सिंधिया-दिग्विजय-शिवराज के लिए क्यों बन गया है ये 'करो या मरो' का चुनाव, पढ़ें तीसरे चरण की सभी सीटों का पूरा विश्लेषण

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MP Lok Sabha Elections 2024: एमपी की 29 सीटों में से अब तक दो चरण में 12 सीटों पर मतदान हो चुके हैं. दोनों चरण में पिछली बार की तुलना में 9 से 10 प्रतिशत तक वोटिंग कम हुई है. इससे बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां चिंता में हैं. लेकिन अब सभी की निगाह तीसरे चरण के मतदान पर लग गई है. 7 मई को तीसरे दौर की वोटिंग होगी, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, दिग्विजय सिंह जैसे हाई प्रोफाइल राजनेताओं का भविष्य तय होगा. आईए एक नजर डालते हैं तीसरे दौर के लिए तैयार बैठी इन 9 लोकसभा सीटों पर.

राजगढ़ लोकसभा सीट

कांग्रेस ने यहां से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. शुरूआत में दिग्विजय सिंह राजगढ़ से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे. अनिच्छा के भाव के साथ वे राजगढ़ आए और जनता के बीच ही इस बात का इजहार तक कर डाला. दिग्विजय सिंह के ऐसे बयानों के बाद बीजेपी को लगा कि यहां चुनाव जीतना आसान है लेकिन जैसे ही दिग्विजय सिंह ने राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पद यात्रा शुरू की, वैसे ही राजगढ़ का ग्राउंड एक कांटे के मुकाबले के लिए तैयार हो गया. आग में घी का काम किया मौजूदा बीजेपी सांसद रोडमल नागर के प्रति लोगों की नाराजगी ने.

यही वजह है कि सीएम मोहन यादव की जनसभा के दौरान मौजूदा बीजेपी सांसद रोडमल नागर मंच से ही लोगों से माफी मांगते भी नजर आए. ग्राउंड पर ऐसे हालात की रिपोर्ट सीधे बीजेपी आलाकमान तक पहुंची और निर्णय लिया गया कि खुद अमित शाह राजगढ़ में चुनावी मौर्चा संभालेंगे, जिसके बाद अमित शाह ने राजगढ़ में बड़ी जनसभा की और बयान दे दिया कि दिग्विजय सिंह का जनाजा ऐसे निकाला जाए, जैसे आशिक का जनाजा निकाला जाता है.

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अमित शाह के इस गरमा गरम बयान के बाद दिग्विजय सिंह ने भी उनको झूठा बताते हुए ट्वीट पर ट्वीट कर डाले. बीजेपी यही चाहती थी कि सारा चुनाव का फोकस रोडमल नागर से हटकर दिग्विजय सिंह वर्सेज अमित शाह हो जाए. यही हुआ भी. अब राजगढ़ के ग्राउंड पर बीजेपी भी दिग्विजय सिंह को टक्कर देती नजर आ रही है तो वहीं दिग्विजय सिंह ने भी अपने गृह क्षेत्र में आखिरी चुनाव का इमोशनल कार्ड खेलकर जनता को अपनी तरफ खींचने की भरसक कोशिश की है. अब देखना होगा कि 7 मई को राजगढ़ की जनता किसका जनाजा वोट देकर निकालती है.

विदिशा लोकसभा सीट

बीजेपी की सबसे मजबूत और सबसे सुरक्षित सीट है विदिशा लोकसभा सीट. बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री और अपने सुपर स्टार नेता शिवराज सिंह चौहान को यहां उम्मीदवार बनाया है. विदिशा वो सीट है, जहां से शिवराज सिंह लंबे समय तक सांसद रह चुके हैं. हाल ही में विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को आगे करके जबरदस्त तरीके से 163 सीटें हासिल करके कांग्रेस को बुरी तरह से धूल चटा दी.

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हालांकि बीजेपी ने बड़ी ही खामोशी से शिवराज सिंह चौहान के सिर से न सिर्फ जीत का सेहरा खींच लिया बल्कि सीएम पद से भी रवानगी दे दी. अब उनको सांसद बनाकर केंद्र में ले जाने के दावे बीजेपी आलाकमान ने किए हैं. बीजेपी के अंदर की राजनीति शिवराज सिंह चौहान का कैसा भविष्य तय करेगी, यह तो वक्त बताएगा लेकिन फिलहाल विदिशा के ग्राउंड पर शिवराज सिंह चौहान ही असली बाहुबली बनकर खड़े हो गए हैं.

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कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान जैसे हैवीवेट उम्मीदवार के खिलाफ गहन शोध, लंबी रिसर्च और कई महीनों की पड़ताल के बाद एक उम्मीदवार खोजा. उनका नाम है प्रताप भानु शर्मा. वे भी विदिशा से सांसद रह चुके हैं. लेकिन लंबे समय से कोई चुनाव नहीं लड़ा है. कांग्रेस का दावा है कि वे शिवराज सिंह चौहान को हराकर विधानसभा चुनाव की हार का बदला लेंगे. अब देखना होगा कि 7 मई को यहां कौन किससे बदला लेता है.

