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छतरपुर: बुंदेलखंड में फाग की है अलग पहचान, गांव-गांव सजती हैं परंपरागत महफिलें, जानें

लोकेश चौरसिया

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Chhatarpur news: मोहन भर पिचकारी खींचें… तक कें भर मारी पिचकारी… रंगो के त्योहार होली से ठीक एक सप्ताह पहले से बुन्देलखंड की चौपालों में फागों की धूम मचने लगी है. फाग गायकों की महफिलें भी ग्रामीण इलाकों में सजने लगी हैं. बुंदेलखंड के छतरपुर में होली की अलग ही परंपरा है यहां पर होली के लिए स्थानीय बुंदेली कलाकार एक सप्ताह पहले ही अपनी फाग के माध्यम से होली के रंगों में सुमार हो जाते हैं.

स्थानीय कलाकार होली की फाग गाकर अपनी पुरानी परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए हैं, और होली की फागें बुंदेलखंड के छतरपुर से काफी फेमस हैं. जहां पर होली के एक सप्ताह पहले से शुरू हुई परंपरा आगामी रंगपंचमी तक लगातार चलती है. जिसमे कलाकारो की टोलियां जगह-जगह पर अपने अनोखे रंग बिखेरती है. महिलाएं,पुरुष और बच्चे एक साथ एक ही मंच पर फाग गाया करते है. जिनके चेहरे पर गुलाल लगा होता है. और हाथों में साज-बाज उसके बाद चढ़ता है बुंदेली फागों का रंग.

सैकड़ों सालों से गांवों में फाग गाने की परंपरा है कायम
बुन्देलखंड के छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमाेह, सागर, और निवाड़ी के ग्रामीण इलाकों में फाग गाने की परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. फाग गायकों की टोलियां गली कूचों में फाग गाकर होली का उत्साह बढ़ाती है. फाग गायकों ने बताया यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. गांवों के धार्मिक स्थलों से ईसुरी फागों का शुभारंभ होता है, फिर इसके बाद ग्रामीण इलाकों के हर गली और मुहल्लों में इसका गायन होता है.

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बुंदेली फाग के प्रेणता थे जनकवि ईश्वरी
 बुंदेलखंडी फाग के प्रणेता जनकवि इश्वरी थे. उन्होंने यहां फाग की 32 विधायों का इजाद किया था. बदलते समय के साथ अब यहां के फाग में वो बात तो नहीं रही लेकिन अब भी 8 तरह की फाग की विधा यहां गाई जाती है. जंगला ,पारकी फाग ,चौकड़िया,दहक्वा ,अधर की फाग ,सिंघाव्लोकन और छंददार फाग. इन फागों में हंसी ठिठोली के गीत कृष्ण और राधा के प्रसंग, राम के गीतों को भी गातें हैं.

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