आज ज्योतिरादित्य के साथ बैठीं सोनिया, तब दिखीं थीं माधवराव के साथ, जानें 2 तस्वीरों का रोचक किस्सा
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Parliament Special Session: पुरानी संसद में आज (19 सितंबर) आखिरी संयुक्त सत्र का आयोजन हुआ. वहां से एक रोचक तस्वीर सामने आई है, जिसमें सोनिया गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगल-बगल बैठे हुए हैं. अब उनकी ये तस्वीर वायरल हो रही है. वहीं अब चर्चा महिला आरक्षण बिल को लेकर हो रही है, जिसे मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है और दो दिन बाद ही इसे नई संसद के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा में पेश किया जा सकता है. ऐसे में एक और तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें संसद की आगे की सीट पर सोनिया गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया अगल-बगल बैठे हैं. फर्क ये था कि तब माधवराव सिंधिया कांग्रेस पार्टी के साथ थे और आज उनके बेटे सिंधिया कांग्रेस छोड़ चुके हैं और बीजेपी के साथ हैं.
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अक्सर चर्चा में रहते हैं, इन दिनों मध्य प्रदेश में चुनावी माहौल में कांग्रेस पर जमकर निशाना साध रहे हैं. इस बीच पुरानी संसद भवन के आखिरी संयुक्त सत्र में वह सोनिया गांधी के साथ बैठे तो उनकी तस्वीर वायरल हो गई. वहीं अब दूसरी तस्वीर करीब 24 साल पहले दिसंबर 1999 की सामने आ रही है, जब संसद में महिला आरक्षण बिल पेश किया जा रहा था और सोनिया गांधी के साथ मावध राव सिंधिया बैठे हुए थे. ये तस्वीर तब की है, जब 1999 में केंद्र सरकार में भाजपा की अटल बिहारी सरकार थी और उन्होंने महिला आरक्षण बिल संसद में पेश किया था. वह सवाल पूछने के लिए हाथ भी उठा रहे हैं.
आगे की सीट पर तब सोनिया गांधी बैठी थीं, उनके बगल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया बैठे हुए थे. फर्क यह है की तब माधवराव सिंधिया कांग्रेस पार्टी में थे और इस नाते सोनिया गांधी के बगल में बैठे थे. वहीं आज ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में हैं और कांग्रेस को 2020 में छोड़ चुके हैं.
ज्योतिरादित्य के साथ बैठीं सोनिया, लेकिन नहीं हुई बातचीत
नई संसद में जाने से पहले सेंट्रल हॉल में राज्यसभा और लोकसभा का संयुक्त सेशन रखा गया. यहां पर पीएम मोदी विपक्षी सांसदों से मिले. उन्होंने सभी का अभिनंदन किया. इसी दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के बगल में केंद्रीय मंत्री सिंधिया सबसे आगे की सीट पर बैठे दिखाई दिए. कभी कांग्रेस पार्टी के साथ रहे सिंधिया ने मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वॉइन कर ली थी. इस दौरान सिंधिया काफी खुश दिखाई दिए. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.
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क्या है महिला आरक्षण बिल
महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है. उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. लेकिन पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था. बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था.
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इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं. इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा.
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महिला आरक्षण बिल पर सियासत
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा. इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका. वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की. लेकिन सफल नहीं हुई.
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2010 में राज्यसभा में पास, लेकिन मनमोहन सरकार ने लोकसभा में नहीं पेश किया
बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया. वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ. बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था. यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं. ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे. कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है.
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