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मंजू सरपंच का फैन था पूरा गांव फिर अचानक छोड़ दी सरपंची, अब पूरा करेंगी ये सपना

जैद अहमद शेख

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Positive Story: सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आते हुए आपने बहुतेरे लोगों को देखा-सुना होगा, लेकिन एक महिला ऐसी भी है, जिसने राजनीति छोड़कर आदिवासी तबके के बच्चों के भविष्य को संवारने का फैसला लिया है. वह सरकारी टीचर बनकर. जी हां, हम बात कर रहे हैं बड़वानी जिले के अंजड़ की बेटी जिनका ब्याह बिल्वा रोड के युवक से हुआ था और वह पिछले साल वहां की सरपंच बन गई थी और काफी लोकप्रिय भी थीं. लेकिन अब उनका चयन शिक्षक के रूप में हो गया है. इसलिए काफी सोच-विचार के बाद अपनी अच्छी-खासी सरपंची अचानक छोड़ दी है. इतना ही नहीं सरपंची छोड़कर मंजू ने अब बच्चों की भविष्य संवारने का फैसला किया है.

टीचर बनने के लिए सरपंच की कुर्सी छोड़ने का फैसला लेने वाली महिला का नाम मंजू है और वह सरपंच के तौर पर काफी लोकप्रिय भी थी, मंजू ग्राम बिल्वारोड में 14 जुलाई 2022 को बतौर सरपंच पद पर नियुक्त हुई थी, अब सरपंच पद से त्यागपत्र देकर शिक्षक बनने जा रही है. बता दें कि मंजू राठौर अंजड की रहने वाली हैं. बीएड कर चुकी बहू को बिल्वा रोड के ग्रामीणों ने करीब दस महीने पहले गांव के लोगों ने अपना सरपंच चुना था.

सरपंच रहते हुए गांव के विकासकार्यों के साथ ही मंजू राठौर ने संविदा शिक्षक वर्ग तीन की परीक्षा दी. जब परीक्षा रिजल्ट आया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था. एक दुविधा थी कि अब गांव में रहकर सरपंच बनकर गांव की तस्वीर बदलें या फिर शिक्षक बनकर बच्चों का भविष्य संवारे. काफी सोच विचार के बाद मंजू राठौर ने सरपंची पद छोड़ने का फैसला लिया और सरपंची की कुर्सी छोड़कर पति के साथ शुक्रवार त्यागपत्र देने के लिए ठीकरी जनपद सीईओ केआर कानुडे़ को पंचायत इंस्पेक्टर की उपस्थिति में सौंपा.

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यहां संभालेंगी शिक्षक पद
वे अब शासकीय शिक्षक के तौर पर ग्राम चौतरीयां में नौकरी ज्वाइन करेंगी. इस दौरान मंजू राठौर ने जब जनपद सीईओ और अधिकारियों को अपने पद से इस्तीफा देने के दस्तावेज देते हुए सरपंच पद छोड़कर शिक्षक बनने के अपने फैसले के बारे में बताया तो अधिकारियों ने भी उनकी जमकर तारीफ की. मिठाई खिलाकर मुंह मीठा कराया गया.

टीचर बनने का था सपना
मंजू कान्हा राठौर ने बताया कि उन्होंने बिल्वारोड के सरपंच पद से त्यागपत्र दे दिया है. जरूरी नहीं कि राजनीतिक क्षेत्र में ही रहकर सेवा की जा सकती हैं. मेरा हमेशा मन में शिक्षिका बनने का सपना रहा है. उन्होंने आगे बताया कि वे आदिवासी क्षेत्र के बच्चों को अच्छे संस्कार और शिक्षा देकर उनका भविष्य बनाना चाहती है.

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बच्चों का गढ़ सकती हैं भविष्य
उनका मानना है कि जो भी आगामी समय में गांव का सरपंच बने वो निस्वार्थ भाव से सभी के काम करें और गांव को उन्नति पर ले जाए. उन्होंने कहा कि जब संविदा वर्ग तीन में उसका चयन हुआ तो उन्होंने सोचा कि सरपंच बनकर वह सिर्फ एक गांव का विकास कर सकती है, लेकिन टीचर बनने के बाद कई बच्चों का भविष्य बना सकती है. उन्हें अच्छा इंसान बना सकती है, जिससे वो एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें. इसलिए सरपंच का पद छोड़ शिक्षक बनने का फैसला लिया.

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