Lathmar Rangpanchami: आपने लट्ठमार होली के बारे में तो सुना होगा, लेकिन बुरहानपुर जिले के एक गांव में लट्ठमार रंगपंचमी मनाई जाती है. रंगपंचमी के दिन जिले के धुलकोट गांव में झेंडा पर्व मनाया जाता है. झेंडा पर्व कुछ हद तक बृज की प्रसिद्ध लट्ठमार होली की तरह होता है. जिसमें महिलाएं पुरुषों की लकड़ी से पिटाई करती हैं. दरअसल इस आदिवासी क्षेत्र में रंगपंचमी के मौके पर महिलाओं और पुरुषों के बीच गांव के चौराहे पर एक प्रतियोगिता की तरह खेल खेला जाता है. महिलाएं पुरुषों को हराने के लिए उनकी पिटाई करती हैं.
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रंगपंचमी के मौके पर सारे देश में रंगों की धूम होती है तो वहीं बुरहानपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र धुलकोट ग्राम में रंगपंचमी का पर्व अनोखे तरीके से मनाया जाता है. धुलकोट में रंगपंचमी के दिन झेंडा पर्व मनाते हैं, जिसमें गांव की महिलाएं इकट्ठी होकर पुरुषों की पिटाई करती हैं. आइए जानते हैं कि झेंडा पर्व कैसे मनाया जाता है और इस त्योहार के मौके पर महिलाएं पुरुषों की पिटाई क्यों करती हैं.
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लकड़ी की बल्ली उखाड़ते हैं पुरुष
झेंडे पर्व के मौके पर शाम के समय महिलाएं और पुरूष ग्राम पंचायत के सामने एकत्रित होते हैं. यहां ग्रामीणों द्वारा एक स्थान पर एक लकड़ी जमीन में गाड़ी जाती है. पुरूषों की टोली लकड़ी को जमीन से निकालने की कवायद करती है, लेकिन जिस समय पुरूषों की टोली लकड़ी की बल्ली को उखाड़ती है, उस समय महिलाओं की टीम लकड़ी की बल्ली को उखड़ने से बचाने के बचाने के लिए पुरूषों पर लकड़ियों की बेंतो से पिटाई करती हैं.
सदियों पुरानी परंपरा
धुलकोट गांव के निवासी मनोज डंगोरे ने बताया कि इस तरह रंगपंचमी मनाने की अनोखी परंपरा के सदियों से चली आ रही है. इसको लट्ठ मार होली भी कहा जाता है. इस दिन महिलाओं का झुंड मे इकठ्ठा होकर पुरूषों की पिटाई करता है. जब पुरुष लोग जमीन में गड़ी हुई लकड़ी को उखाड़ने का प्रयास करते हैं, तो सारे गांव की महिलाएं और युवतियां एक तरफ होती हैं और पुरुषों की पिटाई कर उन्हें लकड़ी उखाड़ने रोकती हैं. इस प्रकार का आयोजन हर साल रंगपंचमी को होता है.
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