MP POLITICAL NEWS: गुना-शिवपुरी सांसद डॉ. केपी यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं. पहले तो उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र में सिंधिया गुट की तरफ से लगातार उपेक्षित किया जाता रहा और अब एक दिन पहले उनको भोपाल में बुलाकर बीजेपी ने समझा दिया है कि वे केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी नहीं करेंगे. जिसके बाद डॉ. केपी यादव को फिलहाल के लिए अपने सुर बदलने पड़े हैं. लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र में वजूद की लड़ाई लड़ रहे डॉ. केपी यादव क्या वास्तव में शांत हो जाएंगे? क्या वास्तव में वे अब सिंधिया और उनके गुट के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे?. इस की पड़ताल की MP Tak ने.
ग्वालियर-चंबल संभाग में कई दशक से पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली बताते हैं कि ‘केपी यादव जो कुछ भी सिंधिया के खिलाफ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बोल रहे हैं. उसके पीछे बीजेपी की वो लॉबी शामिल है जो अंदर ही अंदर सिंधिया और उनके पूरे गुट के खिलाफ है. केपी यादव को बुलाकर समझाइश देना एक औपचारिकता भर है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, सिंधिया को लेकर इस तरह की मुखरता तेजी से बढ़ेगी. सिंधिया गुट हर हाल में केपी यादव को गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से राजनीतिक तौर पर खत्म करना चाहते हैं लेकिन केपी यादव के संबंध बीजेपी के अंदर ही केंद्रीय नेतृत्व से काफी अच्छे हैं’.
देव श्रीमाली बताते हैं कि ‘हम आपको बता दें कि केपी यादव सिंधिया के धुर-विरोधी रहे पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के भी करीबी हैं. आप समझ सकते हैं कि केपी यादव कोई भी काम अकेले नहीं कर रहे हैं. बीजेपी के अंदर जो सिंधिया विरोधी गुट है, वो केपी यादव के माध्यम से या किसी अन्य नेता के माध्यम से इस तरह की गतिविधियां लगातार कराना जारी रखेंगे. रही बात केपी यादव की तो सिंधिया और उनके गुट के बीजेपी में आ जाने के बाद अब उनके पास खोने के लिए कुछ बचा नहीं है. निश्चित रूप से वे विकल्प की तलाश में रहेंगे. यदि उनका टिकट 2024 के लोकसभा चुनाव में काटा गया तो वे कांग्रेस का भी रुख कर सकते हैं. उनके भाई तो पहले ही कांग्रेस में जा चुके हैं. खुद केपी यादव भी लंबे समय तक कांग्रेस में रहे हैं. आने वाले वक्त में केपी यादव और सिंधिया गुट के बीच चल रही इस कॉल्ड वॉर के थमने की आसार नजर नहीं आ रहे हैं’.
ग्वालियर अंचल के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक आशेंद्र सिंह भदौरिया का कहना है कि न तो सिंधिया गुट और न ही डॉ. केपी यादव बीजेपी की संस्कृति में रचे-बसे हैं. दोनों गुट ही कांग्रेस की संस्कृति से निकले हैं और बीजेपी में भी आने के बाद एक दूसरे की टांग-खिंचाई ही कर रहे हैं. गुना-शिवपुरी सीट सिंधिया परिवार की पारंपरिक सीट रही है. इतिहास में पहली बार हुआ कि सिंधिया को अपने ही एक छोटे कार्यकर्ता से सवा लाख से अधिक वोटों से हारना पड़ गया. जाहिर है कि सिंधिया परिवार किसी कीमत पर डॉ. केपी यादव को अब गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. इसलिए उनके समर्थक मंत्री-विधायकों द्वारा खुलकर हर विकास कार्य, लोकार्पण और भूमि पूजन कार्यक्रमों में उनकी उपेक्षा की जा रही है. इसलिए सिंधिया गुट और डॉ. केपी यादव के बीच चल रही यह लड़ाई बीजेपी मुख्यालय की समझाइश के बाद भी थमने वाली नहीं है.
हाल ही में कैसे मुखर हुई सांसद डॉ. केपी यादव की नाराजगी?
विकास यात्राओं के दौरान सांसद डॉ. केपी यादव के गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में जितने भी निर्माण कार्यों के लोकार्पण और भूमि पूजन हो रहे हैं, उनकी शिला पटि्टकाओं से उनका नाम गायब है. बीजेपी के कार्यक्रमों में जहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया या उनके समर्थक मंत्रियों की मौजूदगी होती है, वहां पर उनको या तो आमंत्रित ही नहीं किया जाता है या फिर आमंत्रण ऐन वक्त पर औपचारिकता के लिए दिया जाता है. गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से सांसद डॉ. केपी यादव ने भी सिंधिया और उनके समर्थक मंत्रियों के कार्यक्रमों से दूरी बनाना शुरू कर दिया है. बीते दिनों यादव समाज और पीजी कॉलेज के कार्यक्रम में उन्होंने सिंधिया का नाम लिए बगैर ही मुखर रूप से सिंधिया परिवार और उनके समर्थक मंत्री-विधायकों के खिलाफ खुलकर बयानबाजी की थी.