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कमजोर सीट मजबूत चेहरा और जीत की गारंटी… इस बार कैसे अलग है MP चुनाव में BJP की रणनीति

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MP election 2023 Big news for BJP in MP public opinion servey report first list of bjp candidates
MP election 2023 Big news for BJP in MP public opinion servey report first list of bjp candidates
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MP Election 2023: मध्यप्रदेश में BJP अपने प्रत्याशियों की अभी तक कुल तीन सूचियां जारी कर चुकी है. बीजेपी की दूसरी सूची ने न सिर्फ नेताओं को चौंकाया बल्कि राजनीतिक जानकारों की गणित भी इस सूची को देखकर फेल हो गई. इस सूची में बीजेपी ने अपने तीन केंद्रीय मंत्री के साथ 7 सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा है. सूची में सबसे चौंकाने वाला नाम बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का था. लिस्ट में अपना नाम देख कैलाश विजयवर्गीय ने कहा मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि मैं भी चुनावी मैदान में उतरने वाला हूं. इस सूची के आने बाद अब समझते हैं क्यों भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति 2018 के चुनाव से अलग है. आइये जानते हैं इस खबर में….

बीजेपी की दूसरी सूची आने के बाद कई दिग्गज नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ना पड़ रहा है. इसके पीछे BJP की बड़ी चुनावी रणनीति मानी जा रही है. बीजेपी का मानना है कि जिन सीटों पर पार्टी कमजोर है वहां दिग्गज नेताओं को चुनाव में उतारने से पार्टी मजबूती के साथ चुनाव जीतने में सफल रहेगी.

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बीजेपी नेताओं और प्रतिनिधियों का इन दिनों एक ही अलाप चल रहा है, वे पार्टी के कार्यकर्ता हैं पार्टी जो कहेगी वो हम करेगें. भले ही उनका डिमोशन क्यों न हो रहा हो. केंद्र में मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ना पड़ रहा है, एक समय पर महाराजा रहे और आज भी महाराजा के नाम से पहचाने जाने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिधिंया भी खुद को एक सामान्य कार्यकर्ता बताते नजर आ रहे हैं.

पिछले चुनाव यानि की 2018 के समय प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद भी कांग्रेस को बीजेपी से महज 47827 वोट ही ज्यादा मिले थे. लेकिन थोड़े से वोटों ने बीजेपी से 7 सीटे छीनकर कांग्रेस के पाले में दे दी थीं. इन्हीं सीटों के बलबूते कांग्रेस सत्ता में काबिज हुई थी.

पिछले चुनावों जीत का मार्जिन सबसे चौंकाने वाला

पिछले चुनावों बीजेपी और कांग्रेस की जीत का मार्जन बहुत कम था, बात करें तो प्रदेश की ऐसी 7 सीटें थी जहां बीजेपी 4337 वोट ज्यादा पाती तो कमलनाथ नहीं शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री बनाए जाते. इसके साथ सबसे चौंकाने वाला नतीजा ये था कि प्रदेश के 17 विधायक महज 1 प्रतिशत वोट के अंतर से चुनाव जीतने में सफल हो पाए थे. तो वहीं 13 विधायक 1-2 प्रतिशत वोट के अंतर से जीते, और 16 विधायक 2-3 प्रतिशत वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे. पिछले चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस की तरफ से कांटे की टक्कर दी गई थी, यही कारण है कि पार्टी इस चुनाव में कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है.

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में 114 सीटें जीती थीं, जो बहुमत से दो कम थी, और निर्दलियों की मदद से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाई गई. जिसके मुखिया कमलनाथ बने. 2018 में तीन फीसदी से कम वोटों के अंतर से जीतने वाले 46 विधायकों में से 23 बीजेपी के और 20 कांग्रेस के विधायक शामिल थे. इसके अलावा अन्य दलों की भी हालत ठीक नहीं थी. यहां निर्दलीय और एक BSP उम्मीदवार भी बहुत कम मार्जन से विधायकी पाने मे सफल हो पाए थे.

