गोंड आदिवासी: 25 हजार आदिवासियों को नहीं मिल रही पहचान, सरकार से लगाई गुहार

विकास दीक्षित

06 Feb 2023 (अपडेटेड: Feb 6 2023 12:15 PM)

Gond Tribes MP: गुना जिले में गोंड आदिवासी अपनी जाति के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आदिवासी होने के बावजूद उन्हें जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा. पिछले 10 वर्षों से संघर्षरत गोंड आदिवासियों के हित में न ही शासन और न ही प्रशासन ने सुध ली है. आम बोली में इन आदिवासियों […]

Gond tribal 25 thousand Gond tribals recognition appealed to the government

Gond tribal 25 thousand Gond tribals recognition appealed to the government

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Gond Tribes MP: गुना जिले में गोंड आदिवासी अपनी जाति के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आदिवासी होने के बावजूद उन्हें जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा. पिछले 10 वर्षों से संघर्षरत गोंड आदिवासियों के हित में न ही शासन और न ही प्रशासन ने सुध ली है. आम बोली में इन आदिवासियों को ‘खेरुआ’ जाति के साथ जोड़कर उन्हीं की जाति का कहा जाने लगा. खेरुआ जाति खेर की लकड़ी से कत्था बनाने का काम करती थी. इसलिए इन आदिवासियों का नाम खेरुआ पड़ गया. जबकि गौड़ आदिवासी खेरुआ न होकर पूर्णतः आदिवासी थे. लेकिन खेरुआ जाति के पारंपरिक कार्य करने के कारण गोंड आदिवासियों को भी खेरुआ जाति में जोड़ दिया गया जो पिछड़ा वर्ग में आती है.

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गोंड आदिवासी टकनेरा, हांसली, हिन्नौदा, भैरव घाटी, हनुमतपुरा, बन्नाखेड़ा, मसूरिया, खर्राखेड़ा, भावपुरा, बेरखेड़ी, रुठियाई, भदौड़ी समेत 22 गांवों में इनका निवास है. गोंड आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहे भारतीय मजदूर संघ के विभाग प्रमुख धर्मस्वरूप भार्गव ने बताया कि वर्ष 2002 के बाद में गोंड आदिवासियों की जाति बदलती चली गई. शासन द्वारा आदिवासियों को पिछड़ी जाति में दर्ज कर दिया गया और प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए. वर्तमान में मजदूरी करते हुए अपना भरण पोषण कर रहे हैं. गुना जिले से पलायन करते हुए गुजरात ,राजस्थान समेत अन्य राज्यों में मजदूरी के लिए जाते हैं.

धर्मस्वरूप भार्गव ने कहा कि गोंड आदिवासी पिछले 11 सालों से अपने अधिकारों से वंचित हैं. दोषी अधिकारियों की भूल के कारण गोंड आदिवासियों को शासकीय योजनाओं का लाभ नहीं मिला. पिछड़ा वर्ग के लिए जो नोटिफिकेशन जारी किया गया, उसमें से भी खेरुआ जाति को विलोपित कर दिया गया है. जिन अधिकारियों के कारण गौड़ आदिवासी लाभ से वंचित रह गए उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाए.

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जाति बदलने को लेकर अब आंदोलन के मूड में गोंड आदिवासी
गुना जिले के 25000 गौड़ आदिवासियों की जाति बदले जाने को लेकर प्रवासी आयोग के सदस्य विनोद रिछारिया को वनवासियों ने ज्ञापन सौंपा है. भारतीय मजदूर संघ के विभाग प्रमुख धर्म स्वरूप भार्गव समेत गौड़ आदिवासी संघर्ष मोर्चा के जिला संयोजक पूरन पटेल मौजूद रहे. प्रवासी आयोग के सदस्य विनोद कुमार रिछारिया ने गुना पहुंचकर प्रवासी मज़दूरों से चर्चा करते हुए मध्यप्रदेश में पर्याप्त रोजगार एवं मजदूरी के अवसर सहजता से उपलब्ध कराने के लिए प्रभावी नीति बनाने की बात कही. आयोग के सदस्य ने कहा कि वे मजदूरों की बात शासन के सामने रखेंगे.

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आदिवासियों ने अधिकारियों और सरकार से लगाई गुहार
गौड़ आदिवासियों ने नेताओं से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों को भी आवेदन देकर मदद करने की गुहार लगाई। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी 2010 में आवेदन देकर गुहार लगाई थी। तत्कालीन कलेक्टर विजय दत्ता द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों को उक्त आदिवासियों से संपर्क करते हुए जाति के मामले को सुलझाने के निर्देश दिए गए थे. वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन अवर सचिव के के कात्या ने भी वर्ष 2017 में गौड़ आदिवासियों के जाति संबंधी विषय स्थानीय कलेक्टर से चर्चा की थी.

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वर्तमान में गौड़ आदिवासियों को सामान्य जाति से जोड़ दिया
9 फरवरी 2018 को सामान्य प्रशासन मध्यप्रदेश शासन ने आदेश पारित किया था, लेकिन आज तक उस आदेश का अनुपालन नहीं किया गया. वर्तमान में गौड़ आदिवासियों को सामान्य जाति में जोड़ दिया गया है. अनुसूचित जनजाति तो दूर अब इनके जाति प्रमाण पत्र ही नहीं बनाए जा रहे हैं. लेकिन इन सभी भागदौड़ के बावजूद गौड़ आदिवासी आज भी जस के तस हैं. अन्य राज्यों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. नई पीढ़ी भी मजदूरी करने को मजबूर है. यदि शासन गौड़ आदिवासियों के संघर्ष की ओर ध्यानाकर्षण करता है तो वर्षों से चले आ रहे जाति के संघर्ष को विराम मिल सकेगा.

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