मध्यप्रदेश के चुनाव में थर्ड फ्रंट दिखाएगा कमाल या बीजेपी-कांग्रेस को पहुंचाएगा नुकसान? जानें

ADVERTISEMENT

WhatsApp Image 2023-02-12 at 18.03.31
WhatsApp Image 2023-02-12 at 18.03.31
social share
google news

MP POLITICAL NEWS: मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस और बीजेपी के अलावा भी थर्ड फ्रंट के नाम पर कई अन्य राजनीतिक दल भी अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं. हाल ही में 12 फरवरी को राजधानी भोपाल के दशहरा मैदान पर भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने विशाल जनसभा की. दावे किए गए कि 5 लाख लोग चंद्रशेखर की जन सभा को सुनने पहुंचे थे, जिसमें बड़ी संख्या में एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के लोग एकत्रित हुए थे.

वहीं जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन यानी जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर से कांग्रेस विधायक डॉक्टर हीरालाल अलावा भी इस बार दावा कर रहे हैं कि जयस के बैनर तले उनके 80 उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़े होंगे. हालांकि उनकी अपनी पार्टी में उन्हें लेकर कई विवाद हैं. इसके बाद भी वे इस तरह के दावे कर रहे हैं.

उधर आम आदमी पार्टी ने भी घोषणा कर दी है कि मध्यप्रदेश की सभी 230 सीटों पर वह उम्मीदवार उतारेगी और पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी. इसके लिए आम आदमी पार्टी ने हाल ही में अपनी पूरी प्रदेश कार्यकारिणी में भी बदलाव किए हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी भी हमेंशा की तरह मध्यप्रदेश में लगभग सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेंगी.

ADVERTISEMENT

यह भी पढ़ें...

बीजेपी या कांग्रेस किसका खेल बिगाड़ेंगी तीसरे दल के रूप में ये पार्टियां?
इस बार कांग्रेस और बीजेपी के सामने जो थर्ड फ्रंट होगा, उसकी संख्या पिछले चुनावों की तुलना में अधिक होगी. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या मध्यप्रदेश में थर्ड फ्रंट इस स्थिति में है कि वह अपनी दम पर चुनाव जीत सके और सरकार बना ले?. मध्यप्रदेश के बनने के बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ. तो फिर थर्ड फ्रंट के नाम पर दिखने वाली ये पार्टियां चुनावी मैदान कर क्या रही हैं?. पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने हाल ही में बयान दिया कि थर्ड फ्रंट के नाम पर चुनाव मैदान में उतरने वाली पार्टियां सिर्फ कांग्रेस का नुकसान करेंगी और बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा. उन्होंने अपील की है कि जो भी पार्टिंया थर्ड फ्रंट के रूप में चुनाव मैदान में आना चाहती हैं तो वे कांग्रेस का सपोर्ट करते हुए आएं.

कांग्रेस को जिस बात का डर है, क्या वहीं डर बीजेपी को भी है या बीजेपी के लिए ये स्थिति मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है?. इन्हीं सवालों की खोजबीन के लिए MP Tak ने प्रदेश के जाने-माने राजनीतिक विश्लेषकों और वरिष्ठ पत्रकारों से बात की.

ADVERTISEMENT

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता बताते हैं, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 109, कांग्रेस को 114 सीट मिली थी लेकिन बहुमत के लिए 116 सीट की जरूरत थी. क्योंकि उस समय सपा को एक, बसपा को दो और निर्दलीय उम्मीदवारों को 4 सीटें मिल गई थी. इस वजह से कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टी इनको पूछ रही थी. क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों को  ही स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. इसलिए यह पार्टियां उस समय खुद को किंग मेकर की भूमिका में बता रही थी. लेकिन आज मध्यप्रदेश में उस तरह का राजनीतिक माहौल नहीं है. जहां पर बीजेपी या कांग्रेस को इन छोटे दलों के सहारे चुनाव में उतरना पड़े.