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2018 विधानसभा चुनावों में सबसे कम मार्जिन से जीतने वाली सीटें

2018 के चुनाव परिणामों की बात करें तो कांग्रेस की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं थी, क्योंकि पूरे प्रदेश भर में 9 ऐसी सीटें थी जहां कांग्रेस 1000 वोटों के मार्जन से जीती थी. ग्वालियर साउथ सीट से प्रवीन पाठक महज 121 वोट से चुनाव जीते थे. उस समय कांग्रेस में रहे और वर्तमान बीजेपी नेता हरदीप सिंह डंग भी 350 से ही अपनी सीट बचा पाने में सफल रहे, इसक साथ ही विनय सक्सेना जबलपुर 578, राहुल सिंह दमोह (वर्तमान में बीजेपी हैं) उस समय इन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री जयंत मलैया को 798 वोटों से चुनाव हराया था.,

ब्यावरा सीट से गोर्वधन दांगी 826, राजनगर से विक्रम सिंह नातीराजा 732, राजपुर से बाला बच्चन 932, नेपानगर से सुमित्रा देवी 1264 तो वहीं मांधाता से नारायण पटेल 1236 वोटों से चुनाव जीते थे. इन सभी सीटों पर जीत का मार्जन 1 प्रतिशत से कम है. यही कारण है की बीजेपी किसी भी कीमत में 2018 वाली स्थिति निर्मित होने देना नहीं चाहती है.

नरेंद्र सिंह तोमर को दिमनी सीट पर लाने के पीछे का कारण

विधानसभा चुनावों में नरेंद्र सिंह तोमर 15 साल बाद उतर रहे हैं. हालांकि वे इस चुनाव में अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने बेटे के बजाय उन्हीं को चुनावी मैदान में उतारा है. नरेंद्र सिंह तोमर को दिमनी से उतराने के पीछे बीजेपी की बड़ी चुनावी रणनीति है. पार्टी नरेंद्र सिंह तोमर के जरिए मुरैना जिले की 6 सीटों पर नजर बनाए हुये है. इसके साथ ही तोमर चुनाव के जरिए ही ग्वालियर-चंबल संभाग में सत्ता विरोधी लहर को संभालने का काम करेगें. बड़ा चेहरा मैदान में होने के कारण स्थानीय प्रत्याशियों की नाराजगी भी आसानी से संभाल सकते हैं.

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प्रहलाद पटेल को चुनाव मे उतारने के पीछे की वजह

प्रहलाद पटेल बीजेपी के तेज तर्रार नेताओं में शुमार हैं. इसके अलावा बीजेपी ओर राज्य के बड़े ओबीसी नेता माने जाते हैं. पटेल को चुनाव में उतारने के पीछे बीजेपी ओबीसी वोट को सांधने की कोशिश है. नरसिंपुर सीट भले ही अभी बीजेपी के पास हो यहां से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के भाई जालम पटेल विधायक हैं जो पहले मंत्री भी रह चुके हैं. इस सीट पर 10 सालों से बीजेपी का राज रहा है. लेकिन विधायक जालम पटेल के बेटे के निधन के बाद इस सीट पर उनकी स्थिति ठीक नजर नहीं आ रही है. यही कारण है कि बीजेपी ने जालम की जगह केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया है.

फग्गन सिंह कुलस्ते के जरिए आदिवासी वोटों पर नजर

बीजेपी ने निवास विधानसभा से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को अपना प्रतयाशी बनाया है. पिछली बार फग्गन सिंह कुलस्ते (Faggan Singh Kulaste) के भाई रामप्यारे कुलस्ते निवास से चुनाव हार गए थे. उन्हें कांग्रेस के डॉ अशोक मार्सकोले ने 15 फीसदी के वोट शेयर के अंतर से हरा दिया था. फग्गन सिंह कुलस्ते को टिकट देने के पीछे आदिवासी वोटों को माना जा रहा है, क्योंकि 2018 के चुनाव में बीजेपी को 25 आदिवासी सीटों का झटका लगा था. यही कारण है कि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इन सीटों को वापस लाने की कोशिश करेगी.

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