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ऑपरेशन लोटस: भाजपा का सियासी ‘मोहरा’ बने सिंधिया ने ऐसे किया तख्तापलट; 15 महीने में ही शिव ‘राज’ रिटर्न

Operation Lotus Episode 2: मध्य प्रदेश में 2020 का मार्च महीना, होली बीत रही थी और कोरोना दस्तक दे रहा था. इस नई तरह की बीमारी से लोग दहशत में आ गए और समझ नहीं पा रहे थे कि यह क्या बला है? वैसे ही राज्य की सियासत में भी उथल पुथल होने का डर […]
Operation Lotus Jyotiraditya Scindia political pawn of BJP coup Shiv Raj returns in 15 months
शिवराज सिंह चौहान के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया. फोटो- चंद्रदीप कुमार/इंडिया टुडे

Operation Lotus Episode 2: मध्य प्रदेश में 2020 का मार्च महीना, होली बीत रही थी और कोरोना दस्तक दे रहा था. इस नई तरह की बीमारी से लोग दहशत में आ गए और समझ नहीं पा रहे थे कि यह क्या बला है? वैसे ही राज्य की सियासत में भी उथल पुथल होने का डर सत्तासीन कांग्रेस को सताने लगा था. 10 मार्च को होली थी, लेकिन इस बार जहां एक तरफ कांग्रेस के विधायकों और नेताओं का रंग उड़ा हुआ था, वहीं भाजपा एक और ‘ऑपरेशन लोटस’ को अंजाम देने में जुट गई थी. यही वह दिन था, जब मध्य प्रदेश में 15 महीने बाद ही भाजपा की वापसी की पटकथा लिख दी गई. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ गई.

MP Tak आपको ‘ऑपरेशन लोटस’ और कांग्रेस के तख्तापलट की पूरी कहानी को सिलसिलेवार बता रहा है… आज इस कहानी की दूसरी किश्त में हम बताने जा रहे हैं कि कैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कहकर भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लिया और कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा…? 

वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक एनके सिंह कहते हैं, “मध्य प्रदेश को आइसोलेशन में नहीं देख सकते हैं. बीजेपी 2014 में जब से दिल्ली (केंद्र) में पावर में में आई है, तब से आप देखें तो सारे स्टेट्स में बीजेपी ने चाहे बहुमत हासिल हुआ हो या न हुआ हो. किसी न किसी तरह से फूट डलवा कर संविधानेत्तर तरीकों से सत्ता हासिल की. गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और कई राज्य हैं, जहां पर भले ही जनता ने बहुमत न दिया हो, लेकिन वह सत्ता में आकर बैठते हैं. वैसा ही मध्य प्रदेश में था, जहां पर उन्हें मोहरा चाहिए था और वह काम ज्योतिरादित्य सिंधिया बन गए. उन्हें सत्ता पाने की छटपटाहट थी और उनकी कमजोरी को भाजपा ने अच्छे से भुनाया और मध्य प्रदेश में फिर से सत्ता हासिल कर ली.”

एनके सिंह कहते हैं, ‘सिंधिया जब से राजनीति में आए, वह सत्ता से बाहर कभी नहीं रहे. ऐसे में सिंधिया सत्ता में वापस आने के लिए छटपटा रहे थे. उनकी रिक्वायरमेंट थी और भाजपा को ऐसा ही नेता चाहिए था, जिसके जरिए भाजपा ने मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी की.’

तारीख वार जानिए मध्य प्रदेश का सियासी ड्रामा… कैसे गायब होने लगे कांग्रेस के विधायक

5 मार्च: जब गायब हो गए 11 विधायक
मध्य प्रदेश के निर्दलीय, बसपा, सपा और कांग्रेस के करीब 11 विधायकों के गायब होने की खबर से सामने आने के बाद प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया. जानकारी सामने आई कि ये विधायक मानेसर और बेंगलुरू की होटल में रुके हुए हैं. जिसके बाद मध्य प्रदेश की सियासत में एक बड़ा पॉलिटिकल ड्रामा शुरू हुआ. गायब हुए कांग्रेस विधायकों में शामिल हरदीप सिंह डंग ने अचानक इस्तीफा दे दिया. डंग के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार सकते में आ गई. कांग्रेस ने आनन-फानन सभी विधायकों को भोपाल बुलाया गया और राजधानी न छोड़ने के निर्देश दिए गए.

इस बीच कांग्रेस ने देर रात तक जद्दोजहद करके 6 विधायकों की वापसी करा दी. लेकिन पांच विधायक गायब रहे. इन विधायकों में हरदीप सिंह डंग, रघुराज सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा शामिल थे.

