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मां को बचाने के लिए किया था लीवर डाेनेट, अब इसी वजह से बेटी दुनिया में कर रही नाम रोशन

इज़हार हसन खान

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ankita Shrivastava Won Gold medal , MP News, Games,
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MP News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की बेटी अंकिता श्रीवास्तव ने वर्ल्ड ट्रांसप्लांट चैंपियनशिप में परचम लहराया है. अंकिता श्रीवास्तव ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स 2023 में एक गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल हासिल कर दुनिया में नाम रोशन कर दिया है. वर्ल्ड ट्रांसप्लांट ऐसे गेम्स हैं, जिनमें सिर्फ वह लोग हिस्सा ले सकते हैं, जिन्होंने कभी ना कभी अपना कोई ऑर्गन डोनेट किया हो. अंकिता ने अपनी मां को बचाने के लिए अपना लीवर डोनेट किया था. वह मां को तो नहीं बचा पाई, लेकिन अब इसी वजह से दुनिया में अपने साथ ही मां का नाम रोशन कर रही है.

अंकिता को लान्ग जंप में गोल्ड मेडल मिला है, वहीं शॉट पुट और रेसवाक में सिल्वर मेडल मिले हैं. यह दूसरी बार है जब अंकिता ने इस गेम्स में मेडल हासिल किया हो. इससे पहले वह 2019 में भी मेडल हासिल कर चुकी हैं. ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में 15 अप्रैल को वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स 2023 का शुभारंभ हुआ था और 21 अप्रैल को इसका समापन हुआ.

बचपन से ही थी स्पोर्ट्स में रुचि
अंकिता बचपन से ही स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव थी. उन्होंने नर्सरी में पढ़ाई के दौरान ही अपनी फर्स्ट एथलेटिक रेस जीती थी. अंकिता नेशनल स्विमर भी रही हैं. लिवर ट्रांसप्लांट करने के बाद अंकिता की हालत बेहद खराब थी. लेकिन उन्होंने पूरे जोश और उत्साह के साथ तैयारी की और कठिन परिश्रम के बलबूते पर मात्र एक साल बाद 2018 में सिलेक्शन हो गया. अंकिता ने 2019 में यूके के न्यू कासल में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में हिस्सा लिया और मैडल हासिल किया. और अब 2023 में फिर मेडल लाकर प्रदेश को गौरान्वित महसूस कराया है.

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वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम ऐसे बना सपना
लिवर डोनेट करने के बाद जब अंकिता रिकवरी कर रही थीं, तो उनके पिता ने उन्हें एक व्यक्ति से मिलवाया जो उनके मित्र थे. उनका हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था. उन्हीं ने अंकिता को वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स के बारे में बताया. खुशनसीबी से उसी दौरान राष्ट्रीय स्तर के खेलों के लिए चयन किया जा रहा था. अंकिता बचपन से ही स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव थी, कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया था. वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स के बारे में बताए जाने के बाद मुझे नया जीवन शुरू करने का एक मकसद मिला. हालांकि इसके लिए अंकिता को बहुत त्याग और तपस्या करना पड़ी.

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ट्रांसप्लांट के बाद किया कठिन परिश्रम
अंकिता ने अपने लिवर ट्रांसप्लांट के बाद कठिन समय को याद करते हुए बताया कि लिवर जब मैंने लिवर डोनेट किया तो उसके अगले दिन 2 दिन तक तो मुझे होश ही नहीं था, फिर जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आप को व्हील चेयर पर पाया. मैं बहुत डरी हुई थी. मुझे दोबारा से अपनी जिंदगी की शुरुआत करनी पड़ी. ऑपरेशन के बाद एक महीने तक में अस्पताल में ही रही धीरे-धीरे मुझे बैठना शुरू करवाया गया, फिर उठना और चलना शुरू करवाया गया. वहीं जब मैं बिस्तर पर करवट लेती थी तो मुझे ऐसा लगता था कि मेरा लेबर भी मेरे साथ करवट ले रहा है. ट्रांसप्लांट के शुरूआती साल में मुझे खड़े होने और चलने बैठने के लिए सपोर्ट लेना पड़ता था, फिर एक साल के बाद में खुद उठने बैठने और चलने लगी.

बिजनेस के साथ कर रही पढ़ाई
अंकिता ने भोपाल के साई सेंटर में प्रैक्टिस की है जहां पर उनको अमित गौतम और सतीश कुमार ने कोच के रूप में प्रैक्टिस में उनकी भरपूर मदद की है. अंकिता पिछले 9 साल से बिजनेस भी कर रही हैं. वह यूएस के व्हार्टन बिजनेस स्कूल से एमबीए भी कर रही हैं और अब अपना एमबीए कंप्लीट करने के बाद अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहती हैं. अंकिता का जन्म भोपाल में हुआ. उनका परिवार अरोरा कॉलोनी में रहता है. उन्होंने अपनी स्कूलिंग की शुरुआत भोपाल के भोजपुर मांटेसरी स्कूल से की, वहीं भोपाल के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की है.

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ट्रांसप्लांट के बाद भी नहीं बची जान
अपनी मां के बारे में बात करते हुए अंकिता ने बताया कि मां को लिवर में प्रॉब्लम की वजह से किसी न किसी लीवर का हिस्सा डोनेट करना था. इसलिए अंकिता यह फैसला लिया कि मैं अपनी मां को अपना लिवर दूंगी. हालांकि इसके लिए अंकिता का वजन काफी कम था और अपना लिवर डोनेट करने के लिए अपने वजन को बढ़ाना पड़ा. ऑपरेशन के दौरान अपनी मां को अपना 74% लिवर डोनेट किया, हालांकि लीवर ट्रांसप्लांट के 4 महीने बाद ही मां इस दुनिया से चली गई, इसके बाद अंकिता पर पहाड़ टूट पड़ा. अंकिता ने कहा कि इसका मुझे जिंदगी भर अफसोस रहेगा.

सरकार ने नहीं दी बधाई
प्रतियोगिता में मैडल जीतने के बाद 2 दिन पहले अंकिता भोपाल लौटी हैं. अंकिता को लेने उनके परिवार वाले और दोस्त ढोल-नगाड़ों के साथ आए. लेकिन अंकिता के मन में एक मलाल है कि उसने अपने भोपाल के लिए प्रदेश के लिए देश के लिए इतना बड़ा नाम किया. लेकिन उसको रिसीव करने ना तो सरकार का कोई मंत्री आया ना कोई सरकारी नुमाइंदा आया. 21 अप्रैल को प्रतियोगिता का समापन हुआ था. दुनिया भर से अंकिता को बधाई संदेश प्राप्त हुए, लेकिन तब से लेकर अभी तक सरकार या सरकार के किसी नुमाइंदे ने उसको बधाई तक नहीं दी.

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