घने जंगल के बीचो बीच अरण्य पर्वत पर देहार नदी के किनारे विराजीं रानगिर मां हरसिद्धि की अद्भुत महिमा है.
फोटो: एमपी तक
कहा जाता है कि देवी यहां एक दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं.
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इसमें माता रानगिर सुबह के समय कन्या रूप में दोपहर के समय युवा अवस्था में और शाम के समय वृद्ध रूप में दर्शन देती हैं.
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यही वजह है कि नवरात्रि के पर्व पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
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रानगिर माता मंदिर का इतिहास कितना पुराना है, इस बारे में अलग-अलग कहानियां बताई जाती हैं.
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लेकिन घने जंगल के बीच नदी के किनारे पहाड़ी पर विराजीं मां हरसिद्धि को लेकर अलग-अलग किंवदंतियां हैं.
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इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि जब दक्ष के यहां माता सती अपने पति के अपमान की वजह से यज्ञ में कूद पड़ीं, उस समय भगवान शंकर ने मा सती के शव को कंधे पर लेकर खूब तांडव किया था,
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तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए थे. इससे उनके शरीर के अलग-अलग हिस्से विभिन्न जगहों पर गिरे थे.
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जहां-जहां भी माता सती के शरीर के अंग गिरे, वहां 51 सिद्ध पीठ की स्थापना की गई. उन्हीं में से एक सती माता की रान (जांघ) इस क्षेत्र में गिरी थी, जिसकी वजह से इसका नाम रानगिर होना बताया जाता है.
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मंदिर निर्माण को लेकर कहा जाता है कि मुगलों और बुंदेला छत्रसाल के बीच युद्ध हुआ तो उन्होंने माता से जीत की विनती की थी और जब उनकी जीत हुई तो उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था.
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यह सागर मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित है जो बुंदेलखंड का प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र माना जाता है.
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