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7 मार्च: जब सिंधिया समर्थक विधायकों ने दिया बड़ा झटका
इस ड्रामे के बीच कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तो पूरी तरह से एक्टिव नजर आ रहे थे. लेकिन उस वक्त कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए थे. हरदीप सिंह डंग के इस्तीफे के बाद अचानक 7 मार्च को सिंधिया समर्थक विधायक महेंद्र सिंह सिसोदिया ने एक ऐसा बयान दिया जिससे प्रदेश में एक फिर सियासी भूचाल आया. सिसोदिया ने कहा अगर कमलनाथ सरकार ने सिंधिया की उपेक्षा की तो इस सरकार पर संकट आ जाएगा. इस बीच 8 मार्च को गायब विधायक बिसाहूलाल सिंह अचानक वापस भोपाल लौट आए. लेकिन उन्होंने कहा कि कमलनाथ सरकार से उनकी नाराजगी तब तक दूर नहीं होगी, जब तक वे मंत्री नहीं बन जाते.

दरअसल, बिसाहूलाल सिंह छठवीं बार कांग्रेस से विधायक बने थे. लेकिन उन्हें कमलनाथ सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया था. जिससे वह नाराज थे.

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9 मार्च: सिंधिया समर्थक 19 विधायक नदारद
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर असल राजनीतिक संकट 9 मार्च से शुरू हुआ. ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक करीब 19 विधायक अचानक गायब होने से कांग्रेस में हड़कंप मच गया. इन विधायकों में 6 मंत्री भी शामिल थे. खबर मिली की ये सभी 22 विधायक बेंगलुरु के एक होटल में हैं. इन विधायकों में गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसौदिया शामिल थे. जो कमलनाथ सरकार में मंत्री भी थे. इसके अलावा विधायक हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह, ओपीएस भदौरिया, मुन्ना लाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, गिरराज दंडौतिया, रक्षा संतराम सिरौनिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मनौज चौधरी, बिसाहूलाल सिंह, ऐंदल सिंह कंसाना शामिल थे. इसी दिन खबर मिली कि कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात करने उनके आवास पहुंचे हैं. इसके स्पष्ट हो गया कि अब कमलनाथ सरकार खतरे में है.

10 मार्च: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से दिया इस्तीफा
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 10 मार्च की सुबह अपने दिल्ली स्थित आवास से सीधे फिर गृहमंत्री अमित शाह से मिलने पहुंचे. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की. पीएम मोदी और अमित शाह से मुलाकात के कुछ ही देर बात ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इस्तीफा कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा. जैसे ही सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया, बेंगलुरु में मौजूद 22 विधायकों ने भी एक साथ अपना इस्तीफा दे दिया. जिससे कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई.

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11 मार्च: ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 11 मार्च को बीजेपी ज्वाइन कर ली. 17 साल तक कांग्रेस से राजनीति करने वाले सिंधिया को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने बीजेपी की सदस्यता दिलाई. सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही 11 मार्च की शाम भोपाल में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई. इस बैठक में सिर्फ 93 विधायक पहुंचे. जिससे साफ हो गया कि कमलनाथ सरकार खतरे में है. बीजेपी में शामिल होने के चंद घंटों बाद ही भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश से पार्टी का राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दिया. बीजेपी में शामिल होने के दूसरे दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार भोपाल पहुंचे, जहां भाजपाईयों ने जोरदार स्वागत किया.

सिंधिया इस दौरान बीजेपी के प्रदेश कार्यालय पहुंचे जहां शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव सहित बीजेपी के तमाम दिग्गजों ने उनका स्वागत किया. इसके बाद उन्होंने राज्यसभा के लिए नामांकन भी भरा.

कांग्रेस और भाजपा ने विधायकों की शिफ्टिंग की
कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को जयपुर रवाना कर दिया और दावा किया था कि उनकी सरकार सुरक्षित हैं. इसी दौरान भोपाल में बीजेपी के बड़े नेताओं की भी बैठक हुई. बैठक के बाद बीजेपी ने भी अपने सभी विधायकों को हरियाणा के मानेसर होटल में शिफ्ट कर दिया.

13 मार्च: कांग्रेस ने सिंधिया समर्थक सभी विधायकों को बर्खास्त किया
13 मार्च को कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल से सिंधिया समर्थक सभी विधायकों को बर्खास्त कर दिया. जबकि मध्य प्रदेश के इस सियासी ड्रामे में अब तक किसी भी विधायक का इस्तीफा उस वक्त के विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने स्वीकार नहीं किया था. लेकिन 14 मार्च को पहली बार एनपी प्रजापति ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी और महेंद्र सिंह सिसौदिया का इस्तीफा स्वीकार कर लिया. इसके बाद मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दिए. लेकिन राज्यपाल के आदेश का विरोध करते हुए कांग्रेस नेताओं ने कहा कि सदन में क्या होगा यह विधानसभा अध्यक्ष तय करेंगे न कि राज्यपाल.

ऑपरेशन लोटस की कहानी… पहली किश्त यहां पढ़ें: कांग्रेस ने डेढ़ दशक बाद पाई सत्ता कैसे 15 महीने में गंवाई? जानें मध्य प्रदेश में ‘ऑपरेशन लोटस’ की कहानी

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