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अजब-गजब: दहकते अंगारों पर कान पकड़कर क्यों चलते हैं यह लोग? ये कैसी परंपरा, जानें

Unique Holi Why do villagers come out holding their ears to the burning embers What kind of tradition is this
दहकते अंगारों से निकलते लोग, होली मनाने की अनूठी परंपरा. फोटो- राजेश रजक

Holi Special: राजधानी भोपाल के पड़ोसी जिले रायसेन के सिलवानी और बेगमगंज में अनोखी होली मनाई जाती है. दोनों स्थानों पर मनाई जाने वाली होली बरसों पुरानी है. यहां पर ग्रामीण दहकते अंगारों से होकर गुजरते हैं. होली का त्योहार मान्यताओं और परंपराओं का समागम है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. कहीं फूलों से होली खेली जाती है, तो कहीं पर लोग एक दूसरे पर लट्ठ बरसाते हुए होली खेलते हैं. लेकिन आपने कभी आग के जलते अंगारों पर चलकर होली खेले जाने के बारे में सुना है. इस पर यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

लेकिन रायसेन जिले के एक गांव में होली के दिन अंगारों पर चलने की परंपरा है और यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. अंधविश्वास कहें या आस्था, लोगों का मानना है कि इससे ग्रामीण आपदा और बीमारियों से दूर रहते हैं. साथ ही साल भर में की गई गलतियों के लिए कान पकड़कर माफी मांगते हुए अंगारों से निकलते हैं. 

रायसेन जिले की सिलवानी तहसील में आने वाले महगवां गांव में अंगारों से होली खेलने की परंपरा है. होली के दिन यहां के लोग जान जोखिम में डालकर अंगारों पर से निकलते हैं, ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा करने से उनका गांव आपदा और दूसरी परेशानियों से सुरक्षित रहता है.

150 साल से चली आ रही है परंपरा
महगवां गांव के लोगों का कहना है कि होली के दिन अंगारों पर चलने की परंपरा उनके गांव में डेढ़ सौ साल से चली आ रही है. गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक नंगे पैर धधकते अंगारों पर ऐसे चलते हैं, मानो सामान्य जमीन पर चल रहे हों. गांव को आपदा से और खुद को बीमारियों और संकटों से दूर रखने के लिए ग्रामीण इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं, ग्रामीणों का दावा है कि इतने गरम अंगारों पर चलने के बाद भी न तो उनके पैरों में छाले पड़ते हैं और न ही किसी तरह की तकलीफ होती है.

होलिका दहन के दूसरे दिन होती परंपरा
ग्रामीणों ने बताया कि होलिका दहन के दूसरे दिन यह परंपरा गांव में निभाई जाती है. गांव के चौराहे पर जलते हुए अंगारों पर रखा जाता है. उसके बाद गांव के पुजारी पूजा करते हैं, पूजा के बाद नंगे पैर अंगारों पर निकलने का सिलसिला शुरू होता है. ग्रामीणों का कहना है कि पहले सभी लोग अंगारों पर चलते हैं उसके बाद सभी एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं.
हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा उनके गांव में कब शुरू हुई, इस बात की कोई सटीक जानकारी तो उनके पास नहीं है. लेकिन बुजुर्ग ग्रामीणों के अनुसार यह परंपरा डेढ़ सौ साल से तो चली आ रही है. इसलिए बुजुर्गों के कहने पर हर साल गांव में यह परंपरा होली पर निभाई जाती है.

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इसलिए अंगारों पर कान पकड़कर निकलते हैं लोग
रायसेन जिले के बेगमगंज के सेमरी ग्राम में 500 साल से चल रही हैं अनोखी परम्परा. इस परंपरा को आस्था या अंधविश्वास नही कहा जा सकता हैं, लेकिन लोगों को विश्वास है. सारा हिंदुस्तान एक साथ होलिका दहन करता है और दूसरे दिन रंगों की होली खेलता हैं लेकिन इस गांव में दूसरे दिन होली जलाई जाती हैं और जलती होली के अंगारो में ग्रामीण कान पकड़ कर निकलते हैं. लोगों मानना हैं कि कान पकड़ कर होली के अंगारो में निकलने से गुनाह माफ हो जाते हैं. उनको विश्वास है कि जब भक्त प्रह्लाद को होली नहीं जला सकी तो हमें भी नही जला सकती. हम कान पकड़कर अपने गुनाहों की माफी मांगते हुए अंगारों से निकल जाते हैं. इस होली के अंगारों से बच्चे, युवा और बुजुर्गों एवं महिलाएं भी निकलती हैंए लेकिन पैर किसी के नही जलते हैं.

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