Digvijay Singh: मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में एक नारा बहुत चर्चा में रहा था- ‘माफ करो महाराज’, बाद में महाराज या श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद पाला बदलकर भाजपा में आ गए और नारा भी उसके साथ ही खत्म हो गया. अब राजा को लेकर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने खुद ही आपत्ति जताई है. उन्होंने भोपाल में हुई एक सभा में कहा कि लोकतंत्र राजशाही में नही होता है, लोकतंत्र जनता के राज में होता है. इसीलिए मुझे राजा कहकर संबोधित करना ठीक नही. मैं राजशाही का प्रतीक नही हूं. मैं लोकशाही का प्रतीक हूं. दिग्विजय ने लोकतंत्र में युवाओं की भूमिका विषय पर लोकतंत्र प्रहरी संस्था द्वारा भोपाल के रविन्द्र भवन में आयोजित यूथ कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे.
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दिग्विजय ने कहा- मुझे राजा-राजा कहना बंद कर दो। दिग्विजय कहो या दिग्विजय जी कहो. असल में, यूथ सम्मेलन में मंच संचालक और दूसरे वक्ता दिग्विजय को ‘राजा साहब’ कहकर संबोधित कर रहे थे. जैसे ही, उनके बोलने का नंबर आया. उन्होंने शुरुआत में ही कहा कि लोकतंत्र राजशाही में नहीं होता, लोकतंत्र जनता के राज में होता है, इसलिए जब बार-बार वक्ता मुझे राजा कह रहे थे, इसमें आपत्ति है.
पेसा कानून सबसे पहले एमपी में लागू हुआ
दिग्विजय सिंह ने कहा- पेसा का कानून 1996 में बना दोनों संसद में सर्वसम्मति से पास हुआ, लेकिन 1996 के बाद एकमात्र राज्य मध्यप्रदेश था, जहां पेसा कानून के नियम बनाने के लिए आईएएस अधिकारी डॉ. वीडी शर्मा को नियम बनाने के लिए तैनात किया गया था. मध्यप्रदेश के ही अधिकारी थे, उन्होंने नियम बनाए. 1998 में पहली ग्राम सभा हमने बस्तर में एक पेड़ के नीचे की थी. कहा था- जो निर्णय होगा, वह यह ग्रामसभा करेगी. ग्राम स्वराज का कानून बना नियम बने, लेकिन 2003 के बाद सब ठप कर दिया.
महू की घटना में न्याय मांगने वालों पर केस
इंदौर के महू में आदिवासी युवती की मौत के मामले पर दिग्विजय सिंह ने कहा- उसकी हत्या होने के बाद पुलिस एफआईआर लिखने से मना करती है. कहती है कि उसकी करंट से मौत हुई है. पोस्टमार्टम नहीं होता. जब आदिवासी युवकों ने घेराव किया, तब मजबूरी में एफआईआर लिखी, लेकिन गोलियां चलाईं. एक आदिवासी युवक की मौत हो गई. उसके बाद ये पता चलता है कि जिन लोगों ने न्याय की गुहार लगाई उन्हीं लोगों पर केस दर्ज कर दिया गया, ये बीजेपी का राज है.
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देश में लोकतंत्र के नाम पर चल रही डिक्टेटरशिप
दिग्विजय ने कहा कि अनेकों उदाहरण हैं, जब नरेन्द्र मोदी ने विदेशों में जाकर पूर्व की सरकारों के खिलाफ भाषण दिया. हमने तो कभी नहीं कहा कि माफी मांगिए, लेकिन अडाणी के प्रकरण की संसद में चर्चा न हो, इसलिए सदन न चलने दो, माफी मांगो. जब वे सदन में अपनी बात कहने पहुंचे, तो माइक ऑफ कर दिया. सदन स्थगित कर दिया गया. इनको न तो लोकतंत्र में भरोसा है और न ही भारतीय संविधान में भरोसा है. देश में लोकतंत्र के नाम पर डिक्टेटरशिप चलाई जा रही है.
दिग्विजय सिंह ने कहा कि राहुल गांधी मांग कर रहे हैं कि कॉर्पोरेट घराना गौतम अडाणी को लाभ दिया गया, उनके खिलाफ जांच करके प्रतिवेदन में गड़बडी की बात मिली. जिन लोगों ने अडाणी के शेयर खरीदे थे, उनको नुकसान हो जाता है. इसकी जांच होना चाहिए, ये मांग राहुल गांधी ने की, लेकिन उनके भाषण में जहां-जहां अडाणी और मोदी जी का उल्लेख आया, उसे सदन की कार्रवाई से विलोपित कर दिया गया.
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