Unique Bridge: 9 साल से परेशान जबलपुर के लोग सोच रहे हैं कि इस पुल में चढ़ें कहां से उतरें कैसे?
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'एमपी अजब है सबसे गजब है...' यह तो आपने सुना ही होगा लेकिन अजब एमपी में कई तस्वीर है ऐसी भी देखने को मिलती हैं, जो सिस्टम पर सवालिया निशान लगाती हैं.
Jabalpur Unique Bridge: 'एमपी अजब है सबसे गजब है...' यह तो आपने सुना ही होगा लेकिन अजब एमपी में कई तस्वीर है ऐसी भी देखने को मिलती हैं, जो सिस्टम पर सवालिया निशान लगाती हैं. ऐसी ही एक तस्वीर जबलपुर से सामने निकल कर आई है, जो भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण है और यह कहने पर मजबूर करती है कि वाकई एमपी गजब है. देखिए एक खास रिपोर्ट...
इस पुल की तस्वीरों को देखकर आप कुछ देर के लिए सोचने पर तो मजबूर जरूर हो गए होंगे. अगर अब भी आप कुछ समझ में नहीं आया है तो हम आपको बताते हैं कि यह पुल अपने आप में अनोखा क्यों है. जरा इस पुल को गौर से देखिए यह पुल बनकर तो तैयार हो गया है. लेकिन इस पुल पर ना आप चढ़ सकते हैं. ना कहीं से उतर सकते हैं. पिछले 9 सालों से यह पुल ऐसे ही बनकर खड़ा है.
जबलपुर मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर पनागर और जबलपुर क्षेत्र को जोड़ने वाली परियट नदी पर इस पुल का निर्माण हुआ है. इसके लिए कई करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत हुआ. 18 सितंबर 2015 को इसका भूमिपूजन हु़आ. इसे जुलाई 2016 में बनकर तैयार हो जाना था. मगर यह 9 साल बाद भी अधूरा पड़ा हुआ है.
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत मिली थी मंजूरी
जबलपुर जिले मैं ग्राम मटामर के पास परियट नदी पर उच्चस्तरीय पुल का निर्माण इसलिए किया जा रहा था, क्योंकि बारिश में जैसे ही जलस्तर बढ़ता है, यहां बना छोटा रपटा डूब जाता है. इस पर 8 से 10 फीट तक पानी आ जाता है. ऐसे में लोग चाहकर भी शहर नहीं आ पाते थे. ऐसे में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत पुल के निर्माण को मंजूरी मिली तो ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे. लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि यही पुल उनके लिए एक बड़ा सर दर्द बन जाएगा. यह रास्ता जबलपुर और पनागर क्षेत्र के करीब 15 से 20 गांव को जोड़ने का काम करता है. पुल के पूरे ना होने की वजह से ग्रामीणों को बारिश के दिनों में 20 किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ता है.
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9 साल से पूरा नहीं हो पाया पुल का निर्माण
2015 से शुरू हुए पुल का निर्माण 2024 में भी पूरा नहीं हो पाया. पिछले 9 सालों में पुल के निर्माण में कई तरह की रुकावटें भी आई है. 2018 के करीब पुल का एक हिस्सा गिर गया था जिसकी वजह से पुल का काम रुक गया. वहीं पुल के एक छोर पर रक्षा विभाग की भी जमीन आ रही थी जिसकी वजह से मध्य प्रदेश सरकार रक्षा विभाग के बीच जमीन को लेकर पत्राचार चलता रहा. जब इस पुल के निर्माण की स्वीकृति मिली थी. तभी इन बातों का ध्यान क्यों नहीं दिया गया था.
निर्माण एजेंसी मध्यप्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण के अधिकारी लोकेश रघुवंशी का कहना है की रक्षा विभाग से उन्हें जमीन मिल गई है. अब कुछ महीनो में पुल की एप्रोच रोड बनकर तैयार कर ली जाएगी. जल्द ही ग्रामीणों का पुल का लाभ मिल पाएगा.
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9 सालों में स्मारक बन गया पुल
अब सवाल यह उठता है कि 16 माह में एयरपोर्ट बनने पर जहां प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश को बधाई देते हैं. वहीं पिछले 9 सालों से यह पुल एक स्मारक की भूमिका निभा रहा है. पुल के निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार हुआ. लागत राशि को भी बढ़ाया गया और ग्रामीणों को आज भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस छोटे से पुल के निर्माण में अगर 9 साल लग सकते हैं तो उसके पीछे भ्रष्टाचार और जिम्मेदारों की लापरवाही ही बड़ी वजह है.
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