कमलनाथ की एक चूक से सत्ता के ‘बाजीगर’ बन गए सिंधिया; ऐसे चला 17 दिन शह-मात का खेल

सुमित पांडेय

17 Feb 2023 (अपडेटेड: Feb 16 2023 8:10 PM)

Operation Lotus Episode 3: मध्य प्रदेश में कांग्रेस की 15 महीने पुरानी सरकार 20 मार्च 2020 को गिर गई. इसकी सबसे बड़ी वजह बने ज्योतिरादित्य सिंधिया. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी चाहकर भी अपनी सरकार नहीं बचा पाई, वहीं सिंधिया ने जिस तरह कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की प्लानिंग की और उसमें पूरी […]

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Operation Lotus Episode 3: मध्य प्रदेश में कांग्रेस की 15 महीने पुरानी सरकार 20 मार्च 2020 को गिर गई. इसकी सबसे बड़ी वजह बने ज्योतिरादित्य सिंधिया. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी चाहकर भी अपनी सरकार नहीं बचा पाई, वहीं सिंधिया ने जिस तरह कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की प्लानिंग की और उसमें पूरी तरह से सफल भी रहे. घटनाक्रम की शुरुआत से ही ऐसा कभी नहीं लगा कि उनका प्लान कमजोर पड़ेगा और कमलनाथ सरकार बचा ले जाएंगे. पूरे 17 दिन शह और मात का खेल चलता रहा. कभी लगता गेम में कांग्रेस आगे चल रही है, कभी लगता बीजेपी, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के फैसले के बाद पलड़ा बीजेपी का भारी हो गया जो आखिर में सरकार के गिरने की सबसे बड़ी कड़ी साबित हुआ.

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सिंधिया की अपरिहार्यता को और पुख्ता करते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते बुधवार को रीवा में एयरपोर्ट के उद्घाटन के मौके पर कहा कि आज अगर मैं मुख्यमंत्री हूं तो सिंधिया जी की वजह से हूं. इससे प्रदेश में सिंधिया के कद का पता चलता है. इस बयान ने प्रदेश का सियासी पारा चढ़ा दिया है और कांग्रेस ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है.

सियासी सरगर्मी के बीच MP Tak आपको ‘ऑपरेशन लोटस 2020’ और कमलनाथ सरकार के गिरने की पूरी कहानी सिलसिलेवार तरीके से बता रहा है… पूरे 17 दिन तक चले हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद 20 मार्च को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया था और चौथी बार शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. अब तक इस स्टोरी की 3 एपिसोड आप पढ़ चुके हैं. चौथे और आखिरी एपिसोड में पढ़िए सिंधिया और कमलनाथ के मजबूत गठबंधन पर क्या भाजपा लगाई थी सेंध? या खुद सिंधिया ही कांग्रेस छोड़ने का बना चुके थे मन…

वरिष्ठ पत्रकार और मध्य प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले ब्रजेश राजपूत ने इस पूरे घटनाक्रम पर किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने सरकार को बचाने की संभावनाओं पर बात करते हुए लिखा है कि ‘मार्च के पहले सप्ताह में ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बना देने का जो आदेश दिल्ली हाईकमान के यहां से 7 मार्च को चला वह भोपाल में आकर ठंडे बस्ते में चला गया.’ अगर ऐसा नहीं होता तो शायद सरकार नहीं गिरती.”

मैनेजमेंट के माहिर कमलनाथ फेल साबित हुए
असल में, कमलनाथ एक प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी राष्ट्रीय नेता ही बने रहे, दिल्ली में जिसके घर के बाहर कांग्रेस के मुख्यमंत्री तक मिलने की प्रतीक्षा करते थे. नेता पल-पल पाला बदलते रहे… कोई नेता सुबह कांग्रेस खेमे के साथ, फिर शाम को बीजेपी खेमे में और फिर कांग्रेस खेमे में पहुंच जाता. कमलनाथ के मैनेजमेंट को लेकर हाईकमान को यकीन था कि वह अपनी सरकार बचा ले जाएंगे. लेकिन उन्हीं कमलनाथ के सामने से बीजेपी ने बाजी मार ली.

