Sheetla Saptami 2023: मंगलवार को शीतला सप्तमी के मौके पर मंदिरों में खास भीड़ दिखाई दे रही है. राजगढ़ में महिलाएं सुबह से ही मंदिरों में पहुंच रही हैं और पूजा अर्चना कर रही हैं. ये शीत ऋतु का अंतिम दिन माना जाता है, जिसमें महिलाएं रात का बासी भोजन माता को चढ़ाती हैं और उसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं. शीतला सप्तमी के मौके पर पूजा-व्रत कर परिवार के स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं.
चैत्र पक्ष की सप्तमी पर घरों में भोजन नहीं बना, सभी लोगों ने बासी भोजन किया. घर-घर में महिलाओं ने सोमवार रात्रि को पूड़ी, भजिये, दही चावल, ज्वार की रोटी की समेत कई व्यंजन बनाए गए. महिलाएं रात का भोजन लेकर शीतला माता मंदिर पहुंची और माता की पूजा अर्चना कर भोग लगाया. भारी भीड़ के चलते महिलाएं कतारों में लगी हुई दिखाई दीं.
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रोग मुक्त रहने के लिए की पूजा
मान्यताओं के अनुसार चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की सप्तमी का दिन शीतला माता को समर्पित है. इस दिन को शीतला सप्तमी के रूप में पूजा जाता है. इस मौके पर शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है. ये ऋतु का अंतिम दिन माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन है ठंडा भोजन करने और व्रत करने से दाहज्वर, पीतज्वर, फोड़े और नेत्र के रोग नहीं होते हैं. इसी श्रद्धा और विश्वास के साथ महिलाओं ने शीतला माता का पूजन-व्रत किया.
ग्रीष्मकाल का आरंभ होता है
शीतला माता की पूजा से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है. शीतला अष्टमी के दिन से ही मौसम में बदलाव महसूस होने लगता है. मान्यता है कि शीतला अष्टमी से ही ग्रीष्मकाल का आरंभ हो जाता है. दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है. सूर्य देव की तपिश भी इसी दिन से बढ़ने लगती है. शीतला का अर्थ शीतलता प्रदान करने वाली बताया गया है. इस दिन व्रत रखकर शीतला माता की विधि पूर्वक पूजा की जाती है.