MP Election 2023: क्या मध्य प्रदेश में जीत हासिल कर बीजेपी की नींव हिला सकती है कांग्रेस?

एमपी तक

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MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Vidhan sabha Chunav) नजदीक हैं. भाजपा और कांग्रेस (BJP and Congress) दोनों ही पार्टियां जोर-शोर से तैयारियों में जुटी हुई हैं. 2003 से भाजपा लगातार मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज है (15 महीने छोड़कर). गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा 15 सालों से ज्यादा से सत्ता में है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) भाजपा का गढ़ माना जाने लगा है. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या भाजपा इस बार फिर से मध्य प्रदेश का चुनावी रण जीत पाएगी और अपना गढ़ बचा पाएगी.

मध्य प्रदेश गुजरात के अलावा यह एकमात्र राज्य है जहां भाजपा कम से कम 15 वर्षों से सत्ता में है. लेकिन राज्य में बीजेपी की जड़ें इससे भी ज्यादा गहरी हैं. 2003 से भाजपा लगातार मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज है. (दिसंबर 2018 और मार्च 2020 के बीच की अवधि को छोड़कर). मध्य प्रदेश पर शासन किया है. क्या पार्टी एक बार फिर अपना यह गढ़ बरकरार रखेगी? इंडिया टुडे ग्रुप ने अब तक के चुनावी आंकड़ों के आधार पर इसका विश्लेषण किया है.

2003 से भाजपा का गढ़ बना मध्य प्रदेश

2003 में सत्ता में आने के बाद से बीजेपी कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर रही है. यहां तक ​​कि 2018 के विधानसभा चुनावों में, जब कांग्रेस ने भाजपा से पांच सीटें अधिक जीतीं, तब भी भाजपा को अधिक वोट मिले. दरअसल, 2018 को छोड़कर पिछले 15 सालों में सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी का राज्य में दबदबा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी के दौर में बीजेपी एमपी में और भी ज्यादा प्रभावी हो गई है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 192 और 208 पर नेतृत्व किया. दोनों में पार्टी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले. 2019 में, भाजपा को 58 प्रतिशत वोट मिले – जो मध्य प्रदेश में किसी भी पार्टी के लिए किसी भी चुनाव में सबसे अधिक है.

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सात क्षेत्रों में बंटी एमपी की सियासत

मध्य प्रदेश को सात अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: बुंदेलखण्ड, चंबल, मध्य भारत, महाकौशल, मालवा उत्तर, और मालवा आदिवासी-निमाड़. अब तक के चुनावी आंकड़ों को देखा जाए तो इनमें से, मध्य भारत, मालवा उत्तर और मालवा आदिवासी-निमाड़ में भाजपा एक मजबूत खिलाड़ी रही है, और राज्य के बुंदेलखंड, चंबल और विंध्य क्षेत्रों में कमजोर रही है.

कहां मजबूत कहां कमजोर भाजपा?

2018 में, जब कांग्रेस और भाजपा बहुत कम अंतर के साथ लगभग 41 प्रतिशत वोटों के साथ बहुत करीबी मुकाबले में थे, तो यह चंबल, महाकौशल, मालवा उत्तर और मध्य भारत में था, जहां कांग्रेस को पिछले चुनाव की तुलना में छह प्रतिशत अधिक वोट मिले .चंबल में कांग्रेस को सात फीसदी वोट शेयर का फायदा हुआ. इससे पार्टी की सीट हिस्सेदारी में वृद्धि हुई और 1998 के बाद पहली बार उसने 100 से अधिक विधानसभा सीटें जीतीं. लेकिन चंबल सिंधिया परिवार का गढ़ है, जिनके वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया मार्च 2020 में भाजपा में शामिल हो गए. अब देखना होगा कि चंबल में बीजेपी को फायदा मिलता है या नहीं.

जब पहली बार सत्ता में आई भाजपा

1990 में बीजेपी ने पहली बार मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बनाई. पार्टी ने 39 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 220 सीटें जीतीं. हालांकि सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. 1993 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई और 2003 तक इस पर काबिज रही. 1993 और 1998 में चुनाव बेहद करीबी थे. कांग्रेस के पास बहुत कम बहुमत था और इन दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर का अंतर केवल दो प्रतिशत था. 2003 से भाजपा लगातार मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज है.

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