम नहीं पढ़ सकती हो. ये बातें सुनने के बाद मैने आगे पढ़ने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. लेकिन  फिर खिलचीपुर में मुझे शिक्षक बीएल पोटर सर मिले वो उस समय साड़ियां कुआं में पदस्थ थे. उनके द्वारा मुझे पढ़ने की प्रेरणा दी गई. सर ने मुझे पेर से लिखना सिखाया. मेरी हर तरह से मदद की जिससे मैं पढ़ाई कर सकूं.  उसके बाद मैंने पूरी पढ़ाई b.a. की है. आज मैं महिला बाल विकास में सुपरवाइजर पद पर पदस्थ हूं. आज जो कुछ भी हूं या इस छोटी सी जिंदगी में कर पाई हूं उसमें सबसे बड़ा योगदान पोटर सर का है. उनके बगैर कुछ भी संभव नहीं हो सकता था.

महिलाओं के लिए प्रेणना बनी संतोष
महिलाओं को कभी भी हिम्मत नहीं हारना चाहिए. मैं मेरे दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद भी कभी हिम्मत नहीं हारी. मैंने दिल में ठान लिया सब कुछ कर कर दिखाना है. सो आज कर पाई हूं. आप किसी से भी खुद को कम मत आकियें.  महिलाओं को हिम्मत कर आगे आना  चाहिए.  महिलाएं सब कुछ कर सकती है. आज भी गांव में रूढ़िवादी भावना है. गांव के लोग बच्चे को नहीं पढ़ाते हैं. सभी महिलाएं अपनी बेटियों को पढ़ने की  प्रेरणा दे. मेरे पिताजी किसान हैं. पिता की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी लेकिन उन्होंने मुझे फिर भी पढ़ाया गांव है.

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