गुना लोकसभा सीट

गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से ग्वालियर रियासत के महाराज, बकौल पीएम मोदी गुजरात के दामाद और समर्थकों के श्रीमंत कहलाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से बीजेपी के हैवीवेट उम्मीदवार हैं और उनके सामने हैं कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह यादव. इस सीट पर पूरे देश की निगाह लगी है. खासतौर पर पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की. वजह है 2019 का लोकसभा चुनाव. तब सिंधिया कांग्रेस के उम्मीदवार थे. बीजेपी ने सिंधिया के एक कार्यकर्ता केपी यादव को अपना उम्मीदवार बनाकर सिंधिया को उनके जीवन की सबसे बुरी हार यानी सवा लाख वोटो से मात देकर राजनीतिक समीकरणों को हिला दिया था. सिंधिया उसके बाद कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए और मध्यप्रदेश की राजनीति का चेहरा ही बदल डाला था.

सिंधिया को अपनी इस करारी हार से उबरना है तो जितने वोटों से वो पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बनकर हारे थे, इस बार उससे कहीं अधिक वोटों से बीजेपी उम्मीदवार बनकर उनको जीतना होगा. जिसके लिए सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया, उनके पुत्र महा आर्यमन सिंधिया और उनके समर्थक मंत्री-विधायकों की लंबी-चौड़ी फौज गुना-शिवपुरी में प्रचार में लगी है. इस बार सिंधिया को भारी जीत दर्ज करने का दबाव है, ताकि मोदी-अमित शाह की गुड बुक में उनका नाम टॉप पर चमकता रहे.

वहीं दूसरी ओर राव यादवेंद्र सिंह के जरिए कांग्रेस ने यादव वोटों पर सेंध लगाने के लिए एक मजबूत दांव जरूर खेला है. राव यादवेंद्र सिंह अशोक नगर जिले से आते हैं. वह फिलहाल जिला पंचायत सदस्य हैं. राव यादवेंद्र सिंह पहले बीजेपी में ही शामिल थे. लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उनके स्वर्गीय पिता देशराज सिंह यादव बीजेपी के विधायक रह चुके हैं.

सागर लोकसभा सीट

सागर लोकसभा सीट से बीजेपी ने लता वानखेड़े को अपना उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने गुड्डू राजा बुंदेला को. इस सीट पर चुनाव का ग्राउंड समझना हो तो बस विधानसभा सीटों के गणित पर नजर डालना ही पर्याप्त होगा. सागर लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें से 7 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. सिर्फ एक सीट कांग्रेस के पास है. ऐसे में सागर सीट पर किसका पलड़ा भारी नजर आ रहा है, वो समझा जा सकता है. लेकिन मतदाता यहां भी साइलेंट है, 7 मई को वो किस ओर करवट लेगा, इसका खुलासा तो 4 जून को ही होगा.

मुरैना लोकसभा सीट

मुरैना लोकसभा सीट पर चुनाव बेहद दिलचस्प है. बीजेपी के उम्मीदवार हैं शिवमंगल सिंह तोमर. लेकिन कांग्रेस का आरोप है कि पर्दे के पीछे जो इस वक्त बीजेपी के लिए मुरैना सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनका नाम है नरेंद्र सिंह तोमर. जी हां, वही नरेंद्र सिंह तोमर जो वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं और पूर्व में इसी सीट से सांसद बनकर 10 साल तक पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में कृषि और खनन मंत्रालय जैसे हैवीवेट पोर्टफोलियो संभाल चुके हैं. लेकिन इस बार पीएम नरेंद्र मोदी ने उनको दिल्ली से रवाना कर विधानसभा चुनाव में उतार दिया और इसी लोकसभा सीट की एक छोटी सी विधानसभा दिमनी से चुनाव लड़ाया और जीतकर विधायक बना दिया.

कांग्रेस ने इस सीट पर पूर्व विधायक सत्यपाल उर्फ नीटू सिकरवार को मैदान में उतारा है. ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस का चेहरा बन चुके सतीश सिकरवार के छोटे भाई हैं नीटू सिकरवार. इससे भी दिलचस्प बात यह है कि सिकरवार परिवार और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच राजनीतिक अदावत का एक लंबा इतिहास भी है. क्योंकि एक समय में सिकरवार परिवार और नरेंद्र सिंह तोमर दोनों ही बीजेपी में हुआ करते थे. बीजेपी की आंतरिक राजनीति से परेशान होकर सतीश सिकरवार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था.

कांग्रेस के अंदर चली कलह की वजह से जब नेतृत्व संकट खड़ा हो गया तो सतीश सिकरवार ने ही ग्वालियर क्षेत्र में कांग्रेस का चेहरा बनकर न सिर्फ खुद विधायक बने बल्कि अपनी पत्नी शोभा सिकरवार को भी ग्वालियर मेयर बनवा लिया और अब अपने छोटे भाई को मुरैना सीट से लोकसभा चुनाव के लिए उतरवा दिया है. कुल मिलाकर मुरैना सीट पर लोकसभा चुनाव की लड़ाई जोरदार होगी.

