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हाईकोर्ट ने ASI को दिए धार भोजशाला के सर्वे के आदेश, जानें क्या है पूरा मामला और इतिहास

एमपी तक

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हाईकोर्ट ने दी सर्वे की अनुमति
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MP News: मध्‍य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने धार भोजशाला को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने एएसआई को भोजशाला का सर्वे करने का आदेश दिया है. मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वे के लिए हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने हाईकोर्ट में आवेदन दिया था. जिस पर पर कोर्ट ने एएसआई को सर्वे का आदेश दिया है.

बता दें धार भोजशाला को लेकर कई बार तनाव हो चुका है. हिंदू और मुस्लिम दोनों भोजशाला पर दावा करते हैं. इसी को लेकर दोनों के बीच लंबे वक्त से विवाद चला आ रहा है. अब आज हाईकोर्ट ने ASI को इसके सर्वे की मंजूरी दे दी है. 

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "विवादित भोजशला मंदिर और कमल मौला मस्जिद परिसर के साथ-साथ आसपास के 50 के मीटर के दायरे के क्षेत्र की जीपीएस तकनीक के साथ ही वैज्ञानिक जांच और ASI जांच की जाए." कोर्ट ने आगे कहा, "जमीन की ऊपरी और निचली दोनों सतहों की कार्बन डेटिंग पद्धति के अनुसार जांच की जाए. इसके साथ ही वहां मौजूद दीवारों, स्तंभों, फर्शों, सतहों, ऊपरी भाग शीर्ष, गर्भगृह हर जगह की बारीकी से जांच की जाए."

पांच सदस्यीय टीम करेगी सर्वे

कोर्ट के आदेश अनुसार, ASI महानिदेशक की निगरानी में 5 सदस्यीय टीम भोजशाला की प्रॉपर जांच करेगी. इसके साथ ही ये कमेटी अगले 6 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी. इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों पक्ष यानि कि हिंदू और मुस्लिम पक्ष के 2-2 प्रतिनिधियों को सर्वे के दौरान वहां मौजूद रहने की अनुमति दी है. वहीं पूरे सर्वे की वीडियोग्राफी के साथ ही फोटो भी एकत्रित करने का आदेश दिए हैं. 

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आखिर क्या भोजवाला है विवाद? 

हिंदू संगठन भोजशाला को राजा भोज कालीन इमारत बताते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का तर्क है कि भाेज परमार कालीन में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. दूसरी ओर, मुस्लिम समाज का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. मुस्लिम इसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं. यही कारण है कि आज इसके सर्वे को लेकर कोर्ट ने आदेश जारी किया है.

क्या है भोजशाला का इतिहास?

हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. राजा भोज सरस्वती देवी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. इसे हिंदू सरस्वती मंदिर भी मानते थे.' 

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ऐसा कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी. बताया जाता है कि 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है. हाईकोर्ट में याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है. 

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