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रहली विधानसभा: कैसे बीजेपी का अभेद्य गढ़ बन गई ये सीट? यहां से 8 बार के विधायक फिर ठोक रहे ताल

अमन तिवारी

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mp election Rahli Assembly seat stronghold of BJP 8 times MLA gopal bhargav
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MP Election 2023: मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों को महज 100 दिन बचे हैं. ऐसे में पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा भी शुरू कर दी है. मध्यप्रदेश में एक ऐसी भी विधानसभा है, जिसे कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था, लेकिन बीजेपी के एक नेता की एंट्री के बाद यह सीट बीजेपी का गढ़ बनती गई. कांग्रेस अपने इस दशकों पुराने किले को वापस पाने के लिए हर बार नए-नए प्रयोग करती है, बाबजूद इसके उसे सफलता नहीं मिली है. हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के सागर जिले की रहली विधानसभा सीट की, जो बीजेपी के गोपाल भार्गव के चुनाव लड़ने के बाद से उन्हीं की होकर रह गई है. वह यहां पर यहां से 8 बार से विधायक हैं, और सबसे ज्यादा बार एक ही सीट पर चुनाव जीतने का रिकॉर्ड भी अब उनके नाम हो गया है. गोपाल भार्गव अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते हैं.

प्रदेश में अगर बीजेपी अपना 70 प्लस वाला फार्मूला लागू नहीं करती है, तो गोपाल भार्गव एक बार फिर इस सीट से चुनाव लड़ेंगे. जिसका जिक्र वे एक जनसभा के दौरान कर चुके हैं. रहली विधानसभा का इतिहास देखें तो यहां हर चुनाव में बीजेपी की लीड बढ़ती ही रही है. लेकिन 2018 के चुनाव के दौरान ऐसा पहली बार हुआ कि लीड बढ़ने के बजाय कम हुई. पिछले चुनाव के दौरान दावा था कि भार्गव सवा लाख से अधिक वोटों से जीतेंगे, लेकिन सवा लाख के बजाय भार्गव की जीत महज 22688 वोटों पर सिमट गई थी.

राजीव गांधी की सभा नहीं हरा पाई भार्गव को

रहली विधानसभा से गोपाल भार्गव को पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही लीड कम मिली, लेकिन फिर भी वो विधायक चुनकर आए थे. चुनाव से ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस सीट एक भव्य मंदिर का शिलान्यास किया है. रहली विधानसभा में ऐसा 38 साल बाद हुआ जब देश के प्रधानमंत्री ने जनसभा को संबोधित किया हो. इसके पहले 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी रहली विधानसभा पहुंचे थे. यहां उन्होंने गोपाल भार्गव के खिलाफ एक जनसभा को संबोधित किया था. उसके बाद भी भार्गव चुनाव नहीं हारे थे.

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रहली विधानसभा का चुनावी गुणा-गणित

1985 के पहले रहली विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, यहां से 1980 में कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने चुनाव जीता था. वे आखिरी प्रत्याशी थे, जिसने कांग्रेस के बैनर तले चुनाव जीता था, लेकिन बदलते समय के साथ ये सीट आज बीजेपी का गढ़ बन चुकी है. यहां से प्रदेश सरकार के मंत्री गोपाल भार्गव चुनकर आते हैं. गोपाल भार्गव रहली विधानसभा से 8 बार से विधायक हैं. ये सीट ब्राह्मण और कुर्मी बाहुल्य सीट मानी जाती है. कांग्रेस अपने इस दशकों पुराने किले को वापस अपने कब्जे में लेने के लिए कभी ब्राह्मण तो कभी कुर्मी प्रत्याशी पर अपना दांव चलती रहती है. लेकिन सियासत के अपराजेय योद्धा कहे जाने वाले गोपाल भार्गव हर बार इस बात को साबित करते हैं कि व एक अपराजित योद्धा ही हैं.

रहली में कैसा रहा पिछला?

साल 2008 में गोपाल भार्गव का मुकाबला कांग्रेस के जीवन पटेल से हुआ था. जिसमें भार्गव ने पटेल को 25 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी. इसके बाद आता साल 2013 का चुनाव तब तक सोशल मीडिया का दौर तेजी से आ चुका था. तब गोपाल भार्गव के सामने कांग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खेला और ब्रजबिहारी पटेरिया को मैदान में उतारा गया. ब्राह्मण कार्ड खेलने के बाबजूद भी कांग्रेस को यहां से मुंह की ही खानी पड़ी और भार्गव 51 हजार से अधिक वोटों से विजयी हुये. साल 2018 में पूरे प्रदेश भर में बीजेपी के खिलाफ एंटी इंकबेंसी बन चुकी थी. जिसके कारण बीजेपी के कई किले ढह गए. लेकिन गोपाल भार्गव कांग्रेस के कमलेश साहू को हराकर अपना किला बचाने में कामयाब हो गए. इस चुनाव में भार्गव का जीत का मार्जन कम हुआ था जो खुद भार्गव के लिए चिंता का विषय था.

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भार्गव के अलावा कौन हैं रहली में दावेदार?

रहली विधानसभा में बीजेपी की तरफ से केवल ही दावेदार है जो खुद गोपाल भार्गव हैं, अगर बीजेपी 70 प्लस वाला फॉर्मूला लागू करती है. भार्गव को चुनाव में बैठना पड़ेगा. फिर उनकी जगह उनके बेटे अभिषेक दीपू भार्गव चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस की तरफ से देखें तो पिछले चुनाव में कमलेश साहू प्रत्याशी थे. ऐसा भी हो सकता है कि इस बार भी कांग्रेस साहू को ही अपना प्रत्याशी घोषित करें. कमलेश साहू के अलावा ज्योति पटेल जो वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं वो टिकट के लिए हाथ आजमा रही हैं.

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कुर्मी-पटेल मतदाता बाहुल्य सीट

रहली-गढ़ाकोट विधानसभा में बीते चुनाव तक 2 लाख 20 हजार 675 मतदाता थे. इनमें से पुरुष मतदाता 116,937 एवं महिला मतदाता 103,736 थे. विधानसभा में 35 प्रतिशत से ज्यादा कुर्मी-पटेल मतदाता मौजूद हैं. ब्राह्म्ण वोटर महज 10 हजार के आसपास ही हैं. बाबजूद इसके यहां से 8 बार से गोपाल भार्गव जीत दर्ज कर रहे हैं.

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