भारत भूमि को आजाद कराने के लिए कई महान योद्धाओं ने प्राणों की आहुति दी थी, उन्हीं में से एक थे बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल.
फोटो: एमपी तक
महाराजा छत्रसाल ने महज 22 साल की उम्र में मुगलों को रणभूमि में ललकारा था. उनका नाम इतिहास के पन्नों में महान प्रतापी राजा के रूप में दर्ज है.
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उनके इसी पराक्रम और रणकौशल को देखते हुए उन्हें बुंदेल केसरी की ख्याति से नवाजा गया है.
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छत्रसाल ने अपने गुरू प्राणनाथ जी के आशीर्वाद से पन्ना के जंगलों में एक छोटी सी सैन्य टुकड़ी तैयार की थी, उन्होंने मुगलों के क्रूरतापूर्ण दमन और अन्याय के खिलाफ जंग छेड़ी थी.
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महाराजा छत्रसाल का जन्म 4 मई 1706 में बुंदेल राजवंश के महारजा चंपतराय के यहां हुआ था, पिता की मृत्यु के बाद उनका लालन पालन माता लालकुंवारी ने किया था.
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पन्ना राज्य में कुल 14 राजाओं ने शासन किया था, लेकिन छत्रसाल सबसे अलग थे, वे बिना भेदभाव हर वर्ग के साथ न्याय करते थे. उनकी फौज में हिन्दू मुस्लमान दौनों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया.
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पेशवा के लिए छत्रसाल के मन में बेहद सम्मान था और सम्मान दिखाने के रूप में, छत्रसाल ने अपनी खूबसूरत बेटी मस्तानी को दुल्हन के रूप में बाजी राव प्रथम के साथ विदा कर दिया.
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82 साल की अपनी जिंदगी में 52 लड़ाइयां जीतने वाले छत्रसाल के बारे में कविवर भूषण ने कहा था- छत्ता तोरे राज में धक-धक धरती होय, जित-जित घोड़ा मुख करे तित-तित फत्ते होय.
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