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राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कहते हैं, “मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अवसर का इंतजार कर रहे थे. जब कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तो उन्होंने ट्वीट कर उसका समर्थन किया था. यह उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए किया था और वह कांग्रेस की ऑफिसियल लाइन से पहले ही अलग जा चुके थे. एक उनको ट्रिगर चाहिए था और जो आग थी, उसमें कमलनाथ ने घी का काम किया. अगर कमलनाथ बुद्धिमानी से काम लेते तो कमलनाथ को बहाना नहीं मिलता कांग्रेस छोड़ने का. अगर उन्हें ऑफर कर देते प्रदेश अध्यक्ष बनने या राज्यसभा में भेजने के लिए तो वह नहीं जाते और कमलनाथ सरकार बच जाती.”

आखिरी मौके पर कांग्रेस ने सिंधिया को मनाने की कोशिश की, लेकिन नहीं माने
सिंधिया को मनाने के लिए कांग्रेस ने पूरी कोशिश कर डाली लेकिन वह नही मानें. भोपाल में 20 मंत्रियों ने नए सिरे से मंत्रिमंडल गठन के लिए अपना इस्तीफा सौप दिया. लेकिन इस सारी कवायद के बीच ही 10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और अपना इस्तीफा कांग्रेस से दे दिया. इसके बाद बेंगलुरु में मौजूद सिंधिया समर्थक छह मंत्री और 13 विधायकों ने भी अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया. वहीं दो और विधायकों बिसाहूलाल सिंह और ऐंदल सिंह कंसाना ने भी अपना इस्तीफा दे दिया.

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राज्यपाल ने बहुमत साबित करने को कहा, कांग्रेस की संख्या हो गई 92
इसके बाद राज्यपाल ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने को कहा. 16 मार्च से शुरु हुए सत्र में स्पीकर ने राज्यपाल के अभिभाषण के बाद कार्यवाही को 26 मार्च तक के लिये स्थगित कर दिया और उन्होंने इसकी वजह कोरोना वायरस को बताया. इसके बाद बीजेपी ने अपने विधायकों की परेड राजभवन में कराई और रुख सुप्रीम कोर्ट का कर लिया. जहां पर आख़िर में सरकार को बहुमत साबित करने के लिये कहा गया. कांग्रेस पार्टी 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत कर 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी. उस वक़्त कांग्रेस के 114 विधायक जीते थे और बीजेपी के 109 लेकिन शुक्रवार की स्थिति में बीजेपी के पास 106 विधायक थे तो कांग्रेस की संख्या 92 तक पहुंच गई है.

230 सदस्यों वाली विधान सभा में सरकार बनाने के लिए 116 विधायकों का समर्थन ज़रूरी होता है. बसपा के दो, सपा के एक और निर्दलीय चार विधायक हैं जिन्होंने कांग्रेस को अब तक समर्थन दिया हुआ था. दो सीटें विधायकों के देहांत हो जाने की वजह से अभी तक खाली थी.

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सत्ता पाने की छटपटाहट ने सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर किया
वरिष्ठ विश्लेषक और पत्रकार एनके सिंह कहते हैं, “2014 कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के अंदर छटपटाहट बहुत ज्यादा थी, पार्टी में ओहदा था और राहुल गांधी के करीबी थे, लेकिन वह सत्ता से बाहर कभी नहीं रहे और इसे पाने के लिए उनकी अपनी रिक्वायरमेंट थीं और उन्होंने इसके लिए समझौते भी किए. ये कहना कि उनकी (सिंधिया) की बहुत उपेक्षा की गई. राहुल गांधी ने सिंधिया के इस्तीफे के बाद कहा था कि उन्होंने मुझसे कभी नहीं कहा कि उन्हें कुछ चाहिए और फिर भाजपा को एक मोहरा चाहिए था, जिसे बीजेपी ने अच्छे से भुनाया…”

…और फिर लौट आए शिवराज
वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत किताब ‘वो सत्रह दिन’ में लिखते हैं, “कमलनाथ गए और शिवराज लगभग 14 महीनों का वनवास काट कर वापस आ गए. कमलनाथ अपनी ग़लतियों से गए और शिवराज अपनी किस्मत से आए. कमलनाथ काम में शिवराज से बेहतर, किन्तु राजनीति में शिवराज से बहुत बदतर साबित हुए. कमलनाथ राष्ट्रीय स्तर के नेता थे और मुख्यमंत्री बन कर भी वे वही बने रहे. विधायक तो क्या उनके मंत्रियों तक को उनसे मिलने के लिए अपाइंटमेंट लेना पड़ता था. शिवराज इस मामले में कमलनाथ से बहुत बेहतर हैं.”

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