PP Sir No More: पुष्पेंद्रपाल सिंह जी मेरे लिए एक मित्र और परिवार की तरह थे, उनका असमय जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है. एक योग्य, सरल और कर्मठ व्यक्तित्व, जिन्हें जो भी जिम्मेदारी दी गई, उसे उत्कृष्टता के साथ उन्होंने पूरा किया. पुष्पेंद्र पाल सिंह जी अपने आप में पत्रकारिता का एक संस्थान थे, उन्होंने प्रदेश और प्रदेश के बाहर पत्रकारिता के अनेकों विद्यार्थी गढ़े. विद्यार्थियों के बीच ”पीपी सर” के नाम से प्रसिद्ध एक योग्य गुरु का जाना स्तब्ध कर गया. यह भावभीने शब्द मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुष्पेंद्रपाल सिंह के लिए व्यक्त किए.. पीपी सर का हार्ट अटैक से मंगलवार को तड़के निधन हो गया.
सीएम शिवराज सिंह चौहान गुलमोहर कालोनी स्थित पुष्पेंद्रपाल सिंह के निवास पर पहुंचे तो उनके परिजनों को ढाढस बंधाते हुए खुद भी भावुक हो गए. वह काफी देर तक पीपी सर के घर पर रुके, वहां मौजूद उनके परिजनों और भोपाल, दिल्ली और आसपास से जुटे गमगीन उनके सैकड़ों पत्रकार शिष्यों को भी संबल दिया. सीएम शिवराज ने कहा- वे अपने कार्यों और विचारों के माध्यम से सदैव हम सबके हृदय में रहेंगे.
पूर्व सीएम कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा- पत्रकारिता एवं जनसंपर्क में मध्यप्रदेश में अपना अद्वितीय स्थान रखने वाले पुष्पेंद्र पाल सिंह के असमय निधन का समाचार प्राप्त हुआ. सिंह व्यक्ति ही नहीं संस्था थे. पत्रकारों की पूरी पीढ़ी तैयार करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
हार्ट अटैक से निधन
पुष्पेंद्रपाल सिंह का मंगलवार को तड़के हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया. हार्ट अटैक आने के बाद उन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन वह बचाया नहीं जा सका. उनका अंतिम संस्कार मंगलवार 12.30 बजे भोपाल के भदभदा घाट पर किया गया. पीपी सर के निधन से पूरा पत्रकारिता जगत सदमे में है. निधन की खबर जैसे-जैसे लोगों को हुई, उनके घर पर देर शाम तक उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का रेला लगा रहा. पीपी सर की अंतिम यात्रा में हजारों की तादाद में पत्रकार, अधिकारी और छात्र शामिल हुए.
जिंदगी की लौ ऊंची कर चलो
पूर्व सीएम कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा- वे उन दुर्लभ अध्यापकों में थे जिनके ज्यादातर शिष्यों को यह लगता था कि सर सबसे ज्यादा प्यार उन्हीं से करते हैं. कबीर दास जी ने कहा है:
“गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है गढ़ गढ़ काढ़े खोट,
अंतर हाथ सहाय दे बाहर मारे चोट.”
लेकिन पीपी सर कबीर की वाणी से ऊपर थे. वे अंतर से हाथ लगाते थे लेकिन बाहर से कोई चोट किए बिना ही घड़े को आकार देने में सक्षम थे. अपने छात्रों की कमियों को वह बखूबी पहचानते थे और उनकी योग्यताओं को भी. वह जानते थे कि कमियां एकदम से खत्म नहीं हो सकती, इसलिए उन्हें पीछे कर दिया जाए और जो खुबियां है, उन्हीं को आगे बढ़ाया जाए ताकि प्रतिभा निखर के सामने आए.
उनके शिष्य बड़े-बड़े ओहदों की बढ़ा रहे हैं शोभा
उनके शिष्य आज बड़े-बड़े चैनलों अखबारों और वेबसाइट में एग्जीक्यूटिव एडिटर और बड़े ओहदों पर बैठे हुए हैं. उनका दायरा सिर्फ छात्रों तक सीमित हो ऐसी बात नहीं है. नेता, अभिनेता,ब्यूरोक्रेट, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ, एक्टिविस्ट कला क्षेत्र के लोग और ना जाने किन-किन विधाओं के लोग उनके पास ऐसे चले आते थे, जैसे फूल के ऊपर तितलियां. वे इस समय एक किस्म के प्रशासनिक सह राजनीतिक काम में व्यस्त थे. अगर इमानदारी से कहा जाए तो वह सच में 18 घंटे काम करते थे और हमेशा मुस्कुराते हुए. सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी इस तरह की मांग हो गई थी कि वह जहां जाना नहीं भी चाहते थे, वहां भी आयोजक का लिहाज कर के चले जाते थे. भले ही इसके एवज में उन्हें रात में कुछ और घंटे काम करना पड़े. उनका जाना किसी मशाल का बुझ जाना नहीं है? बल्कि उनका जाना किसी पावर हाउस का चला जाना है. वे दीपक नहीं थे, भटके हुए जहाजों को रास्ता दिखाने वाले लाइटहाउस थे.
एमसीयू में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष रहे
पीपी सर भोपाल स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवम संचार विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष रह थे. 2015 में वे मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग में ओएसडी और रोजगार निर्माण पत्रिका के प्रधान संपादक नियुक्त हुए. उनके पास मध्य प्रदेश सरकार के सभी प्रकाशन की जिम्मेदारी थी. पीपी सर का ऑफिस भोपाल के मध्य प्रदेश माध्यम में था. उनके ऑफिस में हमेशा लोगों का रेला लगा रहता था. इसमें सिर्फ छात्र ही नहीं बल्कि देश दुनिया के वरिष्ठ पत्रकार-संपादक, फिल्म सेलिब्रिटी, एनजीओ से जुड़े लोग, हकों की आवाज उठाने वाले लोग भी शामिल होते थे.