ADVERTISEMENT

आदिवासी CM पर हीरालाल अलावा ने चंद्रशेखर रावण को किया खारिज, कहा- ‘बातों से नहीं बहुमत से तय होता है सीएम’

वरिष्ठ पत्रकार एलएन शीतल बताते हैं मध्य प्रदेश का राजनीतिक इतिहास दो दलों का रहा है. अधिकतर चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही लड़े गए है. समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी मध्य प्रदेश के हर चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारती हैं, लेकिन ज्यादातर कांग्रेस और बीजेपी के नाराज उम्मीदवार या बागी उम्मीदवार ही इन पार्टियों से टिकट लाकर अपने दम पर चुनाव लड़ने की कोशिश करते हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति में सपा, बसपा या अन्य किसी पार्टी का ग्राउंड पर बहुत ज्यादा कोई असर नहीं होता है. संगठन के स्तर पर भी इन पार्टियों का मध्यप्रदेश में बहुत ज्यादा कोई वजूद नहीं है.

मध्यप्रदेश में भाजपा को नहीं है ‘गठबंधन’ की जरूरत! भाजपा के आदिवासी नेता गुमानसिंह डामोर ने कही बड़ी बात!

राजनीतिक विश्लेषक जगमोहन द्विवेदी कहते हैं मध्य प्रदेश की जनता का यह दुर्भाग्य है कि उनके सामने कोई थर्ड फ्रंट है ही नहीं. यदि होता तो उनको बीजेपी या कांग्रेस दोनों में से ही किसी एक को चुनने की मजबूरी नहीं होती. थर्ड फ्रंट के नाम पर सपा और बसपा ज्यादातर टिकट बेचने का काम करते हैं. अपने दम पर जो जीत कर आ जाए, वह आ जाता है. उनकी जीत में सपा या बसपा का संगठन के स्तर पर कोई बहुत ज्यादा योगदान नहीं होता है. बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उम्मीदवार की मजबूती के लिहाज से उसके क्षेत्र में जाकर एक दो जनसभा जरूर कर आते हैं. इससे अधिक भूमिका सपा-बसपा या किसी तीसरे दल की मध्य प्रदेश की राजनीति में नजर नहीं आती है.

MP: तीसरे मोर्चे से प्रार्थना, कांग्रेस का साथ दें वरना BJP को मिलेगा फायदा! जयवर्धन सिंह ने ऐसा क्यों कहा?

कांग्रेस का डर जायज, बीजेपी को मिल सकता है फायदा!
कई अन्य राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह का डर जायज है. दरअसल तीसरे मोर्चे के रूप में यदि एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के वोट भीम आर्मी, बसपा, सपा, आप जैसी पार्टियों में बंट जाएंगे तो उसका नुकसान कांग्रेस को अधिक होगा. बीजेपी के आंतरिक सर्वे में कई ऐसी सीटें सामने आईं थी, जिसमें बीजेपी एससी-एसटी वर्ग के बीच कमजोर दिखाई दे रही थी. यहीं वजह है कि अपनी स्थिति को मजबूत करने बीजेपी ने विकास यात्रा 5 फरवरी को संत रविदास जयंती पर शुरू की और एससी-एसटी वर्ग के लोगों को अपनी ओर खींचने उनको लाभ पहुंचाने कई योजनाओं की घोषणा भी की. एससी-एसटी वर्ग के महापुरुषों के नाम पर इमारतों और स्थानों के नाम भी किए गए ताकि एससी-एसटी वर्ग को बीजेपी अपनी ओर ला सके. इसके बाद भी एससी-एसटी वर्ग बीजेपी से नाराज रहता है और भीम आर्मी, बसपा, जयस जैसे संगठन सामने होते हैं तो वे कांग्रेस को वोट न देते हुए अन्य दलों को वोट देंगे. साफ है कि वोट कांग्रेस के कटेंगे और बीजेपी को इस स्थिति से सीधे तौर पर लाभ मिलेगा.

भोपाल में चंद्रशेखर रावण की हुंकार, बोले- MP में आदिवासी सीएम बनाएंगे, दावा- दशहरा मैदान में जुटे 5 लाख लोग

2018 के विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा का प्रदर्शन
2018 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 230 विधानसभा सीटों में से 225 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से सिर्फ एक बिजावर सीट पर राजेश शुक्ला जीते थे. उसी तरह बहुजन समाज पार्टी से भिंड में संजीव सिंह और दमोह के पथरिया में रामबाई चुनाव जीती थी. 4 उम्मीदवार निर्दलीय जीते. बाद में उन्होंने कमलनाथ की कांग्रेस सरकार का समर्थन किया था.

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT