MP Tak Special: भाजपा ने गुजरात के बाद मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. लेकिन जानकारों का मानना है कि अगले विधानसभा चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी और वादे करके उन्हें पूरे न करने का फैक्टर बड़ा नुकसान कर सकता है. हाईकमान को भी इस बात का यकीन हो चला है, इंतजार गुजरात चुनाव का था. गुजरात चुनाव में मिली बम्पर जीत ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है कि शिवराज सरकार की बड़ी सर्जरी करके ही जनता के गुस्से को कम किया जा सकता है. मतलब साफ है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मध्य प्रदेश में सीएम के चेहरे में बदलाव कर सकती है.
हालांकि, हाल ही में हुई MP Tak की ‘बैठक’ में ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम पद की अटकलों को खारिज कर चुके हैं और शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री बता चुके हैं. उन्होंने कहा है कि ‘हमारे सीएम शिवराज सिंह चौहान हैं और हम सब उन्हीं के नेतृत्व में कार्य करेंगे’.
मध्य प्रदेश की राजनीति में यूं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सबसे विश्वसनीय चेहरा माना जाता है, लेकिन इसके बावजूद गाहे बगाहे चर्चा इस बात की लगातार होती है कि बीजेपी मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले सीएम का चेहरा बदल सकती है. जिस प्रदेश में पहले भावी सरकार की बात की जाती थी, अब वहां भावी मुख्यमंत्री की बात की जाने लगी है. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) में कई ऐसे नेता हैं, जो खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं. हालांकि, बीजेपी में मुख्यमंत्री पद की डगर आसान नहीं है. MP Tak आपको बता रहा है कि क्यों लग रही हैं भाजपा में ‘सीएम चेहरा’ बदलने की अटकलें…
कैबिनेट में जगह खाली, लेकिन अब तक विस्तार नहीं
शिवराज कैबिनेट में 4 पद खाली हैं. इन्हें भरने की अटकलें लगातार लग रही थीं, लेकिन आलाकमान ने इसकी सहमति अभी तक नहीं दी है, क्योंकि प्रदेश की सत्ता में बड़े फेरबदल की तैयारी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, विधायकों के कामकाज को लेकर संघ, संगठन और सत्ता के स्तर पर तीन सर्वे कराए गए हैं. सिंधिया समर्थक मंत्रियों के ऊपर भी गाज गिर सकती है. गुजरात में वोटिंग के बाद बीजेपी हाईकमान ने सभी प्रदेशों के अध्यक्ष और संगठन मंत्रियों की बैठक कर चुकी है. माना जा रहा है कि हाईकमान यह भी तय करेगा कि जिन राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं, वहां गुजरात फॉर्मूले पर अमल किया जाए या नहीं.
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एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर खतरनाक स्तर पर: एनके सिंह
वरिष्ठ राजनीतिक विश्नेषक और पत्रकार एनके सिंह कहते हैं, “मध्य प्रदेश में चेहरा बदलने की चर्चा जोरों पर है और एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर खतरनाक है. जनता बीजेपी की अभी की लीडरशिप के खिलाफ है. ऐसा लगता तो है कि सरकार का चेहरा बदलेगा. एनके सिंह आगे कहते हैं, “सरकार ने वादे बहुत ज्यादा किए हैं, 15 साल से लगातार वादे करते रहे हैं, लेकिन अगर लिस्ट निकाल कर देखें तो काम पूरे बहुत कम हुए हैं. कांग्रेस और कमलनाथ कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने 10 हजार से ज्यादा वादे किए हैं. जनता में एक फीलिंग ये है कि वादे बहुत करते हैं और पूरे नहीं करते हैं. दूसरा सबसे बड़ा प्वाइंट है प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार भी है .”
बीजेपी में शिवराज नहीं तो कौन?
भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद यदि सीएम पद को लेकर बात की जाए तो सबसे बड़ा नाम केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का है. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष और सांसद विष्णु दत्त शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं. इस सूची के बाद यदि बात की जाए तो गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह, कृषि मंत्री कमल पटेल और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री पद के दावेदार मानें जाते रहे हैं. इस पर फैसला हाईकमान ही करेगा. हालांकि, अभी पार्टी का पूरा फोकस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर है. मगर मुख्यमंत्री के विकल्प के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे ऊपर आ रहा है. यह नाम इसलिए भी लिया जा रहा है क्योंकि 2018 विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से ही मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार की वापसी हुई. ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर ही नहीं बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में असर रखते हैं.
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केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया था मध्य प्रदेश का सीएम
2018 में बीजेपी की ओर से प्रचार-प्रसार करते समय यहां तक लिखा गया कि “माफ करो महाराज, हमारे नेता शिवराज” लेकिन महाराज के बीजेपी में आने के बाद अब स्लोगन थोड़ा बदलता हुआ जरूर दिखाई दे रहा है. वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग के मुताबिक, ” जैसे अभी देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है, वैसे ही प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कोई विकल्प नहीं है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही चुनाव होना है. अगर इतिहास देखा जाए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय नेतृत्व के आदेश पर ही मध्य प्रदेश की कमान संभाली थी, उस समय शिवराज सिंह चौहान सांसद थे. वे पहले मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बने, इसके बाद विधायक दल का नेता बनकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी संभाली.
पीएम के नाम पर ही जनता के बीच जाएगी भाजपा
भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि 2023 में होने वाले सभी विधानसभा चुनाव पार्टी सामूहिक नेतृत्व में लड़ेगी. किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का नाम घोषित नहीं किया जाएगा. इसकी वजह पार्टी का आंतरिक सर्वे हैं. इसमें कोई मौजूदा सीएम ऐसा नहीं है, जिसकी लोकप्रियता 25% से ज्यादा हो. पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 75% से ऊपर है.
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शिवराज के नेतृत्व के फायदे और नुकसान
मध्य प्रदेश की राजनीति को लंबे समय से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने बताते हैं कि ‘भले शिवराज को 18 साल हो गए हों, लेकिन अगर वह अच्छा काम कर रहे हैं तो फिर वह क्यों नहीं? मुझे फिलहाल का मप्र में शिवराज का विकल्प नहीं दिखता है. इसलिए उन्हें हटाने का कोई सवाल नहीं है. पार्टी में सिंधिया को आगे बढ़ाने से होने वाले नुकसान की बात की जाए बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता अपनी आपत्ति भी दर्ज करा सकते हैं. बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद की दौड़ में पहली और दूसरी पंक्ति के दर्जनभर नेता शामिल हैं, वे भी विद्रोह कर सकते हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मिशन 2023 की कमान सौंपने से कई फायदे हैं. वे पूरे मध्य प्रदेश में जनता और नेताओं के बीच अच्छी पकड़ रखते हैं. उन्हें चुनाव की रणनीति भी बनाना काफी अच्छी तरह आती है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का खुद का अपना वोट बैंक भी है. मुख्यमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़ने से कुछ नुकसान भी है. एक ही बात शिवराज के फेवर में नहीं है और वो है उनका सबसे लंबे समय से प्रदेश का सीएम होना’.
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