भिंड लोकसभा सीट

भिंड लोकसभा सीट से वर्तमान सांसद संध्या राय को बीजेपी ने रिपीट किया है. कांग्रेस ने अपने बयानों के लिए मशहूर फूल सिंह बरैया को अपना उम्मीदवार बनाया है. लेकिन चुनाव शुरू होने से पहले ही इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी के अंदर संध्या राय को लेकर विरोध के स्वर उठे. क्षेत्र में कम समय देने के आरोप लगे. तो वहीं कांग्रेस में फूल सिंह बरैया के उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में देवाशीष जरारिया ने विद्रोह कर दिया और इसी सीट पर बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर गए. यह आरक्षित सीट है और ऐसे में यहां चुनाव अब त्रिकोणीय हो गया है. देखना होगा कि कांग्रेस और बीजेपी व बसपा के बीच होने वाले चुनाव में कौन भितरघात का शिकार होता है.

ग्वालियर लोकसभा सीट

ग्वालियर में बीजेपी के उम्मीदवार हैं पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाहा. कांग्रेस ने पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को चुनावी मैदान में उतारा है. रोचक बात यह है हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भारत सिंह कुशवाहा ग्वालियर ग्रामीण सीट से और कांग्रेस के प्रवीण पाठक ग्वालियर दक्षिण सीट से विधानसभा चुनाव हार गए थे. लेकिन दोनों ही हारे हुए उम्मीदवारों पर बीजेपी और कांग्रेस ने एक बार फिर से दांव लगाया है और इस बार लड़ाई का मैदान विधानसभा चुनाव नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव है.

बीजेपी उम्मीदवार भारत सिंह कुशवाहा को भी नरेंद्र सिंह तोमर का कट्‌टर समर्थक बताया जाता है तो वहीं प्रवीण पाठक को लोकसभा टिकट दिलाने के पीछे सतीश सिकरवार का अहम रोल होना बताया जा रहा है. यानी मुरैना सीट की तरह ही ग्वालियर सीट पर भी पर्दे के पीछे से नरेंद्र सिंह तोमर वर्सेज सतीश सिकरवार अपने-अपने उम्मीदवारों की परछाई बनकर खड़े नजर आ रहे हैं. देखना होगा कि ग्वालियर का मतदाता किस परछाई के पीछे अपने मताधिकार को सुरक्षित करना चाहेगा.

भोपाल लोकसभा सीट

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल लंबे समय से बीजेपी का गढ़ बनी हुई है. यहां बीते कई सालों से सिर्फ बीजेपी जीत रही है. पिछले चार चुनावों से कांग्रेस हर बार यहां नए चेहरे को प्रस्तुत कर रही है. लेकिन हर बार कांग्रेस को भोपाल सीट पर बुरी हार झेलना पड़ी है. इस बार कांग्रेस ने भोपाल सीट पर अरुण श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है तो बीजेपी ने भोपाल के मेयर रह चुके आलोक शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है. भोपाल सीट पर बीते रोज पीएम नरेंद्र मोदी ने रोड शो किया और पूरा माहौल भाजपामय करने की पूरी कोशिश की. कांग्रेस की हवा यहां बीजेपी की तुलना में कमजोर नजर आ रही है. देखना होगा कि 7 मई को होने वाले मतदान में मतदाता किसे विजय का तिलक लगाता है.

बैतूल लोकसभा सीट

भोपाल की तरह ही बैतूल लोकसभा सीट भी बीजेपी की मजबूत सीट मानी जाती है. बीजेपी ने यहां से वर्तमान सांसद दुर्गादास उईके को रिपीट किया है तो कांग्रेस ने भी पिछले चुनाव में हारने वाले रामू टेकाम को रिपीट किया है. साढ़े तीन लाख से अधिक वोटों से बीजेपी ने यह सीट पिछले लोकसभा चुनाव में जीती थी. ग्राउंड पर अभी भी मोदी की लहर बरकरार दिखाई दे रही है. कांग्रेस के लिए यहां बीजेपी की कड़ी चुनौती है. देखना होगा कि क्या कांग्रेस इस बार बैतूल के मतदाताओं को बदलाव के लिए प्रेरित कर पाती है या फिर मोदी लहर एक बार फिर से यहां कमाल दिखाती है.

आपको बता दें कि बैतूल लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में ही वोटिंग होना थी लेकिन बसपा उम्मीदवार अशोक भलावी के आकस्मिक निधन के बाद निर्वाचन आयोग ने बैतूल सीट पर चुनाव को तीसरे चरण के लिए टाल दिया था. इस दौरान बसपा को यहां फिर से अपना नया उम्मीदवार घोषित करना पड़ा. बसपा ने स्व. अशोक भलावी के बेटे अर्जुन भलावी को अपना उम्मीदवार बनाया है. लेकिन यहां चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होना तय माना जा रहा है.

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