आदिवासियों में आज भी जीवित है डोल चतरा की परंपरा, रावण के बेटे मेघनाथ की होती है पूजा, जानें
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Sehore news: आदिम जनजाति के लोग आज भी डोल जतरा के सहारे अपनी प्राचीन परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं. इसमे युवाओं की ख़ास भूमिका होती है. जिले के आदिवासी अंचल लाड़कुई में जतरा की अनोखी परंपरा सालों से चली आ रही है. यहां होली के दूसरे दिन जतरा मेला आयोजित किया गया. जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासियों की भारी भीड़ उमड़ी. और मन्नत पूरी करने रावण के बेटे मेघनाथ की विधि विधान से पूजा की गई. महिलाएं करीब 15 फिट ऊपर खंब के ऊपर चढ़ कर झूलें को टच करती है. वहीं आस्था और हर्षोल्लास के साथ जतरा पर्व को मनाया गया.
जानकारी के अनुसार, जिले का लाडकुई आदिवासी अंचलों से घिरा है. जिसमें कई आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ त्यौहार मनाते हैं. इसी कड़ी में होली के दूसरे दिन जतरा मेला आयोजित किया जाता है. ग्राम लाडकुई में आदिवासी गोंड समाज की ओर से रावण के बेटे मेघनाथ की पूजा अर्चना की जाती है.
सालों से चली आ रही परंपरा
जतरा की परंपरा सालो सेचली आ रही है. जिसमे रावण के बेटे मेगनाथ की पूजा की जाती है जिसमे क्षेत्र सहित आसपास के बड़ी संख्या में आदिवासी लोग पहुंचते है. जहां मन्नत पूरी करने के लिए पूजा की जाती है, वही करीब 15 फिट ऊंचे खंब के ऊपर महिलाएं चढ़ कर झूलें को टच करती है. और एकदम से बेहोश भी हो जाती है. खंब के ऊपर खड़े कुछ लोगो की मदद से महिलाओं को नीचे उतार लिया जाता है. कुछ देर बाद महिलाओं को खुद होश आजता है.
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हाट बाजार का हाेता है आयोजन
होली के दूसरे दिन जतरा में ग्रामीणों एवं बाहर से आए लोगों की और से हाट बाजार लगाया जाता है. इसमें खेल-खिलौना, झूला, बांसुरी, मिठाइयों की दुकानें लगाई जाती है. जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है जिसको देखते हुए पुलिस प्रशासन भी तैनात रहता है मेले पहुंचे आदिवासी जमकर खरीदारी भी करते है.
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परेशानी से बचने, मन्नत पूरी करने के लिए लगता है जतरा
बताया गया है कि आदिवासीयों के द्वारा जतारा को उत्साह पूर्वक मनाया जाता है..यह त्यौहार मेघनाथ बाबा से किसी भी आपत्ति और परेशानी से बचने के लिए मनाया जाता है. जिसमें आदिवासी गोंड समाज की ओर से कई मान्यता की जाती है. वह पूर्ण करने के लिए यहां राड़ लाई जाती हैं। मेघनाथ बाबा की पूजन अर्चना कर भेट चढ़ाई जाती है। अपनी और अपने परिवार की कुशलता की कामना करते हैं. अनोखी लाल,
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