विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर विराजमान मां विजयासन देवी की क्या है कहानी? जानें पूरा इतिहास

नवेद जाफरी

22 Mar 2023 (अपडेटेड: Mar 22 2023 3:42 AM)

Sehore news:  चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो चुकी है. प्रसिद्ध शक्ति पीठों में शामिल सीहोर जिले के रेहटी स्तिथ विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर विजयासन देवी का मंदिर है. सलकनपुर मंदिर के नाम से ये विख्यात है. वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन नवरात्रि पर मंदिर की छटा निराली होती […]

What is the story of Mother Vijayasan Devi sitting on the beautiful hill of Vindhya? Know full history

What is the story of Mother Vijayasan Devi sitting on the beautiful hill of Vindhya? Know full history

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Sehore news:  चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो चुकी है. प्रसिद्ध शक्ति पीठों में शामिल सीहोर जिले के रेहटी स्तिथ विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर विजयासन देवी का मंदिर है. सलकनपुर मंदिर के नाम से ये विख्यात है. वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन नवरात्रि पर मंदिर की छटा निराली होती है. जहां दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी हो जाती है.

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मां विजयासन देवी का मंदिर लगभग 4 हजार फीट की ऊंचाई पर है. विजयासन देवी की यह प्रतिमा लगभग 400 साल पुरानी और स्वयंभू मानी जाती है. पौराणिक मान्यता है कि दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी अवतार के रूप में देवी ने इसी स्थान पर रक्तबीज नाम के राक्षस का वध कर विजय प्राप्त की थी. फिर जगत कल्याण के लिए इसी स्थान पर बैठकर उन्होंने विजयी मुद्रा में तपस्या की थी. इसलिए इन्हें विजयासन देवी कहा गया.

नवरात्रि पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
जानकारी के अनुसार जिले के रेहटी स्तिथ विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर मां विजयासन धाम सलकनपुर में नवरात्रि पर दर्शन करने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते है, और विशेष पूजा अर्चना करते हैैं. यहां भक्त जो भी मनोकामना करते हैं वह पूरी होती है. यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है. नवरात्रि पर्व को देखते हुए प्रशासन ने भी श्रद्धालुओं के पुलिस पूरी तरह तैयार है. मंदिर परिसर से लेकर पहाड़ी पर भी जगह जगह पुलिस बल भी तैनात किया गया है.

1 हजार 451 सीढ़ियां पहाड़ी पर मंदिर,
प्रसिद्ध मां विजयासन धाम सलकनपुर मंदिर तक पहुचने केे लिए 1451 सीढ़ियां हैं. पहाड़ी के निचले स्थान से मंदिर की दूरी 3500 फिट तथा उंचाई 800 फिट है. मंदिर चारों ओर से  पहाड़ियों से घिरा हुआ है. मंदिर तक पहुचने के लिए सड़क़ मार्ग से वाहन के द्वारा जाया जा सकता है. इसकेअतिरिक्त रोपवे से भी मंदिर तक जा सकते हैं. विशेष बात यह हैै कि कई श्रद्धालुओं माता का नाम लेते हुए पैदल ही सीढियां चढ़ जाते है.

राक्षस रक्त बीज के वध के बाद माता यही पर बैठी थी
मंदिर के महंत गुरु दयाल शर्मा शर्मा के मुताबिक चार सौ साल पुराने इस मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति सैकड़ों वर्ष प्राचीन है. मंदिर का निर्माण वर्ष 1100 के करीब गोंड राजाओं ने गिन्नौरगढ के दौरान कराया था. मान्यता है कि महिषासुरमर्दिनी के रूप में माँ दुर्गा ने रक्तबीज नाम के राक्षस का वध इसी स्थान पर करके यहां विजयी मुद्रा में तपस्या की. इसलिए यह विजयासन देवी कहलायीं. इसी पहाड़ी पर कई जगहों पर रक्तबीज से युद्ध के अवशेष नजर आते हैं. मंदिर के गर्भगृह में लगभग 400 साल से 2 अखंड ज्‍योति प्रज्जवलित हैं. एक नारियल के तेल और दूसरी घी से जलायी जाती है. इन साक्षात जोत को साक्षात देवी रूप में पूजा जाता है.  इसके अलावा मंदिर में धूनी भी जल रही है. इस धूनी को स्‍वामी भद्रानं‍द और उनके शिष्‍यों ने प्रज्जवलित किया था. तभी से इस अखंड धूनी की भस्‍म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है.

मंदिर के आसपास के क्षेत्र में प्राचीन गुफाएं
मंदिर के आसपास के क्षेत्र विभिन्न प्राचीन स्थान और गुफाएं भी मौजूद हैं.  यहां पास में ही किला गिन्नोर, आंवलीघाट, देलावाड़़ी, सारू मारू की गुफाएं और भीम बेटका आदि प्रमुख है. मंदिर में दर्शन करने के बाद श्रद्धालु प्राचीन स्थानों पर भी घूमने के लिए जाते हैं.

250 पुलिस कर्मी तैनात किए गए
वहीं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गीतेश गर्ग ने बताया कि नवरात्रि पर्व को देखते हुए पुलिस प्रशासन की तरफ से सभी चाक चौबंद किए गए हैं. मंदिर परिसर क्षेत्र में करीब 250 पुलिस कर्मियों का बल तैनात किया गया है. जिसमें 80 पुलिस कर्मी भोपाल से बुलाए गए हैं. मंदिर क्षेत्र में अस्थाई बस स्टैंड भी बनाया गया है. श्रद्धालुओं  को कोई परेशानी ना हो सभी व्यवस्थाएं की गई है.

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