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नर्मदा किनारे बसा शिव-पार्वती का अनूठा मंदिर! पुराणों में मिलता है जिसका वर्णन

धीरज शाह

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mahashivratri 2023, 18 february, Chausath yogini mandir, jabalpur, Bhedaghat
mahashivratri 2023, 18 february, Chausath yogini mandir, jabalpur, Bhedaghat
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Mahashivratri 2023: नर्मदा नदी के तट मां रेवा की भक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि भगवान शिव के लिए भी प्रसिद्ध हैं. मान्यता है कि नर्मदा का हर कंकर शंकर के समान होता है. महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर हम आपको नर्मदा किनारे स्थित अद्वित्तीय शिवमंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ नंदी के ऊपर विराजमान हैं. मान्यता है कि अपने विवाह के उपरान्त भोलेनाथ-पार्वती के साथ यहां आये थे. इस अद्वित्तीय मंदिर का वर्णन पुराणों में भी मिलता है.

जबलपुर शहर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भेड़ाघाट मौजूद है. भेड़ाघाट के दूधिया जलप्रपात के नजदीक भगवान शिव और माता पार्वती का अनोखा मंदिर स्थापित है. मंदिर में भगवान शिव और माता गौरी की अनोखी प्रतिमा के दर्शन होते हैं.इस प्रतिमा की खास बात यह है कि नंदी पर विराजे भगवान शंकर दूल्हे और माता गौरी दुल्हन के रूप में नजर आती हैं. गौरी-शंकर की ये प्रतिमाएं एक-दूसरे से वार्तालाप करती हुई मुद्रा में दिखती हैं. भगवान शिव के इस अद्भुत रूप को ‘कल्याण सुंदरम’ के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव और माता पार्वती का यह मंदिर चौसठ योगिनी के बीच स्थित है. इस मंदिर को चौसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है. चौसठ योगिनी मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान गौरी-शंकर के विवाह की प्रतिमा अद्वित्तीय है.

mahashivratri 2023, 18 february, Chausath yogini mandir, jabalpur, Bhedaghat
फोटो: धीरज शाह, एमपी तक

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शिवपुराण में मिलता है वर्णन
गौरी-शंकर के इस मंदिर के पीछे एक पौराणिक कथा भी है. शिव पुराण के अनुसार इस पहाड़ी पर सुपर्ण नाम के एक ऋषि तपस्या करते थे, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए. इस वक्त भगवान शिव माता पार्वती के साथ विवाह कर कैलाश धाम लौट रहे थे. रास्ते में ऋषि सुपर्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वर देने का निर्णय किया, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि भगवान शिव और माता पार्वती यहीं विराजमान हो गए. शिव पुराण और नर्मदा पुराण में चौसठ योगिनी मंदिर के बारे में वर्णन मिलता है.

ऐतिहासिक दृष्टि से भी खास है मंदिर
ये मंदिर सिर्फ पौराणिक ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत खास है. मंदिर की बाहरी दीवार पर लिखा शिलालेख इसकी प्राचीनता को बताता है. इतिहासकारों के मुताबिक लगभग 12 सौ साल पहले कलचुरी कालीन शासकों ने चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कराया था. चौसठ योगिनी मंदिर 2 चरणों में बनकर तैयार हुआ था.इस मंदिर का महत्व महाशिवरात्रि यानी कि शिव और पार्वती के विवाह से जुड़ा हुआ है, इसलिए इस दिन मंदिर के दर्शन करने का विशेष महत्व है. मंदिर के महंत के मुताबिक शिवरात्रि के मौके पर देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. यहां भगवान शंकर नंदी पर विराजमान होकर गौरी माता को विवाह के बाद विदा कर ले जाते हुए दर्शन देते हैं. यही वजह है कि इस मंदिर में नव दंपत्ति जरूर आते हैं. मंदिर के दर्शन से विवाह से जुड़ी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.

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