किसके हाथ आएगा महाकौशल का गढ़ जबलपुर? कांग्रेस को लगा यहां 'सूखा रोग', तैयार है PM मोदी का मेगा प्लान
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Jabalpur Lok Sabha Seat: महाकौशल के गढ़ जबलपुर में भी बीजेपी मजबूत तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही है तो वहीं कांग्रेस की हालत यहां पहले से ही खराब है और वर्तमान तैयारियों को देखकर ये चिंतनीय नजर आ रही है. जबलपुर लोकसभा सीट को कांग्रेस बीते 28 साल से नहीं जीत सकी है. उससे पहले भी कांग्रेस को बीजेपी और अन्य दल कड़ी चुनौती देते आए हैं. लेकिन बीते 28 साल से तो कांग्रेस यहां दोहरा वनवास झेल रही है. वहीं बीजेपी ने मजबूत स्थिति में होने के बावजूद ग्राउंड पर आक्रामक प्रचार की रणनीति पर फोकस किया है, जिसके तहत आगामी 7 अप्रैल को खुद पीएम नरेंद्र मोदी जबलपुर में एक बड़ा रोड शो करने जा रहे हैं.
पीएम मोदी के इस रोड शो से पहले से ही कमजोर नजर आ रही कांग्रेस की चिंता बढ़ सकती है. कांग्रेस को बड़ा झटका तभी लग गया था जब कांग्रेस के कद्दावर नेता और जबलपुर महापौर जगत बहादुर अनु कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में चले गए थे. जबकि कांग्रेस पार्टी में उनको लोकसभा चुनाव लड़ाने की पूरी तैयारी कर ली गई थी लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने कांग्रेस को ही छोड़ दिया, जिसके बाद कांग्रेस को उम्मीदवार को तलाश करने में खासा माथा-पच्ची करना पड़ी है.
विधानसभा चुनाव के बाद महापौर जगत बहादुर अनु को कांग्रेस की ओर से लोकसभा प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा था लेकिन उनके जाने के बाद कांग्रेस के अंदर प्रत्याशी के नाम को लेकर मंथन चला. फिर जबलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के अंदर गहन चिंतन और मनन के बाद दिनेश यादव का नाम उम्मीदवार के रूप में सामने आया. दिनेश यादव के राजनीतिक जीवन की बात करें तो वह पार्षद रह चुके हैं और फिलहाल में उनका बेटा पार्षद है. वह कांग्रेस पार्टी के दो बार नगर अध्यक्ष की कमान भी संभाल चुके हैं.
वहीं भाजपा के प्रत्याशी आशीष दुबे ने ग्रामीण परिवेश में अपना जीवन बिताया है और वह भारतीय जनता पार्टी के कई संगठन पदों पर रह चुके हैं. फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मंत्री के रूप में अपना कार्य कर रहे थे.
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जबलपुर लोकसभा सीट का कुछ ऐसा है इतिहास
जबलपुर लोकसभा सीट का राजनीति इतिहास भी बड़ा रोचक है. आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में जबलपुर में दो सीटें थीं. साल 1951 में हुए आम चुनाव में जबलपुर उत्तर सीट से कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया जीते थे तो मंडला-जबलपुर दक्षिण सीट से मंगरु गुरु उइके पहले सांसद बने. इसके बाद 1957 में जबलपुर और मंडला दो अलग-अलग संसदीय क्षेत्र बन गए. इस साल दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के सेठ गोविंद दास जीते. इसके बाद उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा. सेठ गोविन्द दास ने 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में भी जीत दर्ज की. इसके बाद 1974 में हुए चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना और महज 27 साल के छात्र राजनीति से उभरे नेता शरद यादव चुनाव जीत गए. इसके बाद 1977 में शरद यादव ने एक बार फिर जबलपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस के जगदीश नारायण अवस्थी को हराकर जीत दर्ज की थी.
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1996 से जबलपुर लोकसभा सीट बन गई बीजेपी का अभेद किला
पहले आम चुनाव के बाद से 1974 तक जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. साल 1982 में पहली बार जबलपुर में कमल का फूल खिला और बाबूराव परांजपे बीजेपी के पहले सांसद बने. दो साल बाद ही 1984 में कांग्रेस ने सीट पर फिर से कब्जा कर लिया, जब कर्नल अजय नारायण मुशरान ने आम चुनाव में बाबूराव परांजपे को पराजित कर दिया. 1989 के चुनाव में यह सीट फिर बीजेपी के खाते में आ गई. साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा जमा लिया.
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इसके बाद 1996 से जबलपुर लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ बन चुकी है. वर्तमान में राज्यसभा सदस्य विवेक तंखा जैसे धुरंधर भी दो बार यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए. जबलपुर सीट से बीजेपी नेता बाबूराव परांजपे तीन बार, जयश्री बैनर्जी एक बार और राकेश सिंह चार बार सांसद बने.
अब साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों से ही नए चेहरे देखने को मिले जहां भाजपा से आशीष दुबे वहीं कांग्रेस से दिनेश यादव को पार्टियों ने अपना उम्मीदवार बनाया है. क्योंकि जबलपुर के सांसद रहे राकेश सिंह 2023 विधानसभा चुनाव में जबलपुर की पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन गए हैं और फिलहाल प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री हैं.
जबलपुर में हैं 18 लाख से अधिक मतदाता
जबलपुर संसदीय सीट में कुल कुल 18 लाख, 94 हजार 304 मतदाता है. इनमें पुरुष मतदाता 9 लाख 61 हजार 997 और महिला मतदाता 9 लाख 32 हजार 212 शामिल हैं. जबलपुर लोकसभा सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं. फिलहाल 8 विधानसभा क्षेत्र में से सात पर बीजेपी का कब्जा है और एक विधानसभा सीट कांग्रेस के पास है. जबलपुर लोकसभा में कुल मतदान केंद्रों की संख्या 2130 है. वही संवेदनशील मतदान की संख्या 504 है.
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