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‘पैरों’ से अपनी किस्मत लिखने वाली संतोष को CM शिवराज सिंह चौहान ने बताया पूरे देश के लिए प्रेरणा

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फोटो: एमपी तक

MP NEWS: मध्यप्रदेश के राजगढ़ के खिलचीपुर में महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर संतोष चौहान की कहानी सीएम तक पहुंची. सीएम शिवराज सिंह चौहान को जब उनके बारे में पता चला तो उन्होंने संतोष चौहान को बधाई और शुभकामनाएं भेजी और उनको देश की हर महिला के लिए प्रेरणा बताया. सीएम ने उनके लिए संदेश जारी किया.

सीएम ने अपने संदेश में कहा कि ‘राजगढ़ के खिलचीपुर में महिला एवं बाल विकास विभाग में सुपरवाइजर के पद पर पदस्थ हैं बेटी है संतोष चौहान जो महिलाओं के लिए एक प्रेरणा और उदाहरण बन गई हैं. दोनों हाथ ना होने के बावजूद वे आंगनबाड़ियों के 2 सेक्टर और 128 केंद्रों में कागज़ी काम स्वयं करती हैं’.

सीएम ने आगे संदेश में बताया कि ‘संतोष मोबाइल खुद लगाकर बात करती हैं और जरूरत पड़ने पर गांव का दौरा कर समस्याओं का निराकरण भी करती है. 1988 में कक्षा 5 में 8 साल की उम्र में करंट लग जाने के कारण उनके दोनों हाथ चले गए थे, काफी इलाज करवाने के बावजूद भी हाथ बचे नहीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. मुश्किलों में काम करती गई. पढ़ाई पूरी की और आज महिला बाल विकास विभाग में सुपरवाइजर के पद पर पदस्थ हैं और सबको प्रेरणा दे रही हैं. उनको बहुत-बहुत बधाई देता हूं उनको शुभकामनाएं भी देता हूं’.

MP Tak ने दिखाई संतोष चौहान की कहानी
MP Tak ने संतोष चौहान की कहानी को प्रमुखता से प्रकाशित किया. संतोष ने अपनी आपबीती MP Tak को सुनाते हुए बताया, ‘1988 में कक्षा-5 में आठ साल की थी, तब मेरे गांव डालूपुरा में करंट लग जाने से दोनों हाथ खो दिए. मेरे परिवार वालों ने काफी इलाज करवाया, लेकिन मेरे हाथ नहीं बच पाए. इस हादसे के बाद जिंदगी में कुछ भी करने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन स्कूल में एक टीचर की मदद से सब कुछ आसान हो गया. आज जहां भी हूं बीएल पोटर सर की वजह से ही हूं.

स्कूल के टीचर ने की थी मदद
संतोष चौहान बताती हैं कि ‘मैं गांव के स्कूल में पढ़ने गई, तो अध्यापक ने कहा तुम कैसी पढ़ोगी, तुम्हारे तो हाथ ही नहीं हैं, कैसे लिखोगी? तुम नहीं पढ़ सकती हो. ये बातें सुनने के बाद मैने आगे पढ़ने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. लेकिन  फिर खिलचीपुर में मुझे शिक्षक बीएल पोटर सर मिले वो उस समय साड़ियां कुआं में पदस्थ थे. उनके द्वारा मुझे पढ़ने की प्रेरणा दी गई. सर ने मुझे पेर से लिखना सिखाया. मेरी हर तरह से मदद की जिससे मैं पढ़ाई कर सकूं. उसके बाद मैंने अपना ग्रेज्यूएशन पूरा किया’.

ये रिपोर्ट भी पढ़ेंदोनों हाथ खोकर भी नहीं खोई हिम्मत, ‘पैरों’ से लिखी अपनी किस्मत; पढ़िए संतोष की प्रेरक कहानी

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