सीहोर में मनाई जाती है अनूठी नवाबी होली, पांच दिनों तक होती है रंगों की धूम; जानें क्या है इतिहास?

नवेद जाफरी

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Sehore, Nawabi Holi, Holi, Madhya Pradesh
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Sehore Nawabi Holi: रंगों के त्योहार होली की धूम देशभर में दिखाई देती है. होली को लेकर तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. हर जगह होली खेली जाती है, लेकिन सीहोर में होली के त्यौहार को लेकर अनूठी परंपरा है. यहां की होली गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण है. सीहोर में अनोखे अंदाज में होली मनाने की परंपरा नवाब हमीदुल्लाह के शासनकाल से चली आ रही है. यहां होली खेलने का सिलसिला एक नहीं, बल्कि पूरे 5 दिनों तक चलता है. सारे जिलेभर में पांच दिन तक होली का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

सीहोर जिले में रंगों का पर्व होली मनाने का सिलसिला एक या दो नहीं, बल्कि पूरे पांच दिनों तक चलता है. होलिका दहन से शुरू होने वाले उल्लास-भाईचारे और मस्ती से सराबोर होली के पर्व की धूम यहां पांच दिनों तक दिखाई देती है. धुलेड़ी से शुरू होकर रंगों से खेलने और पिचकारी मारने का सिलसिला रंगपंचमी तक जारी रहता है. जानकारी के मुताबिक ये परंपरा नवाबी शासन काल से चली आ रही है.

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दूसरे दिन सीहोर पहुंचते थे नवाब
इतिहासकार ओमदीप ने बताया कि जिले में पांच दिन तक होली मनाने की परंपरा नवाबी समय से चली आ रही है. पहले के समय में होली के पर्व पर नवाब साहब सीहोर आते थे और होली मनाते थे, ये परंपरा तब से लगातार जारी है. होली के दूसरे दिन ही भोपाल नवाब हमीदउल्लाह खान सीहोर आते थे. वर्तमान कलेक्ट्रेट में पोलीटिकल ऑफिस हुआ करता था. पुरानी निजामत, ब्राह्मणपुरा और बारादारी में नवाब हमीदउल्लाह पहुंचते थे और होली का त्योहार मनाते थे.

रंग पंचमी पर जमकर खेली जाती है होली
होली के तीसरे दिन नवाब आष्टा पहुंचते थे और वहां बुधवारे में बैठते थे. पुराना नपाध्यक्ष भवन जहां अब चौराहा है. उस समय वहां और किले पर जमकर होली होती थी. यहां पर आज भी होली जमकर खेली जाती है. रंग पर्व के चौथे दिन नबाब जिले के जावर पहुंचते थे. वहां पर पूरे उल्लास के साथ पर्व मनाया जाता था और होली खेली जाती थी. होली पर्व का पांचवां दिन रंग पंचमी पूरे जिले में उल्लास से मनाया जाता है. इस प्रकार शहर सहित जिलेभर में पूरे पांच दिन रंग बरसता है. यह पांचवा दिन रंग पंचमी का होता है सभी लोग जमकर खेलते है.

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फोटो: नवेद जाफरी

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होलिका दहन से होती है त्योहार की शुरुआत
त्योहार की शुरुआत होलिका दहन से होती है. इस दिन लोग सुबह-सुबह होलिका दहन वाली जगह पर जाते हैं. होलिका दहन स्थल पर पूजा की जाती है. होलिका दहन बुराई जलाने की प्रतीक है. होलिका दहन के बाद धुलेंडी पर रंग तो होता है, लेकिन साथ ही इस दिन गैर भी निकलती है. इस दिन गमी की होली मानकर लोग उन घरों पर जाते हैं, जिनके यहां गमी हुई हो. गांवों में लोग इकट्ठा होकर गमी वाले घर जाते हैं और वहां रंग डालते हैं.

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