Madhavrao Scindia Birth Anniversary: पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के कद्दावर नेता स्व. माधवराव सिंधिया की 78वीं जयंती पर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया भावुक हो गए हैं. उन्होंने ट्विटर पर दिल छू लेने वाली भावनाएं प्रकट की हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया लिखते हैं- ‘जीवन की अफरा–तफरी में जब थककर रुक जाता हूं, विचलित मन की गहराई से आपको आवाज़ लगाता हूं.’
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इसके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता माधवराव सिंधिया के साथ तस्वीर भी शेयर की है. बता दें कि 10 मार्च 1945 को मुंबई में जन्में माधवराव सिंधिया का विवाह 8 मई, 1966 को माधवी राजे सिंधिया से हुआ था. इस दंपत्ति का एक पुत्र और एक पुत्री थी. पुत्र का नाम रखा ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं पुत्री का नाम चित्रांगदा सिंधिया रखा गया.
माधवराव सिंधिया ने 26 साल की उम्र में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था और इसी के साथ ही उनके जीत का सिलसिला भी शुरू हो गया. आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावों में भी माधवराव सिंधिया ने गुना से दोबारा जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश की थी और सफल भी हुए थे. लेकिन 80 के दशक में उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ हो गया था और उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता भी ले ली.
तेज़ तर्रार नेता थे माधवराव सिंधिया
तेज-तर्रार नेताओं में शुमार रहे माधवराव सिंधिया का निधन 30 सितम्बर, 2001 को हवाई दुर्घटना में हो गया था. करिश्माई व्यक्तित्व के धनी रहे माधवराव सिंधिया ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. उनके जीवन में ऐसा दौर भी आया जब उनके लिए मध्य प्रदेश जाने के लिए एक चार्टर विमान स्टैंडबाय पोजिशन पर खड़ा रहता था, क्योंकि उन्हें लगता था कि वो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन राजनीति ने ऐसी करवट ली की राघोगढ़ के दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
दो बार एमपी के सीएम बनते-बनते रह गए
माधवराव सिंधिया की दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की ताजपोशी होते-होते रह गई थी. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 1989 में चुरहट लॉट्री कांड के समय अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन पर इस्तीफा देने का काफी दबाव था. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इच्छा थी कि माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए लेकिन अर्जुन सिंह ने इस्तीफा नहीं दिया. जिसकी वजह से अर्जुन सिंह को राजीव गांधी की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी.
माधवराव सिंधिया की छोटी बहन यशोधरा राजे सिंधिया ने किया याद
वहीं दूसरी बार सन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के चलते मध्य प्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर दिया था. उसके बाद 1993 में मध्य प्रदेश में चुनाव हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने सभी खेमों की सुनी और टिकट बांटे. इस चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की. उस वक्त कांग्रेस को 320 में से 174 सीटें मिली थी. चर्चा छिड़ गई कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए तब सीएम की दोइड में तीन नेताओं का नाम सबसे आगे था. उसमें श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, सुभाष यादव शामिल थे.
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पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था लोकसभा चुनाव
सबसे दिलचस्प लड़ाई तो साल 1984 के लोकसभा चुनाव में हुई. भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से चुनावी मैदान में उतरे. ऐसे में कांग्रेस ने अंतिम समय पर माधवराव सिंधिया के नाम का पासा फेंका और उन्हें ग्वालियर से अपना उम्मीदवार बना दिया था. इस चुनाव में भी माधवराव सिंधिया ने जीत दर्ज की और उन्हें इसका तोहफा भी मिला. जिसके बाद माधवराव सिंधिया को केंद्रीय रेल मंत्री बनाया गया था.
ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीतिक विरासत उनके पिता से ही मिली थी. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया अब कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं. ग्वालियर से दिल्ली तक सिंधिया राजघराने का राजनीति में खासा हस्तक्षेप है.
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