Rajgarh Loksabha Seat: 33 साल बाद अपने पुराने किले पर फिर चुनावी मैदान में उतरे दिग्विजय सिंह का ये आखिरी चुनाव है. ऐसा हम नहीं, बल्कि खुद दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि ये उनका आखिरी चुनाव है. इस चुनाव के बाद वे कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. राजगढ़ लोकसभा सीट पर मुकाबला फिलहाल 50-50 का माना जा रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि न तो यहां दिग्विजय सिंह कोई कसर छोड़ रहे हैं और न ही बीजेपी की तरफ से कोई कसर छोड़ी जा रही है. दोनों ही राजनीतिक दल किसी भी कीमत पर राजगढ़ जीतना चाहते हैं. राजगढ़ का राजनीतिक इतिहास कैसा है, आइए जानते हैं.
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पूर्व मुख्यमंत्री 'वादा निभाओ यात्रा' के जरिए हर विधानसभा में तीन दिन की पदयात्रा कार्यक्रम कर लोगों के बीच पहुंचकर अपनी बात रख रहे हैं. वहीं भाजपा के रोड़मल नागर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किए गए विकास कार्यों के भरोसे नैया पार लगाने की कोशिश रहे हैं.
आठ विधानसभाओं में से 6 पर बीजेपी का कब्जा
आठ विधानसभाओं से बने राजगढ़ संसदीय सीट पर राजगढ़ जिले की ब्यावरा, राजगढ़, नरसिंहगढ़, सारंगपुर, खिलचीपुर पांच सीट हैं, वहीं गुना जिले की दो सीट- चांचौड़ा और राघोगढ़ हैं, उधर आगर मालवा जिले की सुसनेर सीट हैं. आठ विधानसभा में छह विधायक भाजपा के हैं, वहीं दो विधायक कांग्रेस के हैं.
ये मेरा आखिरा चुनाव बताकर मांग रहे वोट
दिग्विजय सिंह स्पष्ट कर चुके हैं कि ये उनका आखिरी चुनाव है. पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि, "मैं आपसे कहने के लिए आया हूं कि यह मेरा आखिरी चुनाव है और मैं यहां जनता की लड़ाई लड़ने के लिए आया हूं. मेरी जनता से बस यह प्रार्थना है कि 10 साल आपने एक संसद सदस्य को आजमाया है. अब पांच साल मुझे भी आजमा कर देखिए. आपको निराश नहीं होने दूंगा."
बीजेपी प्रत्याशी पीएम मोदी के भरोसे
भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर खुद कह रहे हैं कि आप मुझे वोट मत दीजिए, भाजपा और नरेंद्र मोदी को दीजिए. यह चुनाव पूरा नरेंद्र मोदी के ऊपर है. एक समय था जब राजगढ़ को दिग्विजय सिंह का गढ़ कहा जाता था. लेकिन अब चुनाव कौन जीतेगा ये कहना मुश्किल है. इस सीट पर कांटे की टक्कर है. आपको बता दें कि पिछले दिनों रोडमल नागर खुद जनता से मांफी मांग चुके हैं. उन्होंने सीएम मोहन यादव की मौजूदगी में कहा था कि पुरानी बातों को भूलकर इस बार मोदी जी के लिए वोट करें.
आपको बता दें पिछले दिनों बीजेपी प्रत्याशी के समर्थन में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने जनसभा को संबोधित किया था. उसमें उन्होंने दिग्विजय पर तंज कसते हुए कहा "आशिक का जनाजा है बड़ी धूमधाम से विदा करना है"
अमित शाह के इस गरमा गरम बयान के बाद दिग्विजय सिंह ने भी उनको झूठा बताते हुए ट्वीट पर ट्वीट कर डाले. बीजेपी यही चाहती थी कि सारा चुनाव का फोकस रोडमल नागर से हटकर दिग्विजय सिंह वर्सेज अमित शाह हो जाए. यही हुआ भी. अब राजगढ़ के ग्राउंड पर बीजेपी भी दिग्विजय सिंह को टक्कर देती नजर आ रही है तो वहीं दिग्विजय सिंह ने भी अपने गृह क्षेत्र में आखिरी चुनाव का इमोशनल कार्ड खेलकर जनता को अपनी तरफ खींचने की भरसक कोशिश की है. अब देखना होगा कि 7 मई को राजगढ़ की जनता किसका जनाजा वोट देकर निकालती है.
77 साल के हो गए हैं दिग्विजय सिंह
दिग्विजय सिंह के आगे चुनाव न लड़ने की मुख्य वजह यह है कि वे अब 77 साल के हो चुके हैं. यही कारण है कि वे अपनी उम्र को देखते हुए आगे चुनाव न लड़ने के मूड में हैं. उन्होंने कुछ समय पहले खुद ही कहा था कि अब उम्र हो चुकी है. इसलिए यह उनका आखिरी चुनाव होगा. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि जनता उनका और कांग्रेस का समर्थन करेगी, और 33 साल बाद वापस लौटे अपने पुराने किले पर दिग्विजय सिंह को एक बार फिर जीत हाथ लग सकती हैं? बहरहाल देखना होगा कि जनता का क्या फैसला रहता है.
राजगढ़ लोकसभा में 18 लाख से अधिक मतदाता
राजगढ़ लोकसभा में 18 लाख 69 हजार 787 कुल मतदाता हैं. राजगढ़ जिले के पांचो विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत कल 11 लाख 56 हजार 958 मतदाता हैं, जिनमें 05 लाख 90 हजार 349 पुरुष, 5 लाख 66 हजार 599 महिला व 10 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. 1378 मतदान केंद्र हैं. चाचौड़ा राघोगढ़ सुसनेर विधानसभा के तहत 7 लाख 12 हजार 829 मतदाता हैं.
दिग्विजय सिंह दो बार जीते, एक बार हारे हैं ये सीट
दिग्विजय सिंह 1984 में राजगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जमनालाल गुप्ता को चुनाव हराते हुए सांसद चुने गए थे. तभी से राजगढ़ लोकसभा की सीट की गिनती प्रदेश की प्रमुख सीटों में होने लगी है. उसके बाद 1989 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार प्यारेलाल खंडेलवाल से 57 हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा था और उसके बाद हुए 1991 के चुनाव में बहुत ही करीबी मुकाबले में 1 हजार 484 मतों से सांसद प्यारेलाल खंडेलवाल से चुनाव जीते थे. अब 33 साल वापस लौटे अपनी जमीन पर दिग्विजय सिंह को काफी उम्मीदें हैं.
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