इमरजेंसी में भी मिला था छिंदवाड़ा में कांग्रेस को जनता का साथ, क्या इस बार नकुलनाथ बचा पाएंगे गढ़?

रवीशपाल सिंह

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Chhindwara Loksaha Seat: मध्य प्रदेश में कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले छिंदवाड़ा में इस बार सबकुछ ठीक नजर नहीं आ रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि हर रोज यहां कांग्रेस छोड़ कई दिग्गज नेता बीजेपी का दामन थाम रहे हैं. आपको बता दें साल 1951 में अस्तित्व में आई छिंदवाड़ा लोकसभा सीट एमपी की 29 लोकसभा सीटों में से महज़ एक सीट नहीं बल्कि कांग्रेस और कमलनाथ का गढ़ है. 1971 से 2019 तक के 14 लोकसभा चुनाव में से 13 बार यहां से कांग्रेस जीती जबकि 1980 से लेकर 2019 तक तो यहां सिर्फ नाथ परिवार का ही दबदबा रहा है और कमलनाथ, उनकी पत्नी अलकानाथ और बेटे नकुलनाथ यहां से सांसद रहे हैं.

साल 1997 को छोड़ दें तो पिछले 70 सालों से इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस के लिए कितनी महत्वपूर्ण इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि आपातकाल के बावजूद छिंदवाड़ा की जनता ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा था. लेकिन अब यहां मुकाबला एकतरफा नहीं दिख रहा और इसलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने इस सीट पर ताकत झोंक दी है. कांग्रेस ने यहां से एक बार फिर नाथ परिवार पर भरोसा जताते हुए कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को अपना उम्मीदवार घोषित किया है तो वहीं बीजेपी ने लगातार दो चुनावों में कमलनाथ को चुनौती देने वाले विवेक बंटी साहू को टिकट दिया है.

649 करोड़ की प्रॉपर्टी के मालिक नकुलनाथ 

नकुलनाथ का जन्म 21 जून 1974 कोलकाता में हुआ है. उन्होंने दून स्कूल से शिक्षा के बाद बोस्टन के Bay State College से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की है. नकुलनाथ की गिनती देश के सबसे अमीर सांसदों में होती है. इस बार भी नामांकन में नकुलनाथ ने 649 करोड़ की चल संपत्ति का ब्यौरा दिया है. नकुलनाथ का मानना है कि उनके पिता ने इस अति पिछड़े इलाके में विकास के जो काम किए हैं, वो जनता के मन में इतना घर कर चुके हैं कि यहां जनता बार-बार नाथ परिवार को ही चुनती है.

बीजेपी के विवेक बंटी साहू का परिचय 

दूसरी तरफ कांग्रेस के इस मजबूत गढ़ में बीजेपी ने विवेक बंटी साहू को मैदान में उतारा है. 29 अप्रैल 1979 को जन्मे विवेक बंटी साहू बी.कॉम तक पढ़े हैं. साहू मोटरसाइकिल की एजेंसी, होटल, सर्राफा व्यवसाय और कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं. बता दें कि बंटी साहू कमलनाथ को लगातार उनके ही गढ़ में टक्कर देते आ रहे हैं.

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कमलनाथ के करीबी छोड़ रहे साथ

एक के बाद एक कमलनाथ के करीबी भी उनका साथ छोड़ बीजेपी में जा रहे हैं जिनमें दीपक सक्सेना और सैय्यद जाफर जैसे बेहद खास लोग भी हैं. हाल में ही में कमलनाथ के बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जाने गलीं, लेकिन कमलनाथ बीजेपी नहीं गए लेकिन छिंदवाड़ा में एक के बाद एक अपनों के साथ छोड़ने से अपने गढ़ में कमलनाथ की पकड़ ढीली होती जा रही है. ऐसा ना हो कि इससे कांग्रेस का यह मजबूत किला इस बार ढह जाए.

एकतरफा नहीं रहने वाला मुकाबला

छिंदवाड़ा की राजनीति को करीब से देखने और समझने वाले भी मानते हैं कि इस बार कमलनाथ या कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा में मुकाबला एकतरफा नहीं रहने वाला है. नकुलनाथ 2019 में सांसद बने ज़रूर लेकिन उनकी जीत का अंतर महज़ 37 हजार 536 मतों का रहा था. वहीं, कमलनाथ भी सिर्फ 25 हज़ार वोटों से ही विधानसभा का उपचुनाव जीत पाए थे. 2023 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ 36,594 वोटों से जीते. इससे इतना तो साफ हो गया कि नाथ परिवार को अपने ही गढ़ में कड़ी टक्कर मिल रही है.

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