Bandhavgarh National Park: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में अब बारहसिंगों का दीदार हो सकेगा. प्रोजेक्ट बारहसिंगा के तहत बांधवगढ़ में 50 बारहसिंगों को छोड़ा जा रहा है. इन्हें कान्हा किसली नेशनल पार्क से लाया जा रहा है. इसके लिए 50 हेक्टेयर की जमीन में बाड़ा तैयार किया गया है. आज वन मंत्री विजय शाह की मौजूदगी में बांधवगढ़ के परासी गेट में एक आयोजन के बाद, बारहसिंगों को बाड़े में छोड़ा जाएगा.
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कभी पूरे मध्यभारत में पाए जाने वाले बारहसिंगा अब विलुप्ति के कगार पर आ गए थे. अब इनके संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बारहसिंगों को बसाने की योजना है. इसी के तहत आज 50 बारहसिंगों को कान्हा टाइगर रिजर्व से लाया जा रहा है. इसके लिए बांधवगढ़ नेशनल पार्क के मगधी जोन में पचास हेक्टेयर का बाड़ा तैयार किया गया है. बाड़े की ऊंचाई इतनी रखी गयी है कि बाघ भी उसे फांद न सके.
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प्रोजेक्ट बारहसिंगा
प्रोजेक्ट बारहसिंगा के अंतर्गत जिस प्रजाति को बांधवगढ़ लाया जा रहा है वह पूरे विश्व में सिर्फ कान्हा टाइगर रिजर्व में पाई जाती है. ये प्रजाति(रुसेवर्स डूर्वासेली ब्रेंडरी) कठोर जमीन पर खुले घास के मैदानों में पाई जाती है, जो मध्यभारत में सिकुड़कर सिर्फ कान्हा नेशनल पार्क तक सीमित रह गए थे. इसके पहले कान्हा से ही 25 बारहसिंगा सतपुड़ा के बोरी अभ्यारण्य में बसाए गए हैं. आज बांधवगढ़ के परासी गेट में वन मंत्री विजय शाह की मौजूदगी में एक आयोजन के बाद बारहसिंगों को बाड़े में छोड़ा जाएगा.
असुरक्षित जीव की श्रेणी में है शामिल
बारहसिंगा, हिरण की ही एक प्रजाति है जो उत्तरी और मध्यभारत से लेकर दक्षिण पश्चिम नेपाल तक में पाया जाता था. पाकिस्तान और बांग्लादेश में यह विलुप्त हो चुका है. इसकी सींग में 10-16 शाखाएं होती हैं, जिसकी वजह से इसका नाम बारहसिंगा अर्थात बारह सींग वाला पड़ा. गुजरात में इसके 1000 वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं. लेकिन पश्चिमी आवास से विलुप्त होकर मध्यभारत में भी इसकी जनसंख्या लगातार कम होती जा रही थी. सिकुड़कर खतरे की श्रेणी में आ गयी थी. अभी भी यह IUCN (अंतराष्ट्रीय पर्यावरण सरंक्षण संघ) की असुरक्षित जीव की श्रेणी